दत्तात्रेया वज्र कवच
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दत्तात्रेया वज्र कवच

क्या आप जानते हैं कि दत्तात्रेया वज्र कवच का पाठ करने से अद्भुत आध्यात्मिक और भौतिक लाभ मिलते हैं? जानें इसकी सही विधि और लाभ।

दत्तात्रेया वज्र कवच के बारे में

दत्तात्रेय वज्र कवच, जिसे श्री दत्तात्रेय कवचम स्तोत्र भी कहा जाता है, एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान दत्तात्रेय की कृपा और सुरक्षा प्रदान करता है। इस कवच का जाप करने से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह कवच संकटों, दुखों और बाधाओं से रक्षा करता है। इस कवच के बारे में अधिक जानने के लिए हमारा लेख पढ़ें

दत्तात्रेया वज्र कवच क्या है?

दत्तात्रेय कवच एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच है, जिसे भगवान दत्तात्रेय की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। भगवान दत्तात्रेय, जो त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एक रूप माने जाते हैं, उनका यह कवच भक्तों के जीवन में शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। यह कवच विशेष रूप से ग्रह दोष, तंत्र-मंत्र दोष, गंभीर रोग, बुरी नजर, टोना और वशीकरण जैसी समस्याओं से सुरक्षा प्रदान करता है। दत्तात्रेय वज्र कवच का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से दुख और परेशानियाँ दूर होती हैं। यह कवच मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे पारिवारिक अशांति और मृत्यु भय से राहत मिलती है। अगर किसी व्यक्ति को लगातार इलाज के बावजूद रोग ठीक नहीं हो रहे, तो दत्तात्रेय वज्र कवच का जाप करने से वे धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं।

