क्या आप जानना चाहते हैं विम्शोत्तरी दशा क्या है और यह आपके जीवन को कैसे प्रभावित करती है? जानें इसकी गणना, महत्व और उपाय अभी।
ज्योतिष शास्त्र में किसी घटना या परिणाम के समय का निर्धारण करने के लिए कई विधियों का प्रयोग होता है, जिनमें से एक प्रमुख विधि है विंशोत्तरी दशा। इस प्रणाली के प्रवर्तक महर्षि पराशर माने जाते हैं। उनके द्वारा निर्मित यह विधि चंद्रमा के नक्षत्रों पर आधारित है। विंशोत्तरी दशा ज्योतिषशास्त्र की एक महत्वपूर्ण प्रणाली है, जिसका प्रयोग व्यक्ति के जीवन में होने वाली घटनाओं के समय का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। महर्षि पराशर द्वारा निर्मित यह पद्धति जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है, उस पर आधारित होती है। इसमें कुल 120 वर्षों का चक्र होता है, जिसे सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु जैसे नौ ग्रहों में निश्चित समयावधियों के अनुसार विभाजित किया गया है।
1. जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति: इस दशा पद्धति की गणना व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा की सटीक स्थिति पर आधारित होती है, जिसमें यह देखा जाता है कि चंद्रमा किस राशि और किस अंश पर स्थित है।
2. चंद्रमा का नक्षत्र: जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में मौजूद होता है, वही दशा क्रम की शुरुआत तय करता है। कुल 27 नक्षत्र होते हैं, और हर नक्षत्र का अलग ग्रह स्वामी होता है।
3. नक्षत्र स्वामी ग्रह: जिस नक्षत्र में चंद्रमा स्थित है, उस नक्षत्र का ग्रह स्वामी पहली दशा प्रदान करता है। जैसे, यदि चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में हो, जिसका स्वामी केतु है, तो प्रथम दशा केतु की होगी।
4. प्रारंभिक दशा की अवधि: पहली दशा पूरी अवधि की न होकर जन्म के समय नक्षत्र में चंद्रमा द्वारा तय किए गए भाग के अनुपात में होती है। उदाहरण के लिए, यदि चंद्रमा नक्षत्र का आधा भाग पार कर चुका हो, तो पहली दशा की अवधि भी आधी होगी।
5. दशा का क्रम और कुल अवधि: विंशोत्तरी दशा का पूरा चक्र 120 वर्षों का होता है, जिसे नौ ग्रहों सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु में उनकी निश्चित अवधि के अनुसार बाँटा गया है, और यह क्रम नक्षत्र स्वामी ग्रहों के अनुसार आगे बढ़ता है।
विंशोत्तरी दशा पद्धति में कुल 120 वर्षों का एक पूर्ण चक्र होता है, जिसे नौ ग्रहों में निश्चित समयावधि के अनुसार विभाजित किया गया है। प्रत्येक ग्रह अपनी दशा अवधि में जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर प्रभाव डालता है। ग्रहों का क्रम सदैव केतु से बुध तक रहता है, लेकिन किसी व्यक्ति के लिए दशा की शुरुआत जन्म समय पर चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित हो, उसके स्वामी ग्रह से होती है।
ग्रह क्रम और उनकी अवधि इस प्रकार है:
केतु : 7 वर्ष
यह अवधि प्रायः आध्यात्मिकता, वैराग्य, रहस्यमय अनुभवों और अचानक आने वाले परिवर्तनों से जुड़ी होती है।
शुक्र: 20 वर्ष
इस दशा में भौतिक सुख-सुविधाएं, प्रेम, विवाह, कला, सौंदर्य और विलासिता का प्रभाव प्रमुख रहता है।
सूर्य: 6 वर्ष
इस समय में अधिकार, प्रतिष्ठा, नेतृत्व क्षमता, सरकारी मामलों और आत्मविश्वास में वृद्धि देखी जाती है।
चंद्र : 10 वर्ष
यह अवधि मानसिक स्थिति, भावनाओं, माता, परिवार और घरेलू मामलों से संबंधित होती है।
मंगल: 7 वर्ष
मंगल की दशा में साहस, ऊर्जा, भूमि-वाहन, भाइयों से संबंध और संघर्षपूर्ण स्थितियाँ अधिक सक्रिय रहती हैं।
राहु: 18 वर्ष
राहु की अवधि में अचानक लाभ-हानि, विदेश से जुड़ाव, असामान्य घटनाएँ और महत्वाकांक्षाएं अधिक प्रभावी होती हैं।
गुरु (बृहस्पति): 16 वर्ष
इस दशा में शिक्षा, धन, ज्ञान, धर्म, संतान और सम्मान से जुड़े पहलुओं का विकास होता है।
शनि: 19 वर्ष
शनि की अवधि मेहनत, धैर्य, जिम्मेदारियों, देरी और स्थिरता से संबंधित होती है।
बुध: 17 वर्ष
बुध की दशा बुद्धि, वाणी, व्यापार, शिक्षा, संचार और विश्लेषण क्षमता को प्रभावित करती है।
ज्योतिष में विंशोत्तरी दशा को तीन हिस्सों में बांटा जाता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन-सी घटना कब होगी और उसका असर कैसा होगा।
महादशा
सबसे बड़ी अवधि, जिसमें एक ग्रह कई साल तक असर डालता है। हर ग्रह के साल अलग होते हैं, जैसे शुक्र की 20 साल और राहु की 18 साल।
अंतरदशा (भुक्ति)
महादशा के अंदर की छोटी अवधि। इसमें महादशा का ग्रह और अंतरदशा का ग्रह, दोनों असर डालते हैं।
