रक्षाबंधन का मतलब है प्रेम और सुरक्षा का वचन। क्या यह रिश्ता सिर्फ भाई-बहन तक सीमित है या बहनें भी बहनों को राखी बांध सकती हैं? जानें पूरी बात।
श्रावण पूर्णिमा की पावन सुबह, आरती की थाल और राखी की रंग-बिरंगी डोर भाई-बहन के प्रेम को और भी गहरा करती है। रक्षाबंधन वह पर्व है जब बहनें भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देते हैं। यह अटूट स्नेह का प्रतीक है। लेकिन सवाल उठता है। क्या दो बहनें एक-दूसरे को राखी बाँध सकती हैं?
श्रावण पूर्णिमा की सुनहरी सुबह, आरती की थाल सजी है, बहनें मंगलगीत गुनगुना रही हैं, और राखी की रंग-बिरंगी डोर प्रेम के बंधन को मजबूत करने को तैयार है। रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक पवित्र पर्व है जिसमें बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर उनकी लंबी उम्र और रक्षा की कामना करती हैं, और बदले में भाई जीवन भर अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। यह त्योहार मूलतः भाई-बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक माना जाता है। लेकिन अगर दो बहनें ही हों, तो क्या वे एक-दूसरे को राखी बाँध सकती हैं? आइए, बहन-बहन को राखी बाँधने के विषय पर दोनों पक्षों को समझने का प्रयास करें।
रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है “रक्षा के वचन में बंधना” – यह एक ऐसा संस्कार है जहाँ रक्षा-सूत्र बाँधते समय सुरक्षा और स्नेह का वचन दिया जाता है। प्राचीन काल से ही रक्षा-सूत्र बाँधने की परंपरा हमारे धर्म में विद्यमान रही है। वैदिक यज्ञ, युद्ध पर जाने से पहले, नए संकल्प या धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलावा या मौली के रूप में कलाई पर पवित्र धागा बाँधने की रीति थी। रक्षाबंधन पर्व भी मूलतः इसी रक्षा-सूत्र की भावना से विकसित हुआ है।
पौराणिक कथा के अनुसार पहली राखी श्रावण पूर्णिमा के दिन देवेंद्र इंद्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने इंद्र को युद्ध में विजय हेतु बाँधी थी। भविष्य पुराण में वर्णित इस कथा में देवताओं और असुरों के युद्ध में इंद्र कमजोर पड़ रहे थे, तब गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्राणी ने मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित रेशमी रक्षा-सूत्र पति की कलाई पर बाँध दिया, जिसके फलस्वरूप इंद्र की विजय हुई। कहा जाता है कि तभी से श्रावणी पूर्णिमा पर रक्षा-सूत्र बाँधने का यह पर्व शुरू हुआ। इस प्रकार राखी का मुख्य उद्देश्य किसी प्रियजन की रक्षा और कल्याण की कामना करना है। इतिहास में विभिन्न संबंधों में रक्षा-सूत्र बाँधने के उदहारण मिलते हैं – केवल बहन-भाई ही नहीं, बल्कि पत्नी-पति द्वारा, गुरु-शिष्य द्वारा अथवा मित्रों द्वारा भी रक्षा के धागे बाँधे गए हैं।
धार्मिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख कई रूपों में आया है। उपरोक्त इंद्र-इंद्राणी की कथा के अलावा कई प्रचलित कथाएँ हैं जो राखी के प्रतीक से जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए, लोककथाओं में आता है कि द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की उँगली घायल होने पर अपने आंचल का टुकड़ा फाड़कर उनकी उँगली पर बाँधा था, जिससे कृष्ण ने उसे अपना रक्षा-सूत्र स्वरूप मानकर द्रौपदी की लाज संरक्षण का वचन दिया। इसी तरह माता लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को राखी बाँधने तथा यमराज और उनकी बहन यमुना की कथा भी अक्सर सुनाई जाती है।
विशेष रूप से यह प्रश्न उठता है कि क्या किसी देवी या पौराणिक नारी पात्र ने किसी अन्य नारी को राखी बाँधी है? प्राचीन कथाओं में ऐसे उदाहरण नहीं मिलते जहां एक स्त्री ने दूसरी स्त्री की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा हो फिर भी, आधुनिक संदर्भ में यदि बहनें एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना से राखी बाँधना चाहें, तो इसकी भावना को हमारे शास्त्र नकारते भी नहीं है।
रक्षा-सूत्र की सार्वभौमिक भावना: राखी किसी एक संबंध तक सीमित अनुष्ठान नहीं है। जिसका भी कल्याण और रक्षा हमारी भावना हो, उसे राखी बाँधी जा सकती है। शास्त्रों के अनुसार भी राखी बाँधने का हक़ केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं रखा गया है। उदाहरणस्वरूप भविष्य पुराण में कहा गया है कि आप जिसकी उन्नति और रक्षा चाहते हैं, उसकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांध सकते हैं। विभिन्न संबंधों में प्रचलन: आज के समय में माँ अपने पुत्र को, पत्नी अपने पति को, शिष्य अपने गुरु को, यहाँ तक कि मित्र एक-दूसरे को भी राखी बांधते हैं। कई जगह बहनें भगवान को राखी अर्पित करती हैं और सैनिकों को राखी भेजती हैं, जो इस पर्व की व्यापक भावना को दर्शाता है। ऐसे में बहन को राखी बाँधना भी इसी भावना का विस्तार है। सामुदायिक परंपराएं: कुछ भारतीय समुदायों में बहन-बहन के बीच राखी बाँधने की परंपरा देखने को मिलती है। विशेषकर मारवाड़ी और राजस्थानी समाज में “लूंबा राखी” का रिवाज़ है, जहाँ बहनें अपनी भाभी (यानि स्त्री रिश्तेदार) की कलाई पर सजावटी राखी बांधती हैं। भावना का महत्व, नियम से ऊपर: अधुनिक अध्यात्म विचारों के अनुसार रक्षाबंधन कोई कठोर धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि भावनात्मक उत्सव है। जिसका कोई भाई नहीं है, वह भी राखी के मूल भाव को जी सकता है। जो भी हमारी जिंदगी में भाई या रक्षक जैसा स्थान रखता है, उसे राखी बांधी जा सकती है।
संतुलित दृष्टिकोण यह है कि रक्षाबंधन का मूल भाव प्रेम, कृतज्ञता और सुरक्षा का संकल्प है, जो किसी एक संबंध का मोहताज नहीं। धार्मिक और पौराणिक आधार पर भाई-बहन का संबंध इस पर्व का केन्द्र बिंदु रहा है, परन्तु शास्त्रों ने कहीं ऐसा कठोर निषेध नहीं किया है कि बहनें आपस में राखी नहीं बाँध सकतीं। यदि दो बहनें एक-दूसरे के प्रति स्नेह और संरक्षण का भाव रखती हैं, तो राखी बाँधना उनके लिए भी उतना ही पवित्र और सकारात्मक हो सकता है।
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