चिता की भस्म वाली होली
चिता की भस्म वाली होली

चिता की भस्म वाली होली

चिता की भस्म वाली होली


मसान में खेलते हैं चिता की भस्म से होली

खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेलें मसाने में होरी।

भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेलें मसाने में होरी।।

बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी, एक ऐसी नगरी जहाँ जन्म और मृत्यु दोनों मंगल है। यहां महाश्मशान भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि देवस्थान। ऐसी अलबेली अविनाशी काशी में जलती चिता की भस्म से विश्व की सबसे अनूठी होली खेली जाती है।

तो चलिए इस लेख में जानते हैं

  1. साल 2023 में चिता भस्म की होली कब है?
  2. चिता भस्म होली क्यों मनाई जाती है? पौराणिक मान्यता
  3. कैसे मनाई जाती है ये अनोखी होली?

साल 2023 में चिता भस्म की होली कब है

चिता भस्म की होली हर वर्ष 'रंगभरी एकादशी' के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है। इस प्रकार यह अनोखी होली इस बार 04 मार्च से खेली जाएगी। हालांकि रंगभरी एकादशी के दिन से मणिकर्णिका घाट की श्मशान की राख से चिता भस्म होली खेलने की शुरुआत हो जाती है। इसी दिन से बनारस में 6 दिनों तक चलने वाला होली का त्यौहार रंग-गुलाल खेलकर बड़े ही धूमधाम से मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

चिता भस्म होली क्यों मनाई जाती है? पौराणिक मान्यता

चिता भस्म होली से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार जो गण 'रंगभरी एकादशी' के उत्सव का हिस्सा नहीं बन पाते हैं, वो सभी बाबा विश्वनाथ के साथ अगले दिन चिता भस्म की होली खेलते हैं। इनमें भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, सन्यासी, कपालिक, अघोरी आदि आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराने अपने ससुराल पहुंचे तो भूत-पिशाचों को देखकर उनके ससुराल पक्ष ने निवेदन किया कि उन्हें बाहर ही रोक दें, वरना वहां उपस्थित सभी लोग भयभीत हो जाएंगे। इस कारण भगवान शिव के गण रंगभरी एकादशी पर उनके गौने के उत्सव का हिस्सा नहीं बन पाए। अतः भगवान शिव ने उन्हें गौने के अगले दिन मिलने का वचन दिया और सब को महाश्मशान घाट बुलाकर उत्सव मनाया। तभी से चिता की भस्म से होली खेलने की परंपरा चली आ रही है।

कैसे मनाई जाती है ये अनोखी होली

रंगभरी एकादशी के अगले दिन भक्त महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर बाबा मसाननाथ के चरणों में चिता की राख समर्पित करते हैं, और यहीं से फाग और राग के साथ होली के उत्सव का आरंभ हो जाता है। उस समय मणिकर्णिका का दृश्य कुछ ऐसा होता है, कि प्रतीत होता है मानो स्वयं भूतनाथ महादेव अपने गणों के साथ वहां प्रकट हो गए हो। आम से लेकर ख़ास तक, संत से लेकर सन्यासी तक, सब काशी की आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, और चिता भस्म की विभूति माथे पर रमा कर भांग पीकर शिव भक्ति में मग्न होकर होली खेलते हैं।

दोस्तों, हमें आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको काशी की चिता भस्म होली से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।

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