जब संकट में थी मेवाड़ की रानी, तो राखी बन गई थी एक उम्मीद की डोर! जानिए रानी कर्णावती और हुमायूं की ऐतिहासिक राखी कथा।
रानी कर्णावती ने बहादुर शाह से अपनी रक्षा के लिए मुग़ल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने इसे स्वीकार कर रक्षा का वचन दिया और अपनी सेना के साथ सहायता को निकला, हालांकि वह समय पर नहीं पहुंच सका। आइये जानते हैं इसके बारे में...
इतिहास केवल तलवारों की गूंज और राजाओं की विजयगाथाओं से नहीं, बल्कि उन अनसुने रिश्तों और भावनात्मक निर्णयों से भी बना है, जिन्होंने युगों तक लोगों के मन में जगह बनाई। ऐसी ही एक अनोखी कहानी है रानी कर्णावती और मुगल सम्राट हुमायूं की। जब एक युद्धरत समय में एक राजपूत रानी ने अपनी आत्म-सम्मान और राज्य की रक्षा के लिए एक विदेशी और धर्म से भिन्न सम्राट को "राखी" भेजी। यह सिर्फ एक धागा नहीं था, बल्कि एक संदेश था… सहारे का, भरोसे का और रक्षक के उत्तरदायित्व का।
पर सवाल उठता है कि एक रानी को क्यों लगा कि राखी भेजना ही एकमात्र रास्ता है? क्या हुमायूं ने उस धागे की लाज रखी? और क्या यह कहानी सिर्फ एक लोककथा है या इसमें ऐतिहासिक सच्चाई भी छिपी है? चलिए, इस ऐतिहासिक घटना के बारे में जानते हैं कि रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी क्यों भेजी थी?
यह उस समय की बात है जब भारत छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था और हर ओर सत्ता की होड़ लगी थी। मेवाड़ का राज्य वीरता और आत्मसम्मान के लिए जाना जाता था। वहां की रानी कर्णावती, जो अपने दिवंगत पति राणा सांगा की विधवा थीं, राज्य की बागडोर अपने नाबालिग पुत्र विक्रमादित्य सिंह के नाम पर चला रही थीं। एक ओर वे माँ थीं, तो दूसरी ओर एक सशक्त शासिका भी, जो हर चुनौती का सामना करने को तैयार थीं।
लेकिन जल्द ही संकट के बादल घिरने लगे। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह, जो अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए लगातार आक्रमण कर रहा था, अब मेवाड़ की ओर बढ़ चला। रानी जानती थीं कि अकेले अपने बल पर इतने बड़े खतरे से निपटना कठिन होगा। राजपूत वीरों की बहादुरी के बावजूद, शत्रु की संख्या और संसाधन कहीं अधिक थे।
ऐसे समय में रानी ने एक साहसिक और भावनात्मक निर्णय लिया। उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी। यह केवल एक धागा नहीं था, यह एक संदेश था — भाई के रूप में रक्षा का आग्रह, एक दुश्मन को भाई बनाकर उससे मदद माँगने की पहल। रानी जानती थीं कि धर्म अलग हो सकते हैं, लेकिन राखी के रिश्ते की मर्यादा सबके लिए एक समान होती है। हुमायूं, जो बाबर का पुत्र और मुग़ल साम्राज्य का दूसरा सम्राट था, इस राखी से भावुक हो उठा। रानी कर्णावती का यह कदम इतिहास में भावनाओं, सम्मान और रणनीति का अद्भुत उदाहरण बन गया।
हुमायूं ने राखी की मर्यादा रखते हुए मदद के लिए निकल पड़ा, लेकिन जब तक वह चित्तौड़ पहुँचा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। किले पर बहादुर शाह का कब्जा हो चुका था और रानी कर्णावती ने अपनी अस्मिता की रक्षा हेतु जौहर कर लिया था। हालाँकि हुमायूं समय पर नहीं पहुँच पाया, लेकिन उसने राखी के बंधन को कभी नहीं भुलाया। बाद में उसने बहादुर शाह को पराजित कर, रानी के अपमान और बलिदान का बदला लिया।
रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को भेजी गई राखी की कहानी रक्षाबंधन के पर्व के गहरे अर्थ और महत्व को उजागर करती है। यह सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते का त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्यार, एकता और इंसानियत की भावना का प्रतीक भी है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन केवल खून के रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वह भावनात्मक बंधन है जो समझ, सम्मान और रक्षा के वचन पर आधारित होता है। रानी कर्णावती की यह पहल हमें सिखाती है कि दया और विश्वास से दुश्मन भी अपने बन सकते हैं, और यही रक्षाबंधन का सबसे बड़ा संदेश है।
यह घटना न केवल राजपूती साहस और रानी के आत्मसम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भावनाओं के धागे युद्ध के शोर में भी सुने जा सकते हैं। राखी केवल एक रेशमी धागा नहीं, बल्कि भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और रक्षक के वचन का प्रतीक है। रानी कर्णावती ने इसी परंपरा का सहारा लेकर, एक मुग़ल सम्राट हुमायूं से रक्षा की उम्मीद जताई थी। यह कदम दर्शाता है कि जब हालात सबसे कठिन हों, तब भी भावनात्मक रिश्तों की शक्ति राजनीति और धर्म से ऊपर हो सकती है। यह कहानी आज भी साहस, सम्मान और भाईचारे की मिसाल बनकर इतिहास के पन्नों में अमर है।
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