पुनर्वसु नक्षत्र
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पुनर्वसु नक्षत्र

क्या करें और क्या न करें पुनर्वसु नक्षत्र में? जानिए जन्म, विवाह, करियर और उपायों से जुड़ी जरूरी जानकारी!

पुनर्वसु नक्षत्र के बारे में

पुनर्वसु नक्षत्र वाले जातक सामान्यतः शांत, आशावादी और आध्यात्मिक झुकाव वाले होते हैं। इनमें नई शुरुआत करने की शक्ति होती है और ये जीवन में कई बार पुनर्निर्माण करने में सक्षम होते हैं। यह नक्षत्र शिक्षा, अध्यात्म, साहित्य और सामाजिक कार्यों से जुड़े लोगों के लिए विशेष अनुकूल माना जाता है। इस नक्षत्र के प्रभाव, स्वभाव, करियर विकल्प और शुभ उपायों की विस्तृत जानकारी पाने के लिए पूरा लेख अवश्य पढ़ें।

पुनर्वसु नक्षत्र क्या है?

पुनर्वसु नक्षत्र वैदिक ज्योतिष का सातवां नक्षत्र है, जो मिथुन और कर्क राशि में स्थित होता है। इसका स्वामी देवगुरु बृहस्पति है और प्रतीक धनुष या तीर माना जाता है। इस नक्षत्र का अर्थ होता है “पुनः अच्छा होना” यानी नवीनीकरण और नई शुरुआत का संकेत। यह नक्षत्र ज्ञान, सकारात्मकता, पुनर्जन्म और आध्यात्मिकता से जुड़ा है। पुनर्वसु जातक सामान्यतः दयालु, आशावादी, विद्वान और संतुलित स्वभाव के होते हैं। ये लोग कठिन परिस्थितियों से उबरने की क्षमता रखते हैं। यह नक्षत्र देवी अदिति से जुड़ा है, जो संरक्षण और मातृत्व की प्रतीक हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र का ज्योतिषीय महत्व

पुनर्वसु नक्षत्र का ज्योतिषीय महत्व बहुत गहरा और शुभ माना जाता है। यह नक्षत्र आध्यात्मिक उन्नति, पुनर्जन्म, नई शुरुआत और सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक है। इसके स्वामी गुरु (बृहस्पति) हैं, जो ज्ञान, धर्म, सद्गुण और विस्तार का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह नक्षत्र मिथुन राशि (3 चरण) और कर्क राशि (1 चरण) में आता है, जिससे इसके जातकों में बुद्धिमत्ता और भावुकता दोनों का संतुलन देखने को मिलता है।

  • यह नक्षत्र नए कार्यों की शुरुआत, शिक्षा, यात्रा, संतान सुख और आध्यात्मिक कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
  • इसके जातक कठिनाइयों से उभरने और खुद को फिर से स्थापित करने में सक्षम होते हैं।
  • यह नक्षत्र देवी अदिति से जुड़ा है, जो मातृत्व, सुरक्षा और पुनर्नवजीवन की प्रतीक हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी ग्रह कौन है?

पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी ग्रह बृहस्पति (गुरु) है। बृहस्पति ज्ञान, धर्म, बुद्धि, और आध्यात्म का प्रतिनिधित्व करता है, जो पुनर्वसु नक्षत्र की विशेषताओं के अनुरूप है।

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातकों का स्वभाव और विशेषताएं

  • ये लोग दूसरों के प्रति बहुत सहानुभूतिशील और मददगार होते हैं।

  • इनके विचार गहरे और दूरदर्शी होते हैं। ज्ञान प्राप्ति में रुचि रखते हैं।

  • मुश्किल समय में भी आशा नहीं खोते, हमेशा बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं।

  • परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता रखते हैं।

  • आध्यात्म और धर्म में गहरी रुचि रखते हैं, जीवन में सच्चाई और नैतिकता को महत्व देते हैं।

  • क्रोध और विवाद से दूर रहना पसंद करते हैं।

  • कला, संगीत या लेखन जैसे क्षेत्रों में प्रतिभाशाली हो सकते हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे लोगों का करियर और व्यवसाय

  • इन लोगों में अलग-अलग क्षेत्रों में खुद को ढालने की क्षमता होती है।

  • करियर में बदलाव या नए अवसरों को आसानी से अपना लेते हैं।

  • शिक्षक, प्रोफेसर, शोधकर्ता, लेखक या ज्ञान से जुड़े क्षेत्र (लाइब्रेरियन, काउंसलर) में सफलता मिलती है।

