क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय मंदिर है जो साल में सिर्फ एक बार, रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है? वंशी नारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और यहाँ हजारों श्रद्धालु सिर्फ इसी दिन दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यह स्थान श्रद्धा, रहस्य और प्रकृति की सुंदरता से भरपूर है।
वंशी नारायण मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु के वंशीधारी रूप को समर्पित है। यह स्थल धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है, जहाँ हर वर्ष श्रद्धालु आते हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...
नमस्कार दोस्तों! मंदिर एवं अन्य धार्मिक स्थल हमारे देश की संस्कृति की खूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं। आपने कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे और उनकी सुंदरता ने आपको मंत्र मुग्ध भी किया होगा, लेकिन आज हम जिस मंदिर के बारे में बात करने जा रहे हैं, वह काफी खास और अलग है। तो आइये आपको बताते हैं ऐसे ही एक विशेष मंदिर के बारे में:
देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित वंशी नारायण मंदिर, एक ऐसा मंदिर है जो केवल साल में एक दिन खुलता है और वह भी रक्षाबंधन के दिन। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। इस मंदिर के द्वार, 364 दिन बंद रहते हैं और सिर्फ एक दिन के लिए रक्षा बंधन वाले दिन खुलता है। उस दिन सभी बहनें और महिलाएं, भगवान विष्णु को रक्षासूत्र बांधती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करती हैं।
यह मंदिर समुद्री तल से 12 हज़ार फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इस मंदिर में विष्णु भगवान और भोलेनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवऋषि नारद यहां साल के 364 दिन, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। स्कंध पुराण और श्रीमद्भागवत के अनुसार, दानवेंद्र राजा बालि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बनें। भगवान विष्णु ने राजा बालि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बालि के साथ पाताललोक चले गए।
भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने के कारण, माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गईं और उनसे पूछा, कि भगवान विष्णु कहां पर है। इसके बाद, नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया, कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं। तब माता लक्ष्मी अत्यंत परेशान हो गईं और उन्होंने नारद मुनि से भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय पूछा।
तब देवर्षि ने कहा, कि “हे माता! आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताललोक जाएं और राजा बालि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर, उनसे भगवान विष्णु को वापस मांग लें।” माता लक्ष्मी को पाताललोक जाने का रास्ता नहीं पता था, इसलिए वो नारद मुनि के साथ पाताल लोक गईं। नारद मुनि वहां के मंदिर में भगवान हरि की पूजा हर दिन करते थे। उस दिन नारद जी को वहां ना पाकर, कलगोठ गांव के जार पूजारी ने वहां पूजा की और तभी से ये परंपरा, उस गांव में चली आ रही है।
तो यह थी रक्षाबंधन पर खुलने वाले इस खास मंदिर की कथा, ऐसी ही रोचक और धर्म से जुड़ी अनंत कथाओं और जानकारी से खुद को भाव विभोर करने के लिए श्रीमंदिर वेबसाइट पर उपलब्ध अन्य कथाओं को भी अवश्य पढ़ें।
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