दत्तात्रेया वज्र कवच श्लोक

II श्री गणेशाय नमः II II श्री दत्तात्रेयाय नमः II

ऋषय उचुः

कथं संकल्पसिद्धिः स्याद्वेवव्यास कलौ युगे।

धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं किमुदाहृतं॥ १॥

व्यास उवाच

शृण्वन्तु ऋषयः सर्वे शीघ्रं संकल्पसाधनं।

सकृदुच्चारमात्रेण भोगमोक्षप्रदायकं॥ २॥

गौरीशृंगे हिमवतः कल्पवृक्षोपशोभितं।

दीप्तेदिव्यमहारत्नहेममंडपमध्यगं॥ ३॥

रत्नसिंहासनासीनं प्रसन्नं परमेश्वरं।

मंदस्मितमुखांभोजं शंकरं प्राह पार्वती॥ ४॥

श्री देव्युवाच

देवदेव महादेव लोकशंकर शंकर।

मंत्रजालानि सर्वाणि यंत्रजालानि कृत्स्नशः॥ ५॥

तंत्रजालान्यनेकानि मया त्वत्तः श्रुतानि वै।

इदानीमं द्रष्टुमिच्छामि विशेषेण महीतलं॥ ६॥

इत्युदीरितमाकर्ण्य पार्वत्या परमेश्वरः

करेणामृज्य सन्तोषात्पार्वतीं प्रत्यभाषत॥ ७॥

मयेदानीं त्वया सार्धं वृषमारुह्य गम्यते।

इत्युक्त्वा वृषमारुह्य पार्वत्या सह शंकरः॥ ८॥

ययौ भूमंडलं द्रष्टुं गौर्याः चित्राणि दर्शयन्।

क्वचित विंध्याचलप्रान्ते महारण्ये सुदुर्गमे॥ ९॥

तत्र व्याहर्तुमायांतं भिल्लंपरशुधारिणं।

वर्ध्यमानं महाव्याघ्रं नखदंष्ट्राभिरावृतं॥ १०॥

अतीव चित्रचारित्र्यं वज्रकाय समायुतं।

अप्रयन्तमनायासमखिन्नं सुखमास्थितं॥ ११॥

पलायन्तं मृगं पश्चादव्याघ्रो भीत्या पलायितः।

एतदाश्चर्यमालोक्य पार्वती प्राह शंकरं॥ १२॥

श्री पार्वत्युवाच

किमाश्चर्यं किमाश्चर्यमग्रे शंभो निरीक्ष्यतां।

इत्युक्तः स ततः शंभुर्दृष्ट्वा प्राह पुराणवित्॥ १३॥

श्री शंकर उवाच

गौरी वक्ष्यामि ते चित्रमवाड्मानसगोचरं।

अदृष्टपूर्वं अस्माभिः नास्ति किंचिन्न न कुत्रचित्॥ १४॥

मया सम्यक समासेन वक्ष्यते शृणु पार्वति।

अयं दूरश्रवा नाम भिल्ल परम धार्मिकः॥ १५॥

समित्कुशप्रसूनानि कंदमूल फलादिकं।

प्रत्यहं विपिनं गत्वा समादाय प्रयासतः॥ १६॥

प्रिये पूर्वं मुनींद्रेभ्यः प्रयच्छति न वांछति।

ते अपि तस्मिन्नपि दयां कुर्वते सर्व मौनिनः॥ १७॥

दलादनो महायोगी वसन्नेव निजाश्रमे।

कदाचित स्मरत सिद्धं दत्तात्रेयं दिगम्बरं॥ १८॥

दत्तात्रेयः स्मर्तृगामी चेतिहासं परीक्षितुं।

तत्क्षणात सोपी योगीन्द्रो दत्तात्रेय उपस्थितः॥ १९॥

तद दृष्टवाश्चर्यतोषाभ्यां दलादन महामुनिः।

संपूजाग्रे निषीदन्तं दत्तात्रेमुवाच तं॥ २०॥

मयोपहूतः संप्राप्तो दत्तात्रेय महामुने।

स्मर्तुगामी त्वमित्येतत किंवदन्ती परीक्षितुं॥ २१॥

मयाद्य संस्मृतोसि त्वमपराधं क्षमस्व मे।

दत्तात्रेयो मुनिं प्राह मम प्रकृतिरिदृशी॥ २२॥

अभक्त्या वा सुभक्त्या वा यः स्मरेन्मामनन्यधीः।

तदानीं तमुपागत्य ददामि तदभीप्सितं॥ २३॥

दत्तात्रेयो मुनिं प्राह दलादन मुनीश्वरं।

यदिष्टं तत् वृणीष्व त्वं यत प्राप्तोSहं त्वया स्मृतः॥ २४॥

दत्तात्रेयं मुनिः प्राह मया किमपि नोच्यते।

त्वच्चित्ते यत्स्थीतं तन्मे प्रयच्छ मुनिपुंगव॥ २५॥

श्री दत्तात्रेय उवाच

ममास्ति वज्रकवचं गृहाणेत्यवदन्मुनिं।

तथेत्यंगीकृतवते दलादन मुनये मुनिः॥ २६॥

स्ववज्रकवचं प्राह ऋषिच्छन्दः पुरःसरं।

न्यासं ध्यानं फलं तत्र प्रयोजनमशेषतः॥ २७॥

अस्य श्रीदत्तात्रेयवज्रकवचस्तोत्रमंत्रस्य

किरातरुपी महारुद्र ऋषिः।

अनुष्टुप् छन्दः।

श्री दत्तात्रेयो देवता।

द्रां बीजं। आं शक्तिः। क्रौं कीलकम्।

ओम आं आत्मने नमः। ओम द्रीं मनसे नमः।

ओम आं द्रीं श्रीं सौः।

ओम क्लां क्लीं क्लुं क्लैम् क्लौं क्लः॥

श्रीदत्तात्रेयप्रसादसिध्यर्थे जपे विनियोगः

अथ करन्यासः

ओम द्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ओम द्रीं तर्जनीभ्यां नमः।