  • दर्शन, धर्म, मनोविज्ञान या विदेशी भाषाओं में रुचि हो सकती है।

  • HR (मानव संसाधन), मीडिया, सोशल वर्क या सार्वजनिक संबंध (PR) में अच्छा प्रदर्शन।

  • लोगों के साथ मिलकर काम करने वाले पेशे (जैसे सलाहकार, मनोचिकित्सक) इनके लिए उपयुक्त।

  • लेखन, पत्रकारिता, अनुवाद, मार्केटिंग या मीडिया से जुड़े करियर में सफलता।

पुनर्वसु नक्षत्र और विवाह जीवन

  • ये लोग शांत, विचारशील और समझदार होते हैं, जो विवाह में तनाव कम करते हैं।

  • वे अपने साथी की भावनाओं को गहराई से समझते हैं और समस्याओं को बातचीत से सुलझाने में विश्वास रखते हैं।

  • पुनर्वसु नक्षत्र के जातक भावुक और संवेदनशील होते हैं, जिससे उनका विवाह जीवन प्यार और विश्वास पर आधारित होता है।

  • वे रोमांटिक हो सकते हैं, लेकिन साथ ही व्यावहारिक भी, जिससे रिश्ता संतुलित रहता है।

  • इनका विवाह जीवन सिर्फ भौतिक सुख तक सीमित नहीं होता, बल्कि आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास पर भी केंद्रित होता है।

  • ये अपने साथी के साथ धर्म, दर्शन या ज्ञान-विज्ञान पर चर्चा करना पसंद करते हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र के लिए उपाय और शुभ मंत्र

उपाय

  • पुनर्वसु का स्वामी गुरु (बृहस्पति) है, इसलिए गुरुवार के दिन- पीले वस्त्र पहनें। गुड़ या चने की दाल का दान करें। हल्दी या केसर का तिलक लगाएं।

  • पुनर्वसु पर बुध का भी प्रभाव होता है, इसलिए- हरे रंग के कपड़े या मूंगा पहनें। हरी मूंग की दाल दान करें। बुधवार को "ॐ बुं बुधाय नमः" मंत्र का जाप करें।

  • पुनर्वसु नक्षत्र के जातकों को शिव-पार्वती की पूजा से विशेष लाभ मिलता है। सोमवार को शिवलिंग पर दूध और बेलपत्र चढ़ाएँ। "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का नियमित जाप करें।

  • विद्या और बुद्धि के लिए सरस्वती मंत्र का जाप करें- "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" (प्रतिदिन 108 बार)

  • घर में तुलसी का पौधा लगाएँ और प्रतिदिन जल चढ़ाएँ। 

  • इससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

शुभ मंत्र

  • "ॐ बृहस्पतये नमः" (गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए, प्रतिदिन 108 बार जपें)

  • "ॐ क्लीं कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात्"

  • "ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः"

  • "ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं"

पुष्य नक्षत्र में क्या करें

  • पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन करने का सर्वोत्तम समय।

  • मंदिर जाकर दान-पुण्य (विशेषकर काले तिल, कंबल, अनाज)

  • गीता, रामायण या वेदों का पाठ करें

  • विवाह, मुंडन, नामकरण, गृहप्रवेश जैसे संस्कार करना शुभ

  • नया व्यवसाय, नौकरी या शैक्षणिक कोर्स शुरू करें

  • जमीन-संपत्ति खरीदना या निर्माण कार्य शुरू करना लाभदायक

  • आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन, व्रत या डिटॉक्स करना अच्छा

  • शुभ हर्बल पौधे (तुलसी, आंवला) लगाएँ

  • गरीबों को भोजन, वस्त्र या शिक्षा का दान दें

  • पशु-पक्षियों को भोजन डालें (विशेषकर कौओं को)

पुष्य नक्षत्र में क्या न करें?

  • मांस-मदिरा का सेवन न करें

  • किसी से झगड़ा या अपशब्द कहने से बचें

  • श्मशान या अशुभ स्थानों पर जाने से बचें

  • कर्ज लेना या देने से बचें

पुनर्वसु नक्षत्र जातकों के जीवन में शुद्धि, पुनरारंभ और आंतरिक विकास लाने वाला एक आध्यात्मिक और कल्याणकारी नक्षत्र है। पुष्य नक्षत्र का सही उपयोग करने से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

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Published by Sri Mandir·July 7, 2025

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