क्या आप जानते हैं माँ कालरात्रि का वाहन कौन सा है और इसका धार्मिक व प्रतीकात्मक महत्व क्या है? यहाँ पढ़ें माँ कालरात्रि के वाहन साँप के बारे में पूरी जानकारी।
नवरात्रि के सातवें दिन की पूजा में मां कालरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता है। उन्हें आदिशक्ति का रूप माना जाता है, जो संसार के समस्त दुखों और बुराईयों का नाश करती हैं। उनकी पूजा से जीवन में शांति, समृद्धि और रक्षात्मक शक्तियों का वास होता है। आज के लेख में जानें मां कालरात्रि की कथा और उनके वाहन की मान्यता के बारे में।
माँ कालरात्रि का वाहन गधा (गर्दभ) है, जो उनके उग्र और विनाशकारी स्वरूप को दर्शाता है। नवरात्रि के अन्य रूपों में माँ दुर्गा को सिंह की सवारी करती दिखती हैं, जो शक्ति, साहस और नियंत्रण का प्रतीक है, लेकिन कालरात्रि के रूप में, उनका वाहन गधा होता है, जो साधना में संयम और साधक की आत्मनियंत्रण क्षमता का सूचक है। गधा सामान्यतया धीमी गति और सहनशीलता का प्रतीक माना जाता है। माता कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के अनेक विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है।
माँ कालरात्रि का गधा वाहन साधना और आत्म-नियंत्रण का गहरा संदेश देता है। गधा को सामान्यतया बोझ उठाने वाला और सरल-स्वभावी माना जाता है, जो इसे प्रतीक बनाता है कि साधक को अपनी इन्द्रियों और मन को नियंत्रण में रखना चाहिए। इस वाहन का धार्मिक महत्व यह है कि जब उग्र देवी कालरात्रि की शक्तियां जाग्रत होती हैं, तो साधक की इन्द्रियाँ भी पूर्ण रूप से आज्ञाकारी और संयमी हो जाती हैं। इससे साधक का मन और आत्मा शुद्ध होता है तथा वह सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्त हो जाता है। गधे पर सवार माँ कालरात्रि का यह स्वरूप यह सिखाता है कि शक्ति का सही उपयोग तभी संभव है जब मन और इन्द्रियाँ नियंत्रित हों। यह देवी दुर्गा के सातवें रूप के रूप में प्रकट होती हैं, जिनका उद्देश्य राक्षसों और दुष्ट शक्तियों का संहार करना है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय तीनों लोकों में असुरों का आतंक छा गया था। शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड और रक्तबीज जैसे भयंकर राक्षसों ने देवताओं को पराजित कर स्वर्गलोक तक पर कब्ज़ा जमा लिया था। चारों ओर भय और अराजकता फैल गई। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की विनती की। भगवान शिव ने देवी पार्वती से आग्रह किया कि वे इस संकट का समाधान करें। देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और युद्धभूमि में अवतरित हुईं। सबसे पहले उन्होंने शुंभ-निशुंभ का वध किया, फिर चंड और मुंड का अंत किया, जिससे उन्हें चामुंडा कहा गया, लेकिन सबसे विकराल था रक्तबीज असुर, जिसके शरीर से गिरने वाली हर रक्तबूंद से नया रक्तबीज जन्म लेता था। जब उसका नाश असंभव जान पड़ा, तब देवी दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को प्रकट किया। मां कालरात्रि ने जैसे ही युद्धभूमि में प्रवेश किया, उन्होंने अपनी ज्वलंत जिह्वा से रक्तबीज की हर रक्तबूंद को भूमि पर गिरने से पहले ही निगल लिया। इस प्रकार रक्तबीज का विस्तार रुक गया और देवी दुर्गा ने उसका वध कर समस्त लोकों को भयमुक्त किया। यह कथा मां कालरात्रि की अपार शक्ति, उनके रौद्र स्वरूप और रक्षात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, जो बताती है कि जब बुराई सीमा पार कर जाए, तब देवी अपने उग्रतम रूप में प्रकट होकर उसका संहार करती हैं।
मां कालरात्रि पूजा विधी
स्नान और शुद्धता: मां कालरात्रि की पूजा के लिए प्रातः स्नान करके स्वच्छ लाल या पीले वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें।
स्थापना और पूजन सामग्री: इस कार्य के बाद मां कालरात्रि की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और रोली, अक्षत, दीपक, धूप और रातरानी के फूल चढ़ाएं।
भोग अर्पण: मां कालरात्रि को गुड़ या गुड़ से बनी मिठाई जैसे हलवा अत्यंत प्रिय है। इसका भोग चढ़ाएं।
मंत्र जाप और पाठ: अब रुद्राक्ष माला से मां के समक्ष बैठकर बीज मंत्र और स्तुति मंत्र का जाप और दुर्गा चालीसा व सप्तशती का पाठ करें।
आरती और आशीर्वाद: पूजा के अंत में मां की आरती करें और क्षमा प्रार्थान करके मां से आशीर्वाद की प्रार्थना करें इसके बाद प्रसाद वितरित करें।
मां कालरात्रि की पूजा के लाभ
भय और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों का नाश होता है।
साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
रुके हुए कार्यों में सफलता मिलती है।
मां की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
मां कालरात्रि की पूजा से भक्तों को अद्भुत आत्मबल, साहस और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है। नवरात्रि की सप्तमी तिथि पर मां के इस उग्र रूप की साधना विशेष फलदायी मानी जाती है। मां कालरात्रि की आराधना साधक को निर्भय बनाती है और हर बाधा का समाधान प्रदान करती है।
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