क्या आप जानते हैं माँ सिद्धिदात्री का प्रिय भोग कौन सा है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या फल प्राप्त होते हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल और स्पष्ट शब्दों में।
नवरात्रि के नौवें दिन माँ दुर्गा के सुंदर स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता का यह रूप भक्तों को सिद्धियाँ और मनचाहे फल देता है। माता की आराधना से साधक के सभी कार्य सफल होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी का यह स्वरूप देवताओं, असुरों, किन्नरों, गृहस्थों, यक्षों, ऋषियों-मुनियों और साधकों द्वारा श्रद्धा से पूजित है।
नवरात्रि के नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा करते समय उन्हें विशेष भोग अर्पित करने का महत्व होता है। मान्यता है कि यदि श्रद्धा और सच्चे भाव से भोग लगाया जाए तो माँ अत्यंत प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
भोग में क्या अर्पित करें
माँ सिद्धिदात्री को मौसमी फल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है।
साथ ही उन्हें चना, पूड़ी, हलवा, खीर और नारियल का भोग विशेष रूप से प्रिय है।
इन सात्विक व्यंजनों को शुद्ध भाव से अर्पित करने पर भक्त के सभी कष्ट दूर होते हैं और कार्य सिद्ध होने लगते हैं।
1. माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्ति
नवरात्रि की नवमी तिथि पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा और उन्हें प्रिय भोग अर्पित करने से भक्त को देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भोग लगाने का अर्थ केवल भोजन चढ़ाना ही नहीं, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और भक्ति का भाव प्रकट करना है। जब साधक सच्चे मन से भोग अर्पित करता है, तो माँ उसके जीवन के कष्ट दूर करती हैं और उसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
2. सफलता और कार्य सिद्धि
माँ सिद्धिदात्री को चना, हलवा, खीर, पूड़ी, नारियल और मौसमी फल अत्यंत प्रिय माने जाते हैं। इन व्यंजनों का भोग लगाने से साधक के सभी अधूरे कार्य पूरे होने लगते हैं। माना जाता है कि माँ की आराधना और भोग के प्रभाव से जीवन की रुकावटें दूर होती हैं और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
3. मोक्ष और आध्यात्मिक लाभ
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप सिद्धियों और मोक्ष का मार्ग दिखाने वाला है। जब भक्त उनके प्रिय भोग अर्पित करता है, तो न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि उसे आध्यात्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग भी मिलता है। यह साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आत्मिक संतोष प्रदान करता है।
भोग लगाने की विधि
1. पूजा की तैयारी: सबसे पहले पूजा स्थल को स्वच्छ करें और माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा या चित्र को फूलों और मालाओं से सजाएँ। दीपक जलाएँ और धूप प्रज्वलित करें।
2. भोग बनाना: माँ को प्रिय चना, पूड़ी, हलवा, खीर, नारियल और मौसमी फल सात्विक तरीके से तैयार करें। भोजन बनाते समय शुद्धता और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखें।
3. अर्पण प्रक्रिया: पूजा के दौरान जल, अक्षत, रोली और पुष्प चढ़ाने के बाद भोग अर्पित करें। भोग पहले देवी को समर्पित करें और उसके बाद परिवार तथा भक्तजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
4. प्रिय रंग का महत्व: माँ सिद्धिदात्री को सफेद और बैंगनी रंग विशेष रूप से प्रिय हैं। इसलिए महानवमी पर इन रंगों के वस्त्र पहनकर पूजा और भोग अर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
5. मंत्र और प्रार्थना: भोग लगाते समय माँ के मंत्रों का जप करें और सच्चे मन से आशीर्वाद की प्रार्थना करें। इससे भक्त और देवी के बीच भक्ति का गहरा संबंध स्थापित होता है।
भोग लगाने से मिलने वाले लाभ
1. कार्य सिद्धि: भोग अर्पित करने से जीवन की रुकावटें दूर होती हैं और कार्य सफल होते हैं।
2. सुख-समृद्धि: घर में धन, अन्न और खुशहाली बनी रहती है।
3. आध्यात्मिक प्रगति: साधक को मानसिक शांति और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।
4. मोक्ष की प्राप्ति: माँ सिद्धिदात्री की कृपा से साधक सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
5. परिवार का कल्याण: देवी की पूजा और भोग से पूरे परिवार पर कृपा बनी रहती है और सभी के जीवन में स्वास्थ्य व सुख आता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा नवमी के दिन की जाती है और इन्हें सभी सिद्धियाँ देने वाली देवी माना जाता है। इनकी उपासना से व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं और घर में खुशहाली व समृद्धि बनी रहती है। श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करने पर साधक को मानसिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माँ सिद्धिदात्री का यह रूप जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और दिव्य आशीर्वाद लाता है।
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