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वक्रतुंड महाकाय

क्या आप जानते हैं वक्रतुंड महाकाय मंत्र से कैसे दूर होते हैं विघ्न और मिलती है सफलता? जानें इसका महत्व, लाभ और जप विधि।

वक्रतुंड महाकाय के बारे में

"वक्रतुंड महाकाय" गणेश जी का प्रसिद्ध मंत्र है, जिसे विघ्नहर्ता की कृपा पाने के लिए जपा जाता है। यह मंत्र सभी बाधाओं को दूर करता है, सफलता और समृद्धि प्रदान करता है तथा कार्यों में शुभ फल की प्राप्ति कराता है।

वक्रतुंड महाकाय मंत्र क्या है?

वक्रतुंड महाकाय मंत्र हिंदू धर्म में प्रसिद्ध गणेश उपासना का एक शक्तिशाली मंत्र है। यह मंत्र भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त करने, बाधाओं को दूर करने तथा सफलता प्राप्त करने के लिए जपा जाता है। इस मंत्र में भगवान गणेश के "वक्रतुंड" (टेढ़े सूंड वाले) और "महाकाय" (विशालकाय स्वरूप) रूप की स्तुति की गई है। मान्यता है कि इस मंत्र के नियमित जप से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार की विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं और उसे आध्यात्मिक एवं भौतिक सफलता प्राप्त होती है। यह मंत्र विशेष रूप से गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश पुराण तथा अन्य ग्रंथों में वर्णित है।

वक्रतुंड महाकाय मंत्र आरती सहित

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वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

यह गणेश मंत्र है, जिसका अर्थ है- "हे वक्रतुंड (टेढ़ी सूंड वाले), महाकाय (विशाल शरीर वाले), सूर्यकोटि समप्रभ (करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले) देव, आप मेरे सभी कार्यों को हमेशा बिना किसी विघ्न के पूरा करें।" इस मंत्र में गणेश जी के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है और उनसे प्रार्थना की गई है कि वे भक्तों के सभी कार्यों को बिना किसी बाधा के पूरा करें।

वक्रतुंड

‘वक्र’ का अर्थ है ‘टेढ़ा’ और ‘तुंड’ का अर्थ है ‘सूंड’। गणेश जी की सूंड टेढ़ी होने के कारण उन्हें वक्रतुंड कहा जाता है।

महाकाय

‘महा’ का अर्थ है ‘विशाल’ और ‘काय’ का अर्थ है ‘शरीर’। गणेश जी का शरीर बहुत विशाल है, इसलिए उन्हें महाकाय कहा जाता है।

सूर्यकोटि समप्रभ

‘सूर्यकोटि’ का अर्थ है ‘करोड़ों सूर्य’ और ‘समप्रभ’ का अर्थ है ‘समान प्रकाश वाला’। गणेश जी का तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, इसलिए उन्हें सूर्यकोटि समप्रभ कहा जाता है।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा

‘निर्विघ्नं’ का अर्थ है ‘बिना विघ्न के’, ‘कुरु’ का अर्थ है ‘करो’, ‘मे’ का अर्थ है ‘मेरे’, ‘देव’ का अर्थ है ‘हे देव’, ‘सर्वकार्येषु’ का अर्थ है ‘सभी कार्यों में’, और ‘सर्वदा’ का अर्थ है ‘हमेशा’। इस भाग का अर्थ है कि हे देव, मेरे सभी कार्यों को हमेशा बिना किसी विघ्न के पूरा करें।

मंत्र का भावार्थ

हे वक्रतुंड, विशालकाय, सूर्य के करोड़ों प्रताप जितने तेजस्वी प्रभु गणेश! कृपया मेरे सभी कार्यों में सदा बिना किसी विघ्न के सफलता प्रदान करें।

मंत्र का महत्व

गणेशजी को ‘विघ्नहर्ता’ कहा जाता है, यह मंत्र हर प्रकार की रुकावटें दूर करता है। नए कार्य की शुरुआत में इसका जप करने से सफलता मिलती है। मन को स्थिरता और आत्मविश्वास प्रदान करता है। मंत्र में ‘सूर्यकोटि समप्रभ’ कहकर गणेशजी की ज्ञान-ज्योति का आह्वान किया गया है। यह नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। ध्यान और साधना में मन को एकाग्र करने में मदद करता है।

गणेश मंत्र पढ़ने के फायदे

बाधाओं का नाश

इस मंत्र का जाप करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं, ऐसा माना जाता है।

बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि

गणेश जी को बुद्धि का देवता माना जाता है, इसलिए इस मंत्र का जाप करने से बुद्धि, ज्ञान और एकाग्रता में वृद्धि होती है।

सफलता

यह मंत्र सफलता प्राप्त करने में सहायक होता है, ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र।

सकारात्मक ऊर्जा

  • इस मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है, कहा जाता है कि यह मंत्र मन को शांत करने और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • इस मंत्र का जाप करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, माना जाता है।
  • किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले इस मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है, जिससे कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो।
  • इस मंत्र का जाप करने से आध्यात्मिक शक्ति और स्थिरता में वृद्धि होती है।
  • यह मंत्र व्यक्ति के संकल्प को मजबूत करता है और उसे धैर्यवान बनाता है, कहा जाता है।
  • इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है, माना जाता है।

गणेश मंत्र कैसे पढ़े? जानें सही तरीका

शुद्धता का ध्यान रखें

  • जाप से पहले स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें।
  • शरीर, मन और स्थान — तीनों की पवित्रता जरूरी है।
  • अगर संभव हो तो पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।

शांत और एकाग्र मन से जाप करें

  • जाप करते समय मन को इधर-उधर भटकने न दें।
  • भगवान गणेश के स्वरूप का ध्यान करें।
  • जल्दबाज़ी या अनमने मन से जाप न करें।

शुभ समय का चयन करें

  • प्रातःकाल (ब्राह्म मुहूर्त) या संध्या समय जाप के लिए श्रेष्ठ होता है।
  • चतुर्थी, गणेश चतुर्थी, बुधवार, और शुभ आरंभ के अवसरों पर इसका विशेष महत्व होता है।

जाप संख्या

  • आप अपनी क्षमता अनुसार 11, 21, 51 या 108 बार मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  • नियमित जाप करने से मन और शरीर को स्थिरता मिलती है।

आसन और मुद्रा

  • किसी कुशासन, चटाई या कपड़े पर बैठकर जाप करें।
  • पद्मासन, सुखासन या वज्रासन में बैठना उपयुक्त होता है।
  • उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।

श्री गणेश का पूजन करें

  • गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  • दूर्वा, मोदक, लाल फूल अर्पित करें।
  • इसके बाद श्रद्धापूर्वक मंत्र जाप करें।

नियमबद्धता

  • यदि आप मंत्र का नियमित जाप करने का संकल्प लें, तो तय संख्या में नित्य जाप करें।
  • बीच में बिना कारण जाप बंद न करें।

जाप माला का उपयोग

  • रुद्राक्ष, तुलसी या चंदन की माला से जाप करना शुभ माना जाता है।
  • माला को दाहिने हाथ से, कुश या रेशम के कपड़े से ढंककर पकड़ें।
  • माला का सुमेरु (मुख्य मोती) पार न करें।
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Published by Sri Mandir·August 19, 2025

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