क्या आप जानते हैं माँ स्कंदमाता का वाहन कौन सा है और इसका धार्मिक महत्व क्या है? यहाँ पढ़ें माँ स्कंदमाता के वाहन सिंह का रहस्य और उसका प्रतीकात्मक अर्थ।
मां स्कंदमाता का वाहन उनकी शक्ति, साहस और मातृत्व का प्रतीक माना जाता है। यह वाहन भक्तों को सुरक्षा, आत्मविश्वास और साहस का संदेश देता है। इस लेख में जानिए मां स्कंदमाता के वाहन का महत्व और उससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं।
‘स्कंद’ शब्द भगवान कार्तिकेय (जिन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन के नाम से जाना जाता है) के लिए प्रयोग होता है और ‘माता’ यानी माँ। माँ स्कंदमाता, भगवान स्कंद की जननी हैं और यही उनका प्रमुख स्वरूप है। माँ स्कंदमाता न सिर्फ ममता और करुणा की देवी हैं, बल्कि उनके स्वरूप में छिपी है वह असीम शक्ति जो संसार का संतुलन बनाए रखती है। उनकी चार भुजाएँ हैं। दो हाथों में वे कमल पुष्प धारण करती हैं, एक हाथ में उन्होंने भगवान स्कंद को गोद में लिया हुआ है, और चौथा हाथ अभय मुद्रा में होता है जो भक्तों को निर्भयता का आशीर्वाद देता है। माँ स्कंदमाता को ‘पद्मासना देवी’ भी कहा जाता है। उनका यह रूप बताता है कि जहाँ एक ओर वे वात्सल्य और शांति की प्रतीक हैं, वहीं दूसरी ओर वे दुर्गा के उस स्वरूप को भी धारण करती हैं जो दुष्टों का नाश करती हैं।माँ स्कंदमाता की पूजा से न केवल संतान सुख, बल्कि बुद्धि, विवेक और आत्मबल की प्राप्ति भी होती है। उनकी आराधना से जीवन में प्रेम, करुणा, और सौम्यता आती है। माँ स्कंदमाता का स्मरण करते ही मन को एक अद्भुत शांति और शक्ति का अनुभव होता है।
स्कंदमाता का वाहन सिंह है, जो शक्ति, साहस और निर्भयता का प्रतीक माना जाता है। सिंह पर विराजमान होने के कारण इन्हें 'सिंहवाहिनी' भी कहा जाता है। शेर भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही वीरता और शक्ति का प्रतीक रहा है। जब माँ स्कंदमाता अपने पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) को गोद में लेकर सिंह पर सवार होती हैं, तो यह दृश्य मातृत्व और शक्ति का अद्भुत संगम दिखाता है। यह दर्शाता है कि माँ न केवल अपने बच्चे की रक्षक होती हैं, बल्कि अपने भक्तों की भी हर संकट से रक्षा करती हैं। माँ का यह रूप हमें सिखाता है कि सच्ची माँ वही है जो कोमल भी हो और शक्तिशाली भी, जो प्रेम भी दे और जरूरत पड़ने पर शत्रु का नाश भी करे।
स्कंदमाता का वाहन सिंह सिर्फ एक जानवर नहीं, बल्कि धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। जब धरती पर अधर्म और दानवों का अत्याचार बढ़ जाता है, तब माँ स्कंदमाता सिंह पर सवार होकर उनका नाश करती हैं। यह रूप दर्शाता है कि माँ सिर्फ करुणामयी नहीं, बल्कि न्याय करने वाली भी हैं। सिंह का वाहन होना यह भी बताता है कि माँ हर परिस्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करती हैं, चाहे संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो। धार्मिक मान्यता है कि माँ स्कंदमाता की पूजा करने से मन में भय समाप्त होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। सिंह की सवारी माँ के उस रूप को दर्शाती है जो निर्भय, शक्तिशाली और विजयी है। यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति माँ स्कंदमाता की भक्ति करता है, उसके जीवन से सभी प्रकार के भय और बाधाएं दूर हो जाती हैं।
प्राचीन कथा के अनुसार, तारकासुर नामक एक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकता है। इस वरदान के कारण उसने तीनों लोकों में अत्याचार शुरू कर दिए, जिससे देवता बहुत परेशान हो गए। देवताओं ने ब्रह्मा जी से उपाय पूछा, तो उन्होंने बताया कि केवल शिव और पार्वती के पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकते हैं। उस समय भगवान शिव तपस्या में लीन थे। देवताओं ने कामदेव से प्रार्थना की कि वे शिव जी की तपस्या भंग करें। कामदेव ने ऐसा किया, जिससे क्रोधित होकर शिव जी ने उन्हें भस्म कर दिया। बाद में शिव जी ने पार्वती से विवाह किया और पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म हुआ। भगवान कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बनाया गया और उन्होंने तारकासुर का वध कर दिया।
नवरात्रि के पांचवे दिन माँ स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व होता है। यह पूजा शांति, समृद्धि और भय निवारण के लिए की जाती है। सही विधि और श्रद्धा से की गई पूजा से माँ शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
शुद्धिकरण एवं स्थापना: सबसे पहले प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
कलश स्थापना: माँ के सामने कलश स्थापित करें और उसका पूजन करें। कलश स्थापना से सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान होता है।
सामग्री अर्पण: इसके बाद धूप, दीप, अक्षत, चंदन, पीले या सफेद फूल चढ़ाएं। भोग में खीर, मिश्री या दूध से बनी मिठाई अर्पित करें।
मंत्र जाप व पाठ: फिर “ॐ देवी नमः” मंत्र का जाप करें और दुर्गा सप्तशती या स्कंदमाता से संबंधित स्तोत्र का पाठ करें।
आरती और प्रार्थना: अंत में माँ स्कंदमाता की आरती करें और कृतज्ञता सहित प्रार्थना करें और प्रसाद बाटें।
माँ स्कंदमाता की पूजा में श्रद्धा, विश्वास और सही विधि का विशेष महत्व होता है। भक्त यदि पूरी भक्ति से पूजा करें, तो जीवन के संकट, भय और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है तथा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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