होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?
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होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?

क्या होलिका प्रह्लाद को सच में जलाना चाहती थी? या इसके पीछे थी कोई और चाल? जानें इस रहस्यमयी कथा की पूरी सच्चाई!

होलिका दहन के बारे में

होलिका दहन होली के एक दिन पहले फाल्गुन पूर्णिमा की रात को किया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लकड़ी, उपले और सूखी टहनियों से होलिका तैयार की जाती है और विधिपूर्वक अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आइये जानते हैं इसके बारे में

होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?

इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन विशेष रूप से होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लकड़ी और उपले जलाकर पौराणिक परंपराओं का पालन किया जाता है। इस आयोजन के बाद रंगों की होली खेली जाती है, जो प्रेम, उल्लास और भाईचारे का संदेश देती है।

प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुर राज हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा से ऐसा वरदान प्राप्त था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता था, न ही कोई पशु, न दिन में, न रात में, न घर के भीतर, न बाहर, न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु-भक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु की आराधना छोड़ने के लिए अनेक प्रकार से समझाया, धमकाया और अंततः उसे मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की। अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता लेने का निश्चय किया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती थी। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का षड्यंत्र रचा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और स्वयं होलिका जलकर भस्म हो गई।

इस घटना के प्रतीक रूप में फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है, जो यह दर्शाता है कि अहंकार, अन्याय और अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सच्ची आस्था और भक्ति की जीत होती है।

होलिका दहन का महत्व

होलिका दहन भारतीय संस्कृति में अति महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के गहरे संदेश देने वाला पर्व भी है। होलिका दहन का महत्व कई संदर्भ में देखा जा सकता है:

बुराई पर अच्छाई की जीत

इस पर्व की सबसे प्रमुख कथा भक्त प्रह्लाद, उनके दुष्ट पिता हिरण्यकश्यप और उनकी बुरी बुआ होलिका से जुड़ी है। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था और चाहता था कि पूरा संसार उसकी पूजा करे। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह असफल रहा। अंततः उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती, लेकिन विष्णु-कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस घटना के स्मरण में होलिका दहन किया जाता है, जो यह संदेश देता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और भक्ति की जीत होती है।

नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक

होलिका दहन केवल एक पौराणिक कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें नकारात्मकता, ईर्ष्या, द्वेष और अहंकार से मुक्ति पाने की सीख भी देता है। होली के इस पर्व पर लोग अपने भीतर की बुराइयों को त्यागने और प्रेमभाव से जीवन जीने का संकल्प लेते हैं।

रोग-निवारण और प्राकृतिक शुद्धिकरण

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन के दौरान जलने वाली लकड़ियों और उपलों से निकलने वाली ऊर्जा वातावरण को शुद्ध करती है। यह संक्रमण और बीमारियों से बचाव में सहायक होती है, क्योंकि इस समय मौसम परिवर्तनशील होता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

होलिका दहन से जुड़े रीति-रिवाज

होलिका दहन की तैयारी

  • होली से कुछ दिन पहले लोग एक स्थान पर लकड़ियों, उपलों और सूखे पत्तों को इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं।
  • इस आयोजन के लिए मोहल्ले या गाँव के किसी खुले स्थान पर होलिका सजाई जाती है।
  • कुछ स्थानों पर होलिका में गोबर से बने खिलौने, गेहूं की बालियां और नारियल भी अर्पित किए जाते हैं।

पूजन विधि

  • होलिका दहन के समय पूजा की जाती है, जिसमें कच्चा सूत (धागा) होलिका के चारों ओर सात बार लपेटा जाता है।
  • जल, हल्दी, रोली, चावल, नारियल, गन्ना, मूंग, चना और गेंहू की बालियां अर्पित की जाती हैं।
  • विशेष मंत्रों का उच्चारण करते हुए होलिका में अग्नि प्रज्वलित की जाती है।
  • जलती हुई होलिका की परिक्रमा की जाती है और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

होलिका की राख का महत्व

होलिका दहन के अगले दिन लोग उसकी राख को अपने शरीर पर लगाते हैं। मान्यता है कि यह राख नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के साथ-साथ रोगों से भी रक्षा करती है। इसे घर में लाकर शुभ स्थानों पर छिड़कने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

समाज में होली का संदेश

  • यह पर्व जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर सबको एक साथ जोड़ता है।
  • होली पर पुराने गिले-शिकवे मिटाकर लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं और मित्रता को फिर से मजबूत करते हैं।
  • रंगों की यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि जीवन को सकारात्मकता और आनंद के साथ जीना चाहिए।

यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, समाज में प्रेम और भाईचारे की भावना और नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है। इसकी परंपराएं हमें भारतीय संस्कृति की समृद्धि और आध्यात्मिकता का एहसास कराती हैं। धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से भी यह पर्व महत्वपूर्ण है। इस होली पर आइए हम भी अपनी नकारात्मक भावनाओं को जलाकर एक नए उत्साह और प्रेम के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संकल्प लें।

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Published by Sri Mandir·March 7, 2025

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