क्या आप जीवन में भय और संकटों से छुटकारा पाना चाहते हैं? नृसिंह स्तुति से पाएं भगवान नृसिंह का दिव्य आशीर्वाद – जानिए इसका पाठ और चमत्कारी लाभ।
श्रीहरि विष्णु के अनेक रूपों में से एक रूप नृसिंह के रूप में जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में भगवान नृसिंह स्तुति का पाठ करना फलदायी और अत्यंत शुभ माना गया है। इस स्तुति को करने से साधक का भय, बाधा और संकट दूर होते हैं। यदि आप इस स्तुति के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं जैसे पाठ विधि, इसके फायदे आदि तो हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें और इसके बारे में जानिए संपूर्ण जानकारी।
श्रीहरि ने नृसिंह का अवतार लेकर अपने परम प्रिय भक्त प्रहलाद को दैत्य हिरण्यकशिपु से बचाया था और उसका वध किया था। भगवान नृसिंह का रौद्र रूप आधा मानव और आधा सिंह के रूप में था। भक्तों के लिए भगवान का ये रूप कल्याणकारी और राक्षसों के लिए विनाशकारी था। ऐसे में किसी संकट के समय नृसिंह की स्तुति करने से साथ ही शत्रुओं पर विजय मिलती है। इसके साथ ही ये आत्मबल और सुरक्षा प्रदान करने वाला शक्तिशाली पाठ है। इसके पाठ करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और नकारत्मकता से मुक्ति मिलती है।
उदयरवि सहस्रद्योतितं रूक्षवीक्षं प्रळय जलधिनादं कल्पकृद्वह्नि वक्त्रम् |
सुरपतिरिपु वक्षश्छेद रक्तोक्षिताङ्गं प्रणतभयहरं तं नारसिंहं नमामि ||
प्रळयरवि कराळाकार रुक्चक्रवालं विरळय दुरुरोची रोचिताशांतराल |
प्रतिभयतम कोपात्त्युत्कटोच्चाट्टहासिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१||
सरस रभसपादा पातभाराभिराव प्रचकितचल सप्तद्वन्द्व लोकस्तुतस्त्त्वम् |
रिपुरुधिर निषेकेणैव शोणाङ्घ्रिशालिन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||२||
तव घनघनघोषो घोरमाघ्राय जङ्घा परिघ मलघु मूरु व्याजतेजो गिरिञ्च |
घनविघटतमागाद्दैत्य जङ्घालसङ्घो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||३||
कटकि कटकराजद्धाट्ट काग्र्यस्थलाभा प्रकट पट तटित्ते सत्कटिस्थातिपट्वी |
कटुक कटुक दुष्टाटोप दृष्टिप्रमुष्टौ दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||४||
प्रखर नखर वज्रोत्खात रोक्षारिवक्षः शिखरि शिखर रक्त्यराक्तसंदोह देह |
सुवलिभ शुभ कुक्षे भद्र गंभीरनाभे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||५||
स्फुरयति तव साक्षात्सैव नक्षत्रमाला क्षपित दितिज वक्षो व्याप्तनक्षत्रमागर्म् |
अरिदरधर जान्वासक्त हस्तद्वयाहो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||६||
कटुविकट सटौघोद्घट्टनाद्भ्रष्टभूयो घनपटल विशालाकाश लब्धावकाशम् |
करपरिघ विमदर् प्रोद्यमं ध्यायतस्ते दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||७||
हठलुठ दल घिष्टोत्कण्ठदष्टोष्ठ विद्युत् सटशठ कठिनोरः पीठभित्सुष्ठुनिष्ठाम् |
पठतिनुतव कण्ठाधिष्ठ घोरांत्रमाला दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||८||
हृत बहुमिहि राभासह्यसंहाररंहो हुतवह बहुहेति ह्रेपिकानंत हेति |
अहित विहित मोहं संवहन् सैंहमास्यम् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||९||
गुरुगुरुगिरिराजत्कंदरांतगर्तेव दिनमणि मणिशृङ्गे वंतवह्निप्रदीप्ते |
दधदति कटुदंष्प्रे भीषणोज्जिह्व वक्त्रे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१०||
अधरित विबुधाब्धि ध्यानधैयर्ं विदीध्य द्विविध विबुधधी श्रद्धापितेंद्रारिनाशम् |
विदधदति कटाहोद्घट्टनेद्धाट्टहासं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||११||
त्रिभुवन तृणमात्र त्राण तृष्णंतु नेत्र त्रयमति लघिताचिर्विर्ष्ट पाविष्टपादम् |
