सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का हर दिन देवी दुर्गा के विशेष रूप को समर्पित है। धार्मिक दृष्टिकोण से नवरात्रि का नवां दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे महानवमी भी कहते हैं। महानवमी पर मां पार्वती की पूजा को भी शुभ माना जाता है, क्योंकि मां दुर्गा भी मां पार्वती का ही रूप है। मां पार्वती को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई तरह के दिव्य अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से मीनाक्षी सुंदरेश्वर पूजा को सबसे प्रभावशाली माना जाता है। मां मीनाक्षी भी मां पार्वती का ही अवतार है और उनकी पूजा को स्त्री औऱ पुरुष के संतुलन का प्रतीक है। माना जाता है कि मां पार्वती को समर्पित यह पूजा करने से रिश्तों में खुशहाली का और विवाह में विंलब से बचने का आशीर्वाद मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, गंधर्व लोक के राजा विश्ववाशु की बेटी विद्या विधि माँ पार्वती की भक्त थी। विद्या विधि ने जब एक बार अपने पिता से धऱती पर जाकर अंबिका देवी की पूजा करने की इच्छा रखी, तब उनके पिता ने उन्हें मदुरई में मां शामला देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने को कहा। विद्या विधि के भक्ति से प्रसन्न होकर माँ पार्वती एक बालिका के रूप में प्रकट हुईं और उन्हें अगले जन्म में देवी की सेवा करने का आशीर्वाद दिया। विद्या विधि का पुनर्जन्म कंचनमाला के रूप में हुआ, जो राजा सुरसेन की बेटी थी और बाद में उनका राजा मलयध्वज से विवाह हुआ। लेकिन कई सालों तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई।
इसके बाद कंचनमाला ने अपने वरदान को याद करते हुए माँ पार्वती और भगवान शिव से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। हवन करने के बाद, माँ पार्वती मीनाक्षी के रूप में जन्मीं, जिनके तीन वक्ष थे। इसके साथ ही एक दिव्य भविष्यवाणी हुई, जिसमें कहा गया कि जब मीनाक्षी अपने भविष्य के पति से मिलेंगी, तो उनका तीसरा वक्ष गायब हो जाएगा। जैसे-जैसे मीनाक्षी बड़ी हुईं, उन्होंने कई इंद्र सहित कई देवताओं को चुनौती तक दे डाली, लेकिन जब वह भगवान शिव से मिलीं, तो उनका तीसरा वक्ष गायब हो गया, और उनका रूपांतरण हो गया। इसके बाद भगवान शिव सुंदरेश्वर के रूप में मदुरई आए और देवी मीनाक्षी से विवाह किया। इस विवाह को ब्रह्मांडीय संतुलन और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि भक्तों का मानना है कि मीनाक्षी सुंदरेश्वर पूजा करने से रिश्तों में खुशहाली और विवाह में विलंब से बचने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस पूजा के साथ नवदुर्गा तिल पूजा भी बहुत शुभ मानी जाती है। इसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस पूजा में भक्त फल-फूल अर्पित करते हैं। तिल पूजा में तिल का टीला बनाया जाता है, जो नवदुर्गा का प्रतीक है। इस टीले को तेल और मिठाई से सजाया जाता है, जो भक्तों की श्रद्धा और कृतज्ञता को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार नवदुर्गा की पूजा करने से घर में समृद्धि और धन का आगमन होता है। इसलिए नवरात्रि महानवमी पर मदुरई के मीनाक्षी चोक्कनाथर मंदिर में मीनाक्षी सुंदरेश्वर पूजा और नवदुर्गा तिल पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और रिश्तों में खुशहाली और घर में समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।