
नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली माँ चंद्रघंटा की पावन कथा, स्वरूप और पूजन विधि जानें। उनकी कृपा से भक्तों को मिलता है साहस, शांति और जीवन में सफलता।
माँ चंद्रघंटा की कथा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप से संबंधित है। मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा के उपासकों को देवी चंद्रघंटा की कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। उनकी आराधना व कथा पाठ से भक्तों को साहस, शक्ति, आत्मविश्वास और विजय की प्राप्ति होती है। नीचे विस्तार से पढ़िए माँ चंद्रघंटा की पावन कथा।
बहुत समय पहले असुरराज महिषासुर ने कठिन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया। जब ब्रह्माजी उसके सामने प्रकट हुए, तो महिषासुर ने अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्माजी ने समझाया कि यह संभव नहीं है क्योंकि जो जन्म लेता है उसका अंत होना निश्चित है। तब महिषासुर ने चतुरता से कहा - “हे प्रभु, मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों ही हो, क्योंकि मैं स्त्रियों की शक्ति को तुच्छ समझता हूँ।”
ब्रह्माजी ने "तथास्तु" कह दिया। यह वरदान पाकर महिषासुर अभिमानी हो गया और तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा। उसने इन्द्रलोक पर आक्रमण कर देवताओं को परास्त कर दिया। देवराज इन्द्र समेत सभी देवता महिषासुर की शक्ति से भयभीत होकर ब्रह्मा, विष्णु और महादेव की शरण में पहुँचे।
देवताओं ने अपनी व्यथा सुनाई तो तीनों देव अत्यंत क्रोधित हो उठे। उस समय उनके मुख से एक प्रचंड ऊर्जा निकली, जो तेजोमय अग्नि के समान थी। उसी ऊर्जा से एक देवी का प्राकट्य हुआ, जिनका स्वरूप अलौकिक और दिव्य था। दस भुजाओं से सुशोभित उस देवी के मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की आकृति दमक रही थी।
देवी को युद्ध के लिए समर्थ बनाने हेतु सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र भेंट किए। भगवान शंकर ने उन्हें त्रिशूल प्रदान किया, भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र अर्पित किया, इन्द्रदेव ने एक विशेष घंटा भेंट किया, जिसकी ध्वनि से शत्रु भयभीत हो जाते थे, सूर्यदेव ने अपना तेज, तलवार और सिंह दिया। इस तरह मां चंद्रघंटा स्वरूप का प्रादुर्भाव हुआ।
माँ चंद्रघंटा ने सिंह पर आरूढ़ होकर रणभूमि में प्रवेश किया। उनके आते ही देवी की घंटियों से उत्पन्न ध्वनि से सम्पूर्ण ब्रह्मांड गूंज उठा। इस दिव्य नाद से असुरों का हृदय कांप उठा और वे भयभीत हो गए। महिषासुर और माँ चंद्रघंटा के बीच भीषण युद्ध हुआ। माँ चंद्रघंटा ने अपने शंख, धनुष, तलवार, गदा और त्रिशूल से असंख्य असुरों का संहार किया। अंततः माँ ने महिषासुर का भी वध कर तीनों लोकों को उसके अत्याचार से मुक्त कराया।
माँ चंद्रघंटा की कथा यह संदेश देती है कि चाहे दुष्ट कितना भी बलवान क्यों न हो, धर्म और शक्ति से युक्त माता सदैव उसे परास्त करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जो साधक भय, शत्रु या नकारात्मक शक्तियों से परेशान रहते हैं, उनके लिए माँ चंद्रघंटा की आराधना अत्यंत कल्याणकारी है। ऐसा माना जाता है कि माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों के हर संकट का निवारण करती हैं और उन्हें जीवन में सफलता तथा सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।
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