प्रत्यंतर दशा (सूक्ष्म दशा)
अंतरदशा के अंदर की और भी छोटी अवधि। इसमें तीनों ग्रहों, महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा का मिला-जुला असर देखा जाता है।
विंशोत्तरी दशा में हर ग्रह अपनी महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा में अलग तरह से असर डालता है। यह असर इस बात पर निर्भर करता है कि वह ग्रह कुंडली में किस भाव, राशि और स्थिति में है। सामान्य रूप से प्रभाव इस प्रकार होते हैं:
सूर्य: सही स्थिति में सम्मान, पद, सरकारी काम और आत्मविश्वास बढ़ाता है; गलत स्थिति में अहंकार, पिता से मतभेद और सेहत की समस्या देता है।
चंद्र: शुभ होने पर भावनात्मक संतुलन, माता का सहयोग और पारिवारिक सुख देता है; अशुभ होने पर मन में बेचैनी और घर में तनाव ला सकता है।
मंगल: अच्छा होने पर साहस, ऊर्जा, भूमि-वाहन लाभ और जीत दिलाता है; खराब होने पर झगड़े, चोट या दुर्घटना का योग बनाता है।
बुध: शुभ होने पर बुद्धि, बोलचाल, व्यापार और बातचीत में सुधार करता है; अशुभ होने पर भ्रम और गलत फैसले करवाता है।
गुरु (बृहस्पति): अच्छा होने पर ज्ञान, शिक्षा, धन और सम्मान बढ़ाता है; अशुभ होने पर मौके छूट जाते हैं और आर्थिक नुकसान हो सकता है।
शुक्र: शुभ स्थिति में प्रेम, विवाह, कला, सौंदर्य और सुख देता है; खराब होने पर रिश्तों में खटास और गलत आदतों का योग बनाता है।
शनि: अच्छा होने पर मेहनत, धैर्य, स्थिरता और जिम्मेदारी बढ़ाता है; गलत स्थिति में रुकावटें, देरी और मुश्किलें लाता है।
राहु: सही स्थिति में नई योजनाएं, विदेश से जुड़े अवसर और अचानक लाभ देता है; अशुभ होने पर धोखा, भ्रम और कानूनी परेशानी देता है।
केतु: शुभ होने पर आध्यात्मिकता, ज्ञान और गहरी समझ देता है; खराब होने पर अलगाव, नुकसान और मानसिक तनाव लाता है।
लाभ
जीवन की अहम घटनाओं के समय का अनुमान लगाने में सहायक होती है।
ग्रहों के शुभ और अशुभ असर की जानकारी देती है, जिससे भविष्य की योजनाएं बनाना आसान हो जाता है।
विवाह, व्यापार, पढ़ाई, यात्रा जैसे कार्यों के लिए अनुकूल समय चुनने में मदद करती है।
महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा के सम्मिलित प्रभाव से भविष्यवाणी ज्यादा सटीक होती है।
पहले से उपाय और सावधानियां अपनाने का मौका देती है, जिससे नकारात्मक असर कम किया जा सकता है।
सीमाएं
सही भविष्यवाणी के लिए जन्म का समय पूरी तरह सही होना जरूरी है।
केवल दशा के आधार पर अनुमान नहीं लगाया जा सकता, कुंडली के अन्य योग और ग्रह गोचर भी देखना पड़ते हैं।
ग्रहों का असर व्यक्ति के कर्म, मेहनत और परिस्थितियों के अनुसार बदल सकता है।
अशुभ दशा हमेशा नकारात्मक परिणाम नहीं देती, और शुभ दशा हमेशा सकारात्मक असर नहीं देती।
गहराई से विश्लेषण किए बिना दशा का सही अर्थ निकालना मुश्किल हो सकता है।
विंशोत्तरी दशा के समय अगर कोई ग्रह अशुभ असर दे रहा हो, तो कुछ आसान उपाय अपनाकर उसका नकारात्मक प्रभाव कम किया जा सकता है और अच्छे फल बढ़ाए जा सकते हैं। उपाय हमेशा कुंडली और दशा के अनुसार चुनना सही होता है। सामान्य रूप से ये तरीके अपनाए जाते हैं।
मंत्र जाप: जिस ग्रह की दशा या अंतरदशा हो, उसका विशेष बीज मंत्र या वैदिक मंत्र रोज़ जपें।
दान और सेवा: ग्रह के अनुसार वस्तुएं दान करें, जैसे सूर्य के लिए गेहूं और तांबा, चंद्र के लिए चावल और दूध।
रत्न पहनना: सही ज्योतिषी की सलाह से ग्रह का अनुकूल रत्न पहनें, जैसे गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा या ओपल।
व्रत रखना: ग्रह शांति के लिए उसका विशेष वार का व्रत रखें, जैसे शनिवार को शनि व्रत, सोमवार को शिव उपवास।
पूजा और हवन: ग्रह की शांति के लिए विशेष पूजा या हवन करना चाहिए, जैसे नवग्रह पूजा या शनि शांति हवन।
अच्छे कर्म और संयम: अशुभ समय में धैर्य, अच्छा आचरण और सकारात्मक सोच बनाए रखें, ताकि बुरा असर कम हो।
विंशोत्तरी दशा ज्योतिष की एक अहम विधि है, जिसके जरिए जीवन की घटनाओं का समय और उनका प्रभाव समझा जा सकता है। इसमें महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा के आधार पर ग्रहों के असर का विस्तृत विश्लेषण किया जाता है। सही और सटीक भविष्यवाणी के लिए जन्म समय का बिल्कुल सही होना और कुंडली के अन्य योग व गोचर पर ध्यान देना आवश्यक है। मंत्र जाप, दान, व्रत, पूजा और सकारात्मक सोच जैसे उपाय अपनाकर अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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