सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को समर्पित है। पौराणिक कथानुसार, इन नौ दिनों तक मां दुर्गा ने महिषासुर नामक एक राक्षस से युद्द किया था और दसवें दिन उसका वध कर संसार में शांति स्थापित की थी। इसी कारणवश नवरात्रि के दसवें दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। देवी अपराजिता भी मां दुर्गा का ही रूप है। अपराजिता का अर्थ है, वो जो कभी पराजित न हो, अर्थात मां दुर्गा का वह स्वरूप जिसने बिना पराजित हुए सभी असुरों और नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट किया। इसी कारणवश मां दुर्गा के इस स्वरूप का नाम अपराजिता पड़ा। देवी अपराजिता का वर्णन देवी पुराण और चंडी पाठ में भी मिलता है। देवी पुराण के अनुसार, मां अपराजिता शेर पर सवार है और उनकी अनेक भुजाएं है, जिनमें उन्होंने कई अस्त्र-शस्त्र पकड़े हुए हैं। कहा जाता है कि मां अपराजिता की पूजा करने वाला भक्त कठिन से कठिन परिस्थितियों में पराजित नहीं हो सकता है। शास्त्रों में विजयादशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा करना शुभ माना गया है। इसी कारणवश भक्त मां शत्रुओं पर और न्यायिक मामलों में विजय प्राप्त करने के लिए विजयदशमी के दिन मां अपराजिता की पूजा करते हैं।
शास्त्रों में मां अपराजिता को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीष प्राप्त करने के लिए अपराजिता स्त्रोत को सबसे लाभकारी बताया गया है। माना जाता है कि विजयादशमी पर अपराजिता स्तोत्र का पाठ करने से मां अपराजिता