
नाग स्तोत्रम् सर्प देवताओं की स्तुति करने वाला अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से व्यक्ति को सर्प दोष, भय और ग्रह संबंधी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, यह मन में शांति, साहस और आध्यात्मिक संतुलन लाता है। जानिए नाग स्तोत्र पढ़ने की सही विधि और इसके अद्भुत लाभ।
नाग स्तोत्रम् सर्प देवताओं को समर्पित एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से सर्प दोष, कालसर्प योग, और नाग संबंधी भय से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र परिवार की रक्षा करता है और घर में सुख-शांति एवं समृद्धि लाता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका जप करने पर नाग देवता की कृपा प्राप्त होती है।
नाग स्तोत्र नाग देवता को समर्पित है। इस स्त्रोत के जरिये उन्हें धन्यवाद व्यक्त किया गया है कि उन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने मणि पर धारण किया हुआ है। हिन्दू धर्म में नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा अर्चना करने का विधान है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग होता है उसे भी इस स्त्रोत का पाठ करने से फल की प्राप्ति होती है। इस स्त्रोत का पाठ करने से सर्प भय से भी मुक्ति मिलती है।
हिन्दू मान्यताओं में नाग देवता को पूजनीय स्थान प्राप्त है। इसलिए उनकी पूजा अर्चना की जाती है। देश में उनके कई प्रसिद्ध मंदिर भी बनाए गए हैं। जो व्यक्ति नाग देवता के दर्शन करने के साथ साथ नाग स्तोत्र का पाठ भी करते हैं तो उन्हें कल्याणकारी फल की प्राप्ति होती है। नाग पंचमी के दिन यदि नागों की पूजा की जाए तो उस व्यक्ति को नाग से किसी प्रकार का भय नहीं रहता। नाग पंचमी पर कुश से नाग बनाकर उसकी दूध, दही और घी से पूजा करने और नाग स्तोत्र का पाठ करने से नाग देवता अत्यधिक प्रसन्न होते हैं।
ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥1॥
अर्थ - जो सर्प ब्रह्म लोक में और शेषनाग के साथ पुरोहित के रूप में हैं, उन सभी सर्पों को मेरी पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥2॥
अर्थ - जो सर्प विष्णु लोक में हैं और उनमें वासुकी प्रमुख हैं, उन सभी सांपों को मेरी पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥3॥
अर्थ - जो सर्प रुद्र लोक में हैं और उनमें तक्षक प्रमुख हैं, उन सभी सर्पों को मेरी पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गन्च ये च समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥4॥
अर्थ - जो सर्प खाण्डव में हैं और अग्नि के दहन में और स्वर्ग में भी समाहित हैं, उन सभी सर्पों को मेरी पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
सर्प सत्रे च ये सर्पाः अस्थिकेनाभि रक्षिताः । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥5॥
अर्थ - जो सर्प यज्ञ सत्र के अवसर पर अस्थिकेन द्वारा रक्षित होते हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
प्रलये चैव ये सर्पाः कार्कोट प्रमुखाश्चये । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥6॥
अर्थ - जो सर्प प्रलय के समय और कार्कोट प्रमुख सर्प हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
धर्म लोके च ये सर्पाः वैतरण्यां समाश्रिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥7॥
अर्थ - जो सर्प धर्म लोक में हैं और वैतरणी नदी में आश्रित हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
ये सर्पाः पर्वत येषु धारि सन्धिषु संस्थिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥8॥
अर्थ - जो सर्प पर्वतों में हैं और धारियों के संगमों में स्थित हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥9॥
अर्थ - जो सर्प गाँवों में या जंगलों में विचरण करते हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
पृथिव्याम् चैव ये सर्पाः ये सर्पाः बिल संस्थिताः। नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥10॥
अर्थ - जो सर्प पृथ्वी पर हैं और जमीन के अंदर भी रहते हैं, उन सभी सर्पों को मेरा पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ नमस्कार।
रसातले च ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥11॥
अर्थ - रसातल में जो सर्प हैं, वे अनंत और बहुत बलशाली हैं। मैं उनको नमस्कार करता हूँ, जो हमेशा मेरे प्रति प्रसन्न और आनंदित हों।
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