यहां पर आए थे शिवजी बाघ के रूप में।
.मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत
देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में एक प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर है बागनाथ। कहते हैं कि इस मंदिर के नाम पर ही बागेश्वर जिले का नाम पड़ा है। बागनाथ मंदिर के पास ही सरयू और गोमती नदी का संगम है। मान्यता है कि भगवान शिव व्याघ्र यानी बाघ के रूप में यहां प्रकट हुए थे, इसलिए शुरुआत में इसे व्याघ्रेश्वर नाम से जाना जाता था, जो कि बाद में बागेश्वर हो गया। यहां मकर संक्रांति और शिवरात्रि पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तजन आते हैं। तो आइए आज हम आपको बागनाथ मंदिर का इतिहास, बागनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है और बागनाथ मंदिर से जुड़े रहस्य के बारे में बताएंगे। तो जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 15वीं-16वीं शताब्दी में चंद वंश के राजा लक्ष्मी चंद ने कराया था। कहते हैं कि पहले यह मंदिर बहुत छोटा था, जिसे राजा लक्ष्मी चंद ने भव्य स्वरूप दिया। गोमती-सरयू नदी और विलुप्त सरस्वती के संगम पर स्थित इस जगह को मार्कंडेय ऋषि की तपोभूमि के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को धरती पर ला रहे थे। इस दौरान उन्होंने देखा कि ब्रह्मकपाली पत्थर के पास ऋषि मार्कंडेय तपस्या में लीन हैं। वशिष्ठ जी को ऋषि मार्कंडेय की तपस्या भंग होने का डर सताने लगा। इधर, सरयू के आगे न बढ़ पाने से उसका जल भी इकट्ठा होने लगा था। इस समस्या के समाधान के लिए मुनि वशिष्ठ ने भगवान शिव की आराधना की। जिसके बाद भगवान शिव बाघ और माता पार्वती गाय का रूप धारण कर ऋषि मार्कंडेय के पास गए। गाय के रंभाने (तेज आवाज करने) पर मार्कण्डेय मुनि की आंख खुली, उन्होंने देखा कि एक बाघ गाय के पीछे पड़ा है। वह गाय को बचाने के लिए बाघ की तरफ दौड़े। इतने पर भगवान शिव और माता पार्वती अपने असली रूप में आ गए। इस तरह सरयू का जल आगे बढ़ सका। तभी से यहां भगवान शिव की पूजा होने लगी।
मंदिर का महत्व
कहते हैं कि भगवान शिव आज भी इस मंदिर में बाघ के रूप में मौजूद हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों के सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। जिन महिलाओं को संतान नहीं हो रही होती है, वह यहां दर्शन को जरूर आती हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान के आशीर्वाद से महिलाओं को संतान का सुख मिलता है।
मंदिर की वास्तुकला
बागनाथ मंदिर उत्तर भारत में एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है, जो कि दक्षिण मुखी है। यहां शिव शक्ति की जलहरी पूर्व दिशा को ओर है। भगवान शिव और माता पार्वती मंदिर में एक साथ स्वयंभू रूप में जलहरी के बीच में विद्यमान हैं। नागर शैली में बने बागनाथ मंदिर को चंद्रवंशी राजा लक्ष्मी चंद ने सन् 1602 में बनवाया था। बाद में इसकी चारदीवारी में आकाश लिंग युक्त लघु देवकुलियाएं बनाई गईं। मंदिर में स्थापित मूर्तियां 7वीं से लेकर 16वीं शताब्दी के बीच की हैं। मंदिर परिसर में महेश्वर, उमा, पार्वती, महिषासुर मर्दिनी की त्रिमुखी और चतुर्मुखी मूर्तियां, शिवलिंग, गणेश, विष्णु, सूर्य सप्तमातृका एवं शाश्वत अवतार की प्रतिमाएं शामिल हैं। परिसर में भगवान शिव की एक उंची प्रतिमा भी लगी है।
मंदिर का समय
बागनाथ मंदिर खुलने का समय
06:00 AM - 09:00 PMमंदिर का प्रसाद
बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। उन्हें बेलपत्र, शुद्ध जल, दूध, कुमकुम, चंदन, फल, फूल और बताशा अर्पित किया जाता है। भगवान को खीर और खिचड़ी का भी भोग लगाया जाता है।
यात्रा विवरण
मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है