
क्या आप जानते हैं गुरु रविदास जयंती 2026 कब है? यहां जानें तिथि, महत्व, जीवन परिचय, उनके उपदेश, पूजा-विधि और इस पावन अवसर पर किए जाने वाले सभी धार्मिक कार्य — सब कुछ एक ही जगह!
गुरु रविदास 15वीं–16वीं शताब्दी के एक महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि थे। उन्होंने समानता, भाईचारा और जाति-मुक्त समाज का संदेश दिया। जानकारी के अनुसार, उनके पद गुरु ग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं, जो उनकी आध्यात्मिक ऊँचाई दर्शाते हैं। गुरु रविदास के बारे में औऱ ज्यादा जानने के लिए पढ़िए इस लेख को।
वर्ष 2026 में गुरु रविदास जी की 649वीं जयंती मनाई जाएगी। यह पावन पर्व रविवार, 1 फरवरी 2026को पड़ेगा। इस दिन माघ पूर्णिमा होती है, जिसे गुरु रविदास जी के जन्मदिन के रूप में विशेष श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
तिथि का समय:
गुरु रविदास जयंती भारत के सामाजिक व आध्यात्मिक इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस माना जाता है। यह दिन भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ और महान समाज सुधारक गुरु रविदास जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने जीवनभर मानव समानता, प्रेम, करुणा और स्वतंत्रता का संदेश दिया। उनके विचार केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं थे, बल्कि समाज में व्याप्त जाति-व्यवस्था और भेदभाव के विरुद्ध एक मजबूत आवाज भी थे।गुरु रविदास जी आध्यात्मिकता को बाहरी आडंबरों से हटाकर भक्ति, सेवाभाव और सच्चाई पर आधारित जीवन की ओर ले जाने के पक्षधर थे।
उनके द्वारा रचित भक्ति पदों में प्रेम, भक्ति और ईश्वर के साक्षात्कार का गहरा संदेश निहित है। भक्तजन इस दिन उनके भजनों का गायन करते हैं, शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं और उनके जीवन सिद्धांतों को याद किया जाता है। यह दिवस प्रेरित करता है कि हम सामाजिक बंधनों को तोड़कर एक ऐसे विश्व का निर्माण करें जहाँ हर व्यक्ति को सम्मान और प्रेम मिले। उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।
जानकारी के अनुसार, गुरु रविदास जयंती का इतिहास 15वीं शताब्दी के उस दौर से शुरू होता है, जब सामाजिक भेदभाव और जातिगत ऊँच-नीच पूरे समाज में गहराई से फैली हुई थी। इसी समय वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धनपुर में माघ पूर्णिमा के पावन दिन एक महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रेरणास्रोत गुरु रविदास का जन्म हुआ। चर्मकार परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि मनुष्य की पहचान उसके कर्म, भक्ति और चरित्र से होती है, न कि जाति और जन्म से। संत रविदास ने अपने उपदेशों के माध्यम से समानता, प्रेम और मानवता के आदर्श स्थापित किए। वे संत रामानंद के शिष्य रहे और मीराबाई सहित अनेक संतों एवं भक्तों के गुरु माने जाते हैं।
माघ पूर्णिमा को उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसलिए यह दिन गुरु रविदास जयंती के नाम से पूरे देश और विदेश में भक्ति व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। अनुयायी इस दिन शोभायात्राएँ निकालते हैं, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, भजन-कीर्तन करते हुए उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हैं और उनके जन्मस्थान पर दर्शन करने पहुँचते हैं। आधुनिक समय में भी उनके विचार सामाजिक समानता और मानव एकता के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। यही कारण है कि कई प्रदेशों में यह दिवस सार्वजनिक अवकाश के रूप में भी मान्य है। हालांकि, कहीं-कहीं संत के जन्म औऱ उनके स्थान को लेकर भिनन्ता दिखाई पड़ती है।
पवित्र स्नान: सुबह पवित्र नदी या घर में गंगाजल से स्नान करके पवित्रता के साथ दिन की शुरुआत करें। भक्ति-पूजा: गुरु रविदास जी के चित्र या प्रतिमा के सामने दीप जलाकर आरती और पूजा करें। भजन और कीर्तन: उनके भक्ति गीत, दोहे और पदों का पाठ करें और सुनें। धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: अमृतबाणी गुरु रविदास जी” या उनके पदों को पढ़कर ज्ञान प्राप्त करें। नगर कीर्तन में शामिल हों: शोभायात्रा में भाग लेकर समानता और एकता का संदेश फैलाएँ। लंगर सेवा: निशुल्क भोजन प्रसाद (लंगर) बनवाएँ या उसमें सहयोग करें, जो बराबरी का प्रतीक है। दान–पुण्य: गरीबों, जरूरतमंदों और असहायों की सहायता करें, वस्त्र या भोजन दान दें। आत्मचिंतन: उनके उपदेशों पर मनन करें और प्रेम, दया व सेवाभाव को अपने जीवन में अपनाएँ।
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