क्या आप जानते हैं माँ सिद्धिदात्री को कौन सा फल प्रिय है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या फल प्राप्त होते हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल और स्पष्ट शब्दों में।
मां सिद्धिदात्री नवदुर्गा का नवम और अंतिम स्वरूप हैं, जिन्हें सिद्धियों और शक्तियों की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनका स्वरूप दिव्य, करुणामयी और ज्ञान से परिपूर्ण है। मान्यता है कि उनकी आराधना से साधक को अष्टसिद्धि और नव निधियों की प्राप्ति होती है। इस लेख में जानिए मां सिद्धिदात्री का महत्व, उनकी विशेषताएँ और उनकी पूजा से मिलने वाले लाभ।
नवरात्रि के पावन नौ दिनों में प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों में अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण रूप है माँ सिद्धिदात्री का। “सिद्धिदात्री” नाम में ‘सिद्धि’ का अर्थ होता है अलौकिक शक्तियाँ और ‘दात्री’ का अर्थ होता है दान देने वाली। यानी माँ सिद्धिदात्री वे देवी हैं जो अपने भक्तों को सिद्धियाँ, शक्तियाँ और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का वरदान देती हैं।
माँ का स्वरूप अत्यंत मनोहारी और करुणामयी बताया गया है। वे कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। उनके चार हाथ हैं, वे एक हाथ में शंख, दूसरे में चक्र, तीसरे में गदा और चौथे में कमल धारण करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने देवी शक्ति की आराधना की तो माँ सिद्धिदात्री ने उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियां व अर्धनारीश्वर का रूप प्रदान किया।
धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में माँ सिद्धिदात्री के लिए किसी विशेष फल का उल्लेख नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि माँ को विशेष रूप से तिल और तिल से बने व्यंजन अर्पित करने की परंपरा सबसे अधिक प्रचलित है।
नवरात्रि के नौवें दिन मां को तिल से बनी चीज़ें जैसे तिल-गुड़ के लड्डू, तिल की बर्फी या तिल का हलवा अर्पित करने का विधान है। कई स्थानों पर सूखे मेवे और खीर भी माँ को भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं।
इसके अलावा माता सिद्धिदारी को हलवा-पूरी और चने का भोग अर्पित करने की भी मान्यता है। कहा जाता है कि इस भोग से माता विशेष प्रसन्न होती हैं।
यदि आप फल अर्पित करना चाहें तो अपनी श्रद्धा और स्थानीय परंपरा के अनुसार नारियल, या ताजे मौसमी फल जैसे सेब, अनार या केला भी चढ़ा सकते हैं, लेकिन पौराणिक और मान्य स्रोत यही बताते हैं कि माँ सिद्धिदात्री को तिल, तिल से बने प्रसाद, हलवा-पूरी और चने सबसे प्रिय हैं। इसलिए इन भोग को ही प्राथमिकता देना अधिक उचित है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा में फल के अलाव भी कई सामग्री अर्पित की जाती हैं। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं
तिल और तिल से बने व्यंजन
हलवा-पूरी, चना, खीर
सूखे मेवे (काजू, बादाम, किशमिश, अखरोट)
दूध से बने मिष्ठान
नारियल और अक्षत
लाल फूल, विशेषकर कमल का फूल
घी का दीपक और अगरबत्ती
देवी-पूजा में भोग लगाना भक्त का देवी के प्रति समर्पण और आत्मिक संबंध का प्रतीक है। मान्यता है कि माँ सिद्धिदात्री को विशेषकर तिल-गुड़ का भोग लगाने से भक्त के साथ कोई आकस्मिक घटना होने का भय समाप्त होता है, और आने वाले सभी संकटों से रक्षा मिलती है। वहीं, हलवा-पूरी, सूखे मेवे और खीर जैसे भीग जीवन में समृद्धि और शांति लाते हैं।
भोग लगाने का एक और महत्व यह भी है कि यह भक्त के अहंकार को समाप्त कर समर्पण का भाव जागृत करता है। देवी को भोग अर्पित करने का अनुष्ठान ये भी दर्शाता है कि जीवन की सारी वस्तुएं माता की ही देन हैं, जिन्हें श्रद्धापूर्वक समर्पित कर हम उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
प्रातः काल उठकर नित्य कर्म क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करें, और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
सबसे पहले घर या मंदिर में पूजा का स्थान साफ करें। इसके माँ के चित्र या प्रतिमा को एक आसन पर विराजमान करें।
अब श्रद्धापूर्वक माता सिद्धिदात्री का आह्वान करें, और उनके सम्मुख घी का दीपक जलाएँ।
इसके बाद फूल, अक्षत और चंदन अर्पित करें। फिर तिल और तिल-गुड़ के लड्डू या हलवा, खीर आदि जो भी भोग तैयार किया हो, वह माँ को समर्पित करें।
यदि आप फल अर्पित कर रहे हैं, तो उन्हें अच्छे से धोकर थाल में सजाएँ और माँ को चढ़ाएं।
सभी वस्तुएं अर्पित करने के बाद “ॐ ऐं ह्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः” मंत्र का जप करें और फिर माँ की आरती गाएँ।
आरती पूर्ण होने के बाद माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना करें, और भोग को प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों में बाँट दें।
माँ सिद्धिदात्री को तिल, फल व उनके अन्य प्रिय भोग अर्पित करने से भक्त की पूजा विधिवत पूर्ण होती है, और व्रत उपासना का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। इससे जातक को कई लाभ मिलते हैं, जैसे:
तिल-गुड़ का प्रसाद चढ़ाने से भविष्य में किसी तरह की होने वाली आकस्मिक घटना से रक्षा होती है, और जातक दीर्घायु होते हैं।
खीर और सूखे मेवे अर्पित करने से घर में समृद्धि और शांति आती है।
हलवा-पूरी, चना व फल का भोग अर्पित करने से भी माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्त को सुखमय जीवन का वरदान देती हैं।
माता को भोग अर्पित करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उनकी कृपा से साधक के जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं, और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ये थी माता सिद्धिदात्री के स्वरूप, महत्व व प्रिय भोग से जुड़ी विशेष जानकारी। इस नवरात्रि आप भी विधि विधान से माता की आराधना करें। हमारी कामना है मां सिद्धिदात्री आपपर सदा अपना आशीर्वाद बनाए रखें, और सम्पन्नता व सौभाग्य का वरदान दें।
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