क्या आर्थिक तंगी या दरिद्रता से परेशान हैं? लक्ष्मी स्तुति का जप खोल सकता है समृद्धि के द्वार – जानिए पाठ और इसके दिव्य लाभ।
लक्ष्मी स्तुति माँ लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए की जाने वाली एक भक्तिपूर्ण प्रार्थना है। यह स्तुति धन, समृद्धि, सौभाग्य और सुख-शांति के लिए की जाती है। नियमित पाठ से जीवन में ऐश्वर्य और शुभ ऊर्जा का संचार होता है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
सनातन धर्म में माँ लक्ष्मी का स्थान अत्यंत विशिष्ट और पवित्र माना गया है। वे न केवल धन और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं, बल्कि जीवन के हर उस पहलू की देवी हैं जो मानव को पूर्ण बनाता है—सौंदर्य, सौभाग्य, सद्गुण, सफलता, शांति और संतुलन। माँ लक्ष्मी को भगवान विष्णु की अर्धांगिनी के रूप में जाना जाता है और विष्णु के पालनकर्ता स्वरूप में उनका साथ देना यह दर्शाता है कि सृष्टि के संतुलन और समृद्धि में उनका विशेष योगदान है।
‘लक्ष्मी’ शब्द संस्कृत के ‘लक्ष’ धातु से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है—‘लक्ष्य’ या ‘लक्षण’। इस रूप में माँ लक्ष्मी वह दिव्य शक्ति हैं जो जीवन को एक दिशा देती हैं, उसे शुभता और सफलता के पथ पर अग्रसर करती हैं। वे केवल बाह्य धन-संपत्ति की प्रतीक नहीं, बल्कि आंतरिक समृद्धि की भी स्रोत हैं। जिस घर, परिवार या व्यक्ति पर माँ लक्ष्मी की कृपा होती है, वहाँ न केवल भौतिक धन होता है, बल्कि धर्म, शांति, प्रेम, करुणा और सौम्यता भी स्थायी रूप से वास करती है।
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्र-मूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
आद्यन्तरहिते देवि आदिशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदये।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेच्छ्रद्धयान्वितः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥
माँ लक्ष्मी की उपासना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक और आत्मिक अभ्यास भी है, जिससे साधक अपने जीवन में संतुलन, ऊर्जा और स्थिरता लाता है। उनकी स्तुति करने से जीवन में फैला हुआ अंधकार धीरे-धीरे दूर होता है और आत्मा में एक नया प्रकाश फैलता है। उनके स्तोत्र, जैसे—श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र, लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनामावली आदि—न केवल शब्दों का समूह हैं, बल्कि उनमें ऐसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा समाहित होती है जो साधक के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन ला सकती है।
माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल पूजा-पाठ ही पर्याप्त नहीं, बल्कि जीवन में सात्विकता, निष्ठा, शुद्धता और कर्म की पवित्रता भी आवश्यक होती है। जो व्यक्ति सच्चे मन से, किसी लोभ या छल के बिना माँ की उपासना करता है, उसकी हर मनोकामना धीरे-धीरे पूर्ण होती है। उसका जीवन केवल भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी समृद्ध और संतुलित हो जाता है।
माँ लक्ष्मी की स्तुति करना वास्तव में आत्मा की पुकार है। यह केवल कोई शास्त्रीय प्रक्रिया नहीं, बल्कि हृदय की गहराई से निकली हुई वह भावना है जो देवी माँ के चरणों में समर्पित होती है। जब कोई भक्त निःस्वार्थ भाव से माँ लक्ष्मी को याद करता है, तो उसकी चेतना माँ की ऊर्जा से जुड़ जाती है और फिर वह केवल एक साधारण मनुष्य नहीं रहता, वह सौभाग्य का पात्र बन जाता है।
इसलिए माँ लक्ष्मी की उपासना को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान न समझें, बल्कि इसे जीवन की दिव्यता और संतुलन की दिशा में एक आवश्यक कदम के रूप में देखें।
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