इस मंदिर को झूठे का मंदिर के नाम से भी जानते है
.मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत
पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखंड के टनकपुर से 21 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर 108 सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरी को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर शारदा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को झूठे का मंदिर के नाम से भी जानते है।
मंदिर का इतिहास
पूर्णागिरी मंदिर के इतिहास को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार सन् 1632 में गुजरात के चंद्र तिवारी नामक एक व्यापारी ने चंपावत के राजा ज्ञानचंद के साथ शरण ली। मां पुण्यगिरि उनके स्वप्न में दिखाई दी। स्वप्न में माँ ने एक मंदिर निर्माण की बात कही। उसके बाद पूर्णागिरी मंदिर का निर्माण करवाया गया। तब से लेकर आज तक मंदिर में पूजा पाठ की जाती है। साथ ही भक्तों की भीड़ भी लगी रहती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत्य युग में दक्ष प्रजापति की बेटी सती ने दक्ष प्रजापति की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया था। इसलिए भगवान शिव से बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ किया जहां उन्होंने भगवान शिव और सती को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन यह जानकर कि सती को आमंत्रित नहीं किया गया था, उन्होंने भगवान शिव के सामने यज्ञ में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव ने उन्हें रोकने का पूरा प्रयास किया वह नहीं मानी इसलिए भगवान शिव को उन्हें यज्ञ में शामिल होने की अनुमति देनी पड़ी। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया जो सती के लिए असहनीय था। इसलिए देवी सती ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया। सती के जलते शरीर को देखकर भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया। उन्होंने गहरे दुःख के साथ सती के शरीर के अवशेषों को उठाया और पूरे ब्रह्मांड में विनाश का नृत्य करने लगे। यह देखकर भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। जिन स्थानों पर उनके शरीर के अंग गिरे उन्हें शक्तिपीठ के रूप में मान्यता दी गई। पूर्णागिरि में सती की नाभि गिरी, जहां वर्तमान पूर्णागिरि मंदिर स्थित है।
मंदिर का महत्व
पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड के सभी प्रसिद्ध मंदिरों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां साल भर बड़ी संख्या में लोग देवी माँ की पूजा अर्चना करने आते हैं। चैत्र नवरात्रि में लाखों तीर्थयात्री पूर्णागिरि मंदिर में आते हैं। भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पूर्णागिरि मंदिर आते हैं। यह भी माना जाता है कि माता पूर्णागिरि की पूजा के बाद सिद्ध बाबा मंदिर के दर्शन करना जरूरी है। अन्यथा यात्रा सफल नहीं होती है। पूर्णागिरी मंदिर के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि यदि इस स्थान पर मुंडन कराया जाता है तो बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है। इसलिए इस मंदिर की विशेष महत्ता है।
मंदिर की वास्तुकला
पूर्णागिरी मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय और नेपाली शैलियों का मिश्रण है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिर हैं। जिसमे देवी पूर्णागिरि का मुख्य मंदिर सबसे प्रमुख है। यह मंदिर पत्थर से बना हुआ है और इसकी दीवारों और खंभों पर बारीक नक्काशी की गई है। देवी की मूर्ति काले पत्थर से बनी है और सोने के गहनों और रंग-बिरंगे कपड़ों से सजी हुई है। मंदिर में एक बड़ा हॉल भी है जहां भक्त बैठकर पूजा अर्चना कर सकते हैं।
मंदिर का समय
सर्दी में - पूर्णागिरी मंदिर खुलने का समय
05:00 AM - 05:00 PMगर्मी में - पूर्णागिरी मंदिर खुलने का समय
05:00 AM - 07:00 PMमंदिर का प्रसाद
पूर्णागिरी मंदिर में माता को फल, चना चिरौंजी, सूखे मेवे, फूल, चुनरी आदि चढ़ाई जाती है।
यात्रा विवरण
मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है