क्या आप जानना चाहते हैं केतु की महादशा में ग्रहों की अंतर्दशा आपके जीवन को कैसे बदलती है? जानें प्रभाव, शुभ-अशुभ फल और उपाय अभी।
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की महादशा और अंतर्दशा का गहरा महत्व है। किसी ग्रह की महादशा के दौरान, व्यक्ति के जीवन में उस ग्रह से संबंधित फल मिलते हैं। जब केतु की महादशा चलती है, जो कुल 7 वर्षों की होती है, तब व्यक्ति के जीवन में अचानक और अप्रत्याशित बदलाव आते हैं। केतु को वैराग्य, आध्यात्मिकता, मोक्ष, और अलगाव का कारक माना जाता है। केतु की महादशा के भीतर, जब विभिन्न ग्रहों की अंतर्दशाएँ आती हैं, तो उनके प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग ढंग से प्रकट होते हैं। आइए, केतु की महादशा में आने वाली इन सभी अंतर्दशाओं के प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
यह अंतर्दशा लगभग 1 वर्ष, 2 महीने और 27 दिनों तक चलती है। शुक्र को भौतिक सुख, प्रेम, धन और कला का ग्रह माना जाता है, जबकि केतु इन सभी से वैराग्य और अलगाव का कारक है। ऐसे में, इन दोनों ग्रहों की युति एक विरोधाभासी स्थिति पैदा करती है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि शुक्र और केतु दोनों कुंडली में अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को आध्यात्मिक कला या रचनात्मकता के क्षेत्र में सफलता दिला सकती है। व्यक्ति अपनी रचनात्मकता को मोक्ष या वैराग्य की ओर मोड़ सकता है।
नकारात्मक प्रभाव: इस अंतर्दशा में व्यक्ति के प्रेम संबंधों और वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ सकता है। जीवनसाथी के साथ बेवजह की बहस, झगड़े और यहाँ तक कि अलगाव की स्थिति भी बन सकती है। व्यक्ति भोग-विलास की ओर आकर्षित हो सकता है, लेकिन अंत में उसे संतुष्टि नहीं मिलती। धन और संपत्ति के मामलों में भी नुकसान हो सकता है। व्यक्ति को आँखों, गुप्तांगों या हार्मोन से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। मन में ईर्ष्या और द्वेष जैसी भावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
उपाय: शुक्रवार को सफेद वस्त्र धारण करें, मां लक्ष्मी की उपासना करें और सुहागिन स्त्रियों को वस्त्र दान करें।
केतु की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा 4 महीने और 6 दिनों तक चलती है। सूर्य आत्मा, अहंकार, पिता, सम्मान और सरकारी कार्यों का कारक है। केतु को सूर्य का शत्रु माना जाता है, इसलिए इनकी युति से ग्रहण दोष जैसा प्रभाव उत्पन्न होता है, जो अशुभ माना जाता है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में सूर्य और केतु दोनों मजबूत और अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को अध्यात्म के क्षेत्र में उच्च पद दिला सकती है। व्यक्ति को अपने पिता से सहयोग मिल सकता है।
नकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा व्यक्ति के लिए मान-सम्मान की हानि, सरकारी कार्यों में बाधा और पिता के साथ संबंधों में तनाव ला सकती है। नौकरीपेशा लोगों को कार्यस्थल पर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, पदोन्नति में रुकावट आ सकती है, और वरिष्ठ अधिकारियों से मतभेद हो सकते हैं। व्यक्ति का अहंकार बढ़ सकता है, जिससे दूसरों के साथ उसके संबंध खराब होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से, हृदय या आँखों से संबंधित समस्याएँ हो सकती हैं।
उपाय: रविवार को आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें, गेहूं और गुड़ का दान करें।
यह अंतर्दशा 7 महीने तक चलती है। चंद्र मन, माता, भावनाएं, यात्रा और शांति का कारक है। केतु और चंद्र की युति को भी ग्रहण दोष जैसा माना जाता है, जो मानसिक शांति को भंग करता है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में चंद्र और केतु अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को गहन ध्यान, योग और मन को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान कर सकती है। व्यक्ति को आध्यात्मिक अनुभव हो सकते हैं।
नकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा मानसिक अशांति, बेचैनी और तनाव को बढ़ाती है। व्यक्ति बेवजह के भय, चिंता और असुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है। माता के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है या उनसे दूरी बढ़ सकती है। व्यक्ति को जल से भय हो सकता है। व्यवसाय में हानि और अनावश्यक खर्चों के कारण आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। यात्राओं में भी रुकावटें और मुश्किलें आ सकती हैं।
उपाय: सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाएँ, मोती धारण करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।
यह अंतर्दशा 4 महीने और 27 दिनों तक चलती है। मंगल ऊर्जा, साहस, पराक्रम, भूमि और छोटे भाई का कारक है। केतु और मंगल दोनों ही उग्र ग्रह माने जाते हैं, इसलिए इनकी युति विस्फोटक हो सकती है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में मंगल और केतु दोनों बलवान हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को साहस, पराक्रम और ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे वह कठिन से कठिन कार्यों को भी पूरा कर सकता है। व्यक्ति को जमीन-जायदाद से लाभ हो सकता है।
नकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा क्रोध, आक्रामकता और उग्रता को बढ़ाती है। व्यक्ति बेवजह के झगड़ों, मुकदमों और दुर्घटनाओं में फंस सकता है। जमीन-जायदाद के विवादों के कारण भाई-बहनों से संबंध खराब हो सकते हैं। रक्तचाप, चोट या सर्जरी जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। यह अवधि व्यक्ति के लिए अचानक और अप्रत्याशित संकट ला सकती है।
उपाय: मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करें, मसूर की दाल और लाल वस्त्र दान करें।
यह अंतर्दशा लगभग 1 वर्ष और 18 दिनों तक चलती है। राहु और केतु दोनों छाया ग्रह हैं और एक-दूसरे के विपरीत हैं। राहु भौतिक सुख, माया और भ्रम का कारक है, जबकि केतु वैराग्य और अलगाव का।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में दोनों ग्रह अच्छी स्थिति में हैं, तो यह व्यक्ति को गूढ़ विद्याओं, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और आध्यात्मिक शोध में गहरी रुचि दे सकती है। व्यक्ति को अचानक धन लाभ या अप्रत्याशित सफलता मिल सकती है।
नकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा सबसे अधिक कष्टकारी मानी जाती है। व्यक्ति को भ्रम, मानसिक अशांति, निर्णय लेने में कठिनाई और नकारात्मक विचारों का सामना करना पड़ता है। करियर में अचानक रुकावट आ सकती है और व्यक्ति को समझ नहीं आता कि उसे किस दिशा में जाना चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि से, कोई गुप्त रोग या लाइलाज बीमारी हो सकती है। जीवन में हर तरफ से मुश्किलें और मार पड़ती है।
उपाय: शनिवार को राहु-केतु का शांति पाठ करवाएँ, नीला कपड़ा और सरसों का तेल दान करें।
यह अंतर्दशा 11 महीने और 6 दिनों तक चलती है। गुरु ज्ञान, धर्म, संतान, सम्मान और धन का कारक है। केतु और गुरु की युति को भी शुभ माना जाता है, क्योंकि गुरु के प्रभाव से केतु का वैराग्य सकारात्मक दिशा में बदल जाता है।
सकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा अत्यधिक शुभ फल प्रदान करती है। व्यक्ति की आध्यात्मिकता बढ़ती है और उसे जीवन के उद्देश्य का ज्ञान होता है। व्यक्ति को गुरु का मार्गदर्शन मिलता है, जिससे वह सही निर्णय लेता है। धन, सम्मान और संतान सुख की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को किसी तीर्थ यात्रा का अवसर मिल सकता है।
नकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में गुरु अशुभ हो, तो यह अवधि अहंकार, धार्मिक पाखंड और स्थान परिवर्तन से जुड़ी समस्याएँ ला सकती है।
उपाय: गुरुवार को पीला वस्त्र पहनें, बृहस्पति के मंत्र का जाप करें और गरीब विद्यार्थियों को पुस्तकें दान करें।
यह अंतर्दशा 1 वर्ष, 1 महीना और 9 दिनों तक चलती है। शनि कर्म, न्याय, अनुशासन, मेहनत और दुख का कारक है। केतु और शनि दोनों ही पाप ग्रह हैं, लेकिन इनकी युति को कर्म योग का समय माना जाता है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में शनि और केतु अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देती है। कड़ी मेहनत करने से सफलता मिलती है। यह समय व्यक्ति को बहुत कुछ सिखाता है और उसे जीवन के यथार्थ से परिचित कराता है। यह आध्यात्मिक उन्नति और अनुशासन का समय है।
नकारात्मक प्रभाव: यह अंतर्दशा कड़ी मेहनत के बावजूद कम फल देती है। व्यक्ति को निराशा, असफलता और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। धन हानि, नौकरी में रुकावटें और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। पारिवारिक संबंधों में तनाव और दूरियाँ आ सकती हैं। व्यक्ति को दर-दर भटकना पड़ सकता है।
उपाय: शनिवार को शनि मंदिर जाएँ, तिल और तेल का दान करें, श्रमजीवियों की मदद करें।
यह अंतर्दशा 11 महीने और 27 दिनों तक चलती है। बुध बुद्धि, वाणी, व्यापार, संचार और शिक्षा का कारक है। केतु और बुध की युति को मिश्रित फल देने वाली माना जाता है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि कुंडली में बुध और केतु अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अवधि व्यक्ति को गूढ़ विषयों, ज्योतिष और अनुसंधान में सफलता दिला सकती है। व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग आध्यात्मिक या रचनात्मक कार्यों में कर सकता है। व्यापार और धन में वृद्धि हो सकती है।
नकारात्मक प्रभाव: इस अंतर्दशा में व्यक्ति की वाणी कठोर हो सकती है, जिससे दूसरों के साथ उसके संबंध खराब हो सकते हैं। व्यक्ति को त्वचा, तंत्रिका तंत्र या गले से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। व्यापार में घाटा और आर्थिक नुकसान हो सकता है। मन में संदेह और भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
उपाय: बुधवार को हरे वस्त्र पहनें, गणेश जी की पूजा करें और हरे मूंग का दान करें।
यह अंतर्दशा सबसे पहली होती है और 4 महीने और 27 दिनों तक चलती है। यह अंतर्दशा महादशा के स्वभाव को और अधिक तीव्र कर देती है।
सकारात्मक प्रभाव: यदि केतु कुंडली में मजबूत है, तो यह अवधि व्यक्ति को आध्यात्मिकता के शिखर पर ले जा सकती है। व्यक्ति को अचानक कोई गुप्त ज्ञान प्राप्त हो सकता है। व्यक्ति को धन, सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा मिल सकती है।
नकारात्मक प्रभाव: यदि केतु कमजोर या पीड़ित है, तो यह अंतर्दशा शारीरिक और मानसिक कष्टों को बढ़ाती है। व्यक्ति को दुर्घटनाओं, चोटों, गुप्त रोगों और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है। व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों से दूर हो सकता है। यह वैराग्य और अलगाव की भावना को अत्यधिक बढ़ाती है, जिससे व्यक्ति खुद को अकेला महसूस करता है।
उपाय: मंगलवार या शनिवार को केतु मंत्र का जाप करें, कुत्तों को भोजन कराएँ और तिल का दान करें।
केतु की महादशा में हर अंतर्दशा का प्रभाव अलग-अलग होता है, जो कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। यह महादशा व्यक्ति को भौतिकता से परे ले जाकर अध्यात्म की ओर अग्रसर करती है। यदि ग्रह अच्छी स्थिति में हों तो यह अवधि आध्यात्मिक उन्नति और अप्रत्याशित सफलता दे सकती है, अन्यथा यह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्टों का कारण बन सकती है।
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