एकादशी श्राद्ध 2025 कब है?
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एकादशी श्राद्ध 2025 कब है?

एकादशी श्राद्ध 2025 कब है? यहां जानें इसकी सही तिथि, पूजा विधि और महत्व। इस दिन श्राद्ध करने से पितरों की कृपा मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

एकादशी श्राद्ध के बारे में

पितृ पक्ष एकादशी श्राद्ध उन पितरों की शांति के लिए किया जाता है जिनका निधन एकादशी तिथि को हुआ हो। इस दिन श्रद्धापूर्वक तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

एकादशी श्राद्ध क्या होता है?

पुराणों में कहा गया है कि मनुष्य की मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा अजर-अमर रहती है, यानी कि व्यक्ति के शरीर के नष्ट होने बाद भी आत्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता। हमारे पूर्वजों की आत्माएं न जाने किस-किस रूप में भटक रही होंगी, हम यह तो नहीं जान सकते, लेकिन हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए उन्हें जल व भोजन अर्पित करें। पितृ पक्ष एक ऐसी ही अवधि है, जब हमारे पितृ पृथ्वी पर आते हैं और हमारे द्वारा दिया गया जल भोजन आदि ग्रहण कर हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष का ‘एकादशी श्राद्ध’ उन पितरों को समर्पित है, जिनकी मृत्यु एकादशी तिथि पर हुई हो। पितृपक्ष में आने वाली एकादशी को ‘इंदिरा एकादशी’ भी कहते हैं।

एकादशी श्राद्ध कब है?

  • तारीखः सितंबर 17, 2025 (बुधवार)
  • कुतुप मूहूर्त - सुबह 11:51 से दोपहर 12:40 बजे तक
  • रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12:40 से 01:29 बजे तक
  • अपराह्न काल - दोपहर 01:29 से 03:56 बजे तक

एकादशी श्राद्ध कैसे करें?

  • श्राद्ध करने वाले जातक पहले स्वयं स्नान करके शुद्ध हो जाएं, उसके बाद श्राद्ध कर्म करने वाले स्थान को भी शुद्ध कर लें।
  • इसके बाद किसी विद्वान पंडित के मार्गदर्शन में अपने पितरों के निमित्त पिंडदान तर्पण आदि करें
  • अब पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उसमें से गाय, कौवा, चींटी, कुत्ते जैसे जीवों के लिए एक-एक अंश निकालें।
  • इस दौरान पितरों का आह्वान कर उनसे भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना करें।
  • इसके बाद ब्राह्मण को भी भोजन कराएं। श्राद्ध के अवसर पर यदि दामाद, भतीजा या भांजा भी भोजन करें, तो इससे पितृ विशेष प्रसन्न होते हैं।
  • एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की उपासना करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन जो जातक व्रत रखते हैं, उनके सात पीढ़ी तक के पितृ मोक्ष प्राप्त करते हैं।
  • जो जातक इंदिरा एकादशी व्रत का पुण्य अपने पितरों को समर्पित करना चाहते हैं, वे व्रत के दौरान ही इसका संकल्प लें, और भगवान विष्णु से अपने पितरों के उद्धार की कामना करें।
  • एकादशी तिथि पर श्राद्ध- पूजा के बाद दूध, घी, दही और अन्न का दान करने का भी विशेष महत्व है।

एकादशी श्राद्ध का महत्व

जिन पितरों का स्वर्गवास एकादशी तिथि पर हुआ है उनके लिए एकादशी श्राद्ध का विशेष महत्व है। पितृपक्ष की यह तिथि इसलिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु को समर्पित व्रत रखने का विधान है, जिसे इंदिरा एकादशी व्रत कहा जाता है।

मान्यता है कि जो लोग इस दिन अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं और भगवान विष्णु की उपासना कर उनके मोक्ष की प्रार्थना करते हैं, उनके पितरों की आत्मा जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होकर बैकुंठ धाम जाती है। पुराणों में यह भी वर्णन मिलता है, कि जिन पितरों का एकादशी तिथि पर श्राद्ध होता है, उन्हें यमलोक की यातनाएं नहीं सहन करनी पड़ती हैं।

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Published by Sri Mandir·September 1, 2025

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