
क्या आप जानते हैं सकट चौथ 2026 कब है? जानिए इस व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और भगवान गणेश की आराधना से जुड़ी पूरी जानकारी – सब कुछ एक ही जगह!
सकट चौथ व्रत गणपति भगवान को समर्पित है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। भक्त गणेश जी की पूजा कर चंद्र दर्शन के बाद व्रत पूर्ण करते हैं।
सकट चौथ हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो विशेष रूप से भगवान गणेश और संकटा माता को समर्पित है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सौभाग्य और जीवन में आने वाली हर बाधा (संकट) को दूर करने के लिए रखती हैं। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ या वक्रतुंडी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
सकट चौथ का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह जीवन के सबसे बड़े ‘संकटों’ को हरने वाले विघ्नहर्ता गणेश और संकटा देवी से जुड़ा हुआ है।
सकट चौथ का व्रत अत्यंत कठिन और फलदायी माना जाता है, जिसका पालन नियम और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए।
सकट चौथ का व्रत हर साल माघ मास (जनवरी या फरवरी) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। वर्ष 2026 मे सकट चौथ 6 जनवरी, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
सकट चौथ का पर्व मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, सौभाग्य और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है।
यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता माना जाता है, यानी वे भक्तों के सभी संकटों (बाधाओं) को दूर करते हैं। माताएँ संतान के जीवन में आने वाले हर संकट को टालने के लिए यह कठोर व्रत रखती हैं। यह व्रत संकटा माता (चौथ माता) को भी समर्पित है।
सकट चौथ का व्रत अक्सर निर्जला (बिना पानी के) या फलाहार (केवल फल और पानी) रखा जाता है: यदि आप फलाहार कर रहे हैं: आप दिन में पानी, दूध, फल, मखाने, आलू से बनी चीज़ें (बिना नमक या सेंधा नमक के), और साबूदाना खा सकते हैं। पारण (व्रत तोड़ना): व्रत हमेशा रात में चंद्रमा के दर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद ही खोला जाता है। पारण के समय तिलकुट (प्रसाद) खाकर व्रत पूरा किया जाता है।
सकट चौथ का सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य प्रसाद तिलकुट होता है।
तिलकुट: यह तिल और गुड़ को मिलाकर बनाया जाता है और इसे भगवान गणेश को अर्पित किया जाता है। पूजा में गन्ना, शकरकंद, घी और मौसमी फल भी चढ़ाए जाते हैं। व्रत खोलने (पारण) के समय सबसे पहले इसी तिलकुट के प्रसाद को ग्रहण किया जाता है।
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