नवतर रवि ताम्रं धारयन् रूक्षवीक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१२||
भ्रमद भिभव भूभृद्भूरिभूभारसद्भिद् भिदनभिनव विदभ्रू विभ्र मादभ्र शुभ्र |
ऋभुभव भय भेत्तभार्सि भो भो विभाभिदर्ह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१३||
श्रवण खचित चञ्चत्कुण्ड लोच्चण्डगण्ड भ्रुकुटि कटुललाट श्रेष्ठनासारुणोष्ठ |
वरद सुरद राजत्केसरोत्सारि तारे दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१४||
प्रविकच कचराजद्रत्न कोटीरशालिन् गलगत गलदुस्रोदार रत्नाङ्गदाढ्य |
कनक कटक काञ्ची शिञ्जिनी मुद्रिकावन् दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१५||
अरिदरमसि खेटौ बाणचापे गदां सन्मुसलमपि दधानः पाशवयार्ंकुशौ च |
करयुगल धृतान्त्रस्रग्विभिन्नारिवक्षो दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१६||
चट चट चट दूरं मोहय भ्रामयारिन् कडि कडि कडि कायं ज्वारय स्फोटयस्व |
जहि जहि जहि वेगं शात्रवं सानुबंधं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१७||
विधिभव विबुधेश भ्रामकाग्नि स्फुलिङ्ग प्रसवि विकट दंष्प्रोज्जिह्ववक्त्र त्रिनेत्र |
कल कल कलकामं पाहिमां तेसुभक्तं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१८||
कुरु कुरु करुणां तां साङ्कुरां दैत्यपूते दिश दिश विशदांमे शाश्वतीं देवदृष्टिम् |
जय जय जय मुर्तेऽनार्त जेतव्य पक्षं दह दह नरसिंहासह्यवीर्याहितंमे ||१९||
स्तुतिरिहमहितघ्नी सेवितानारसिंही तनुरिवपरिशांता मालिनी साऽभितोऽलम् |
तदखिल गुरुमाग्र्य श्रीधरूपालसद्भिः सुनिय मनय कृत्यैः सद्गुणैर्नित्ययुक्ताः ||२०||
लिकुच तिलकसूनुः सद्धितार्थानुसारी नरहरि नुतिमेतां शत्रुसंहार हेतुम् |
अकृत सकल पापध्वंसिनीं यः पठेत्तां व्रजति नृहरिलोकं कामलोभाद्यसक्तः ||२१||
॥ इति श्री नरसिंह स्तुतिः संपूर्णम् ॥
नृसिंह स्तुति का पाठ विधिपूर्वक करने से सभी प्रकार की बाधाएं, भय और रोग दूर होते हैं। नियम और श्रद्धा के साथ पाठ करने से साधक पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा बरसती है। यह पाठ शनिवार, पूर्णिमा या नृसिंह चतुर्दशी के दिन विशेष फलदायी माना जाता है। सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद स्वच्छ मन से श्रीहरि का ध्यान करें और स्नान करके पीले या सफेद साफ कपड़े पहनें। फिर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और लकड़ी की चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर श्रीहरि के चित्र या मूर्ति को विराजें।
इसके साथ ही चित्र या मूर्ति के पास तुलसी का पौधा जरूर रखें। ऐसा इसलिए क्योंकि यह शुभ माना जाता है। भगवान को कुमकुम, हल्दी, चंदन, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करें। फिर दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं। इसके बाद भगवान नृसिंह का ॐ क्ष्रौं नमो भगवते नृसिंहाय मंत्र का जाप करें। इसके बाद पूरी श्रद्धा से नृसिंह स्तुति का पाठ करें। पाठ करते समय आसपास शांति रहे इसका ध्यान रखें और मन में किसी तरह के कोई भी नकारात्मक विचार न आने दें। पाठ करने के बाद आरती, भजन करें और भोग अर्पित करें। अंत में भगवान विष्णु से प्रार्थना करें। ध्यान रखें किसी विशेष मुहूर्त पर पूजन करने के लिए जानकारी पंडित और विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें और फिर पूजा को विधिपूर्वक करें ताकि पूजा सही समय पर हो और अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो।
नृसिंह स्तुति करने से साधक को अनेक तरह के लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
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