ओम द्रूं मध्यमाभ्यां नमः।

ओम द्रें अनामिकाभ्यां नमः।

ओम द्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

ओम द्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः॥

अथ हृदयादि न्यासः

ओम द्रां हृदयाय नमः।

ओम द्रीं शिरसे स्वाहा।

ओम द्रूं शिखायै वषट्।

ओम द्रैं कवचाय हुं।

ओम द्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

ओम द्रः अस्त्राय फट्।

ओम भूर्भुवःस्वरोमिति दिग्बंधः॥

दत्तात्रेया वज्र कवच का पाठ करने के लाभ / फायदे

बाधाओं से मुक्ति: यह कवच शारीरिक, मानसिक और आर्थिक बाधाओं से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।

सिद्धियों की प्राप्ति: इसके पाठ से मनुष्य को सिद्धियां प्राप्त होती हैं और वह बिना किसी विघ्न के जीवन जीने में सक्षम होता है।

मुक्ति का मार्ग: यह कवच मनुष्य को अंततः मुक्ति प्रदान करता है।

सर्वत्र सुख: यह कवच समस्त सुख-दुःख से परे होकर जीवन्मुक्ति की दिशा में मदद करता है।

संकल्प सिद्धि: यह कवच सभी संकल्पों को सिद्ध करता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष: यह कवच धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में मदद करता है।

शत्रु नाश: यह कवच शत्रुओं को नष्ट करता है और व्यक्ति को यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है।

रोगों का निवारण: यह कवच शारीरिक और मानसिक रोगों को दूर करने में मदद करता है।

जीवन में शांति: यह कवच मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है।

धन की प्राप्ति: यह कवच आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति में सहायक होता है।

कष्टों का नाश: यह कवच जीवन के सभी प्रकार के कष्टों को समाप्त करता है।

प्रभावी सुरक्षा: यह कवच व्यक्ति को सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।

घर में शांति: यह कवच घर में शांति और सुख-शांति बनाए रखने में सहायक होता है।

समाज में सम्मान: यह कवच व्यक्ति को समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाता है।

आध्यात्मिक प्रगति: यह कवच व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ाता है और उसे उच्चतम स्तर तक पहुंचाने में सहायक होता है।

दत्तात्रेया वज्र कवच पाठ विधि

दत्तात्रेय वज्र कवच का पाठ भगवान दत्तात्रेय की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह कवच शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं से रक्षा करने वाला माना जाता है। इस कवच का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है। पाठ विधि के अनुसार, सबसे पहले एक शुद्ध और शांत स्थान का चयन करें, जो घर के पूजा स्थल के पास हो, जहां आपको शांति और ध्यान की अवस्था मिल सके। पाठ प्रारंभ करने से पहले स्नान करके शरीर और मन को शुद्ध करें और हल्के तथा स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर, भगवान दत्तात्रेय का ध्यान करते हुए संकल्प लें कि आप इस कवच का पाठ श्रद्धा और विश्वास से करेंगे, और मन को शांत एवं एकाग्र रखें।

अब, दत्तात्रेय वज्र कवच का पाठ शुरू करें और इसके पहले "ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः" बीज मंत्र का जाप करें, जो भगवान दत्तात्रेय को समर्पित है। यह मंत्र उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का प्रभावी तरीका है। इस कवच का पाठ विशेष रूप से गुरुवार के दिन करना अधिक लाभकारी होता है, हालांकि इसे अन्य दिनों में भी किया जा सकता है। पाठ के बाद भगवान दत्तात्रेय के समक्ष प्रणाम करें और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करें। यदि इस विधि से दत्तात्रेय वज्र कवच का पाठ किया जाए, तो यह जीवन के सभी संकटों से रक्षा करता है और भक्त को मानसिक शांति तथा सुख प्रदान करता है।

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Published by Sri Mandir·April 10, 2025

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