जम्मू में घूमने की जगह ढूंढ रहे हैं? जानिए उन प्रमुख मंदिरों और दर्शनीय स्थलों के बारे में, जहां हर श्रद्धालु और पर्यटक को एक बार ज़रूर जाना चाहिए।
जम्मू, जिसे "मंदिरों का शहर" कहा जाता है, हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ कई प्राचीन और पवित्र मंदिर स्थित हैं, जो धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं, आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं इसके बारे में...
जम्मू और कश्मीर की पवित्र भूमि सिर्फ हिमालयी सौंदर्य या बर्फ़ीली वादियों के लिए नहीं, बल्कि अपनी दिव्य आध्यात्मिक विरासत के लिए भी जानी जाती है। वैष्णो देवी की शक्ति से लेकर रघुनाथ मंदिर की भव्यता तक, शारदा माता की विद्या से लेकर शंकराचार्य की तपस्थली तक यहाँ के मंदिर सिर्फ ईंट और पत्थर नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और संस्कृति की जीवंत कहानियाँ हैं।
इस लेख में हम आपको ले चलेंगे एक ऐसे अध्यात्मिक सफ़र पर, जहाँ हर मंदिर एक अलग तत्त्व, एक अलग ऊर्जा और एक अलग अनुभूति से भरपूर है।
हमारे वेदों और पुराणों में बताया गया है कि वैष्णो देवी कोई आम देवी नहीं, बल्कि त्रिगुणात्मक शक्ति – सत्व, रज और तम तीनों की शक्ति से परिपूर्ण हैं। ऋग्वेद में जैसा बताया गया है शक्ति तत्त्व ही इस गुफा में तीन पिंडियों के रूप में उपस्थित है, जिन्हें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में पूजा जाता है। देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण में देवी को भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली कहा गया है। कहा जाता है कि त्रिकुटा पर्वत स्वयं देवी के तप और शक्ति से प्रकट हुआ था, जहाँ उन्होंने तपस्या की थी। कलियुग में यह शक्ति पीठ जागृत है और नवरात्रि में यहाँ की गई पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
मान्यता:
वेदों और पुराणों के अनुसार वैष्णो देवी कोई साधारण देवी नहीं, बल्कि त्रिगुणात्मक शक्ति सत्व, रज और तम की अधिष्ठात्री हैं। ऋग्वेद में वर्णित शक्ति तत्त्व ही इस गुफा में तीन पिंडियों के रूप में विद्यमान है, जिन्हें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में पूजा जाता है। देवी भागवत और मार्कण्डेय पुराण में देवी को भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली कहा गया है। कहा जाता है कि त्रिकुटा पर्वत स्वयं देवी के तप और शक्ति से प्रकट हुआ था, जहाँ उन्होंने तपस्या की थी। कलियुग में यह शक्तिपीठ जागृत है और नवरात्रि में यहाँ की गई पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त माँ के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं।
जम्मू का रघुनाथ मंदिर भगवान श्रीराम को समर्पित उत्तर भारत का सबसे भव्य मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 1857 में डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह और उनके पुत्र रणबीर सिंह ने करवाया था। यह मंदिर परिसर सात अलग-अलग मंदिरों का समूह है, जिनमें श्रीराम के साथ लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर की दीवारों पर वैदिक श्लोक, रामायण और महाभारत के दृश्य उकेरे गए हैं। सोने से मढ़े हुए गुंबद और राजस्थानी शैली की वास्तुकला इसे और भी भव्य बनाती है। श्रद्धा, संस्कृति और कला का यह संगम, जम्मू आने वाले हर श्रद्धालु की आत्मा को छू लेता है।
जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर में स्थित शंकराचार्य मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। ज़बरवन पर्वत की चोटी पर स्थित यह मंदिर ज्येष्ठेश्वर मंदिर नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि महान दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने यहां आकर ध्यान किया था, जिसके बाद इस मंदिर का नाम शंकराचार्य मंदिर पड़ा। मंदिर से श्रीनगर और डल झील का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, जो इसे न सिर्फ आध्यात्मिक बल्कि पर्यटक दृष्टि से भी विशेष बनाता है।
अवंतिपुर मंदिर, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर परिसर है, जिसे 9वीं शताब्दी में राजा अवंतिवर्मन ने बनवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु (अवंतिस्वामी) और शिव (अवंतेश्वर) को समर्पित है। गुप्त और कश्मीरी वास्तुकला की मिश्रित शैली में निर्मित यह मंदिर आज खंडहर अवस्था में है, परंतु इसकी उत्कृष्ट नक्काशी और स्थापत्य कला आज भी श्रद्धालुओं और इतिहास प्रेमियों को मोहित करती है। यह स्थान जम्मू-कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और इतिहास के सुनहरे अध्यायों को जीवंत करता है।
6. शारदा माता मंदिर
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के तितवाल क्षेत्र में स्थित शारदा माताजी मंदिर देवी सरस्वती के शारदा स्वरूप को समर्पित एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह मंदिर ऐतिहासिक शारदा पीठ का सांस्कृतिक उत्तराधिकारी माना जाता है, जो लाइन ऑफ कंट्रोल पार पीओके में है।
वर्ष 2023 में इस मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण हुआ और यह भक्तों के लिए फिर से खोल दिया गया। किशनगंगा नदी के किनारे बसे इस मंदिर में माँ शारदा के दर्शन करना विद्या, बुद्धि और आत्मज्ञान प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है, बल्कि भारत की सनातन परंपरा और सांस्कृतिक गौरव का जीता-जागता प्रतीक भी है।
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