अगर दिन में समय न मिले तो क्या राखी रात को बांधना ठीक है? जानिए धार्मिक दृष्टिकोण और शुभ-अशुभ प्रभाव।
रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के बंधन का पवित्र त्योहार है, जिसमें बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र व खुशहाली की कामना करती हैं। पारंपरिक रूप से यह अनुष्ठान श्रावण पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में किया जाता है। अक्सर बहनों और परिवारों में यह सवाल उठता है कि क्या रात में राखी बांधी जा सकती है या नहीं।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या त्योहार को सही मुहूर्त पर करना महत्वपूर्ण माना जाता है। राखी बांधने की परंपरा भी इससे अलग नहीं है। रक्षाबंधन के दिन प्रातः से लेकर दोपहर तक का समय आमतौर पर राखी बांधने के लिए उत्तम माना जाता है, क्योंकि उस समय तक दिन का शुभ प्रभाव रहता है। धार्मिक मान्यता है कि सही मुहूर्त पर राखी बांधने से भाई-बहन को शुभ आशीर्वाद मिलता है और बंधन की मंगल कामना फलीभूत होती है।
भद्रा काल एक विशेष ज्योतिषीय समयावधि है जिसे अशुभ माना गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा काल में कोई भी मांगलिक या शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। राखी बांधने की क्रिया भी एक शुभ कार्य है, इसलिए भद्राकाल के दौरान राखी बांधना वर्जित माना गया है। भद्रा काल से जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ एवं कारण इस प्रकार हैं:
भद्रा का स्वरूप: हिंदू मान्यताओं के अनुसार भद्रा सूर्यदेव की पुत्री एवं शनिदेव की बहन हैं, और उनका स्वभाव भी शनि की तरह कठोर व क्रूर माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि भद्रा तीनों लोकों में भ्रमण करती हैं और जब उनका निवास पृथ्वी लोक में होता है तो उस समय शुभ कार्यों में बाधाएं आती हैं। अर्थात भद्रा काल पृथ्वी पर किसी भी शुभ कर्म के लिए अनुकूल नहीं होता। इसी वजह से भद्रा के दौरान शुभ पर्वों एवं संस्कारों को टालने की सलाह दी जाती है।
शास्त्रों की निषेधाज्ञा: हिंदू शास्त्रों में उल्लेख है कि भद्रा काल में कोई भी मंगल कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह समय अशुभ फल देने वाला माना गया है। विशेष रूप से राखी बांधने के संदर्भ में भी कहा गया है कि भद्रा काल (जो प्रायः कुछ घंटों की अवधि होता है) के भीतर राखी बांधने से बचना चाहिए।
भाई की सुरक्षा की चिंता: यह विश्वास प्रचलित है कि भद्रा में राखी बांधने से भाई के जीवन में अनिष्ट हो सकता है या उसे हानि पहुंच सकती है।
धार्मिक मान्यताओं को समझाने के लिए एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा का भी उल्लेख किया जाता है, जो लंका के राजा रावण और उसकी बहन शूर्पणखा से जुड़ी है। कथा के अनुसार एक बार शूर्पणखा ने रक्षाबंधन के दिन भद्राकाल में ही अपने भाई रावण की कलाई पर राखी बांध दी। चूँकि वह समय अशुभ था, इसका परिणाम रावण को भुगतना पड़ा। मान्यता है कि भद्रा काल में राखी बांधने के कारण उसी वर्ष के भीतर रावण के पूरे परिवार का विनाश हो गया।
अब सवाल आता है कि यदि दिन में किसी कारणवश राखी न बांधी जा सके, तो क्या रात में राखी बांधी जा सकती है? परंपरागत रूप से दिन का समय (सूर्यास्त से पहले) ही उपयुक्त माना गया है, परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों में रात में राखी बांधने की अनुमति भी दिखाई देती है। यह अनुमति मुख्यतः पंचांग द्वारा निर्धारित शुभ मुहूर्त पर निर्भर है। निम्न बिंदुओं के माध्यम से इसे समझें:
भद्रा काल समाप्ति के बाद: यदि रक्षाबंधन के दिन सुबह से लेकर शाम तक भद्रा काल का प्रभाव रहा हो और उसी कारण दिन में राखी बांधना टालना पड़ा हो, तो भद्रा समाप्त होने के बाद, चाहे वह रात का समय ही क्यों न हो, राखी बांधी जा सकती है। पूर्णिमा तिथि का ध्यान: रात में राखी बांधते समय यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि उस वक्त तक रक्षाबंधन की पूर्णिमा तिथि चल रही हो।
रक्षाबंधन पर राखी बांधने से पहले भद्राकाल और तिथि का ध्यान रखना आवश्यक है। भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है, इसलिए दिन में शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधनी चाहिए। यदि रात में बांधनी हो, तो सुनिश्चित करें कि भद्राकाल समाप्त हो चुका हो और पूर्णिमा तिथि प्रभाव में हो। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और संरक्षण के वचन का प्रतीक है, जिसे सही समय पर मनाने से इसका पावन स्वरूप और भी निखरता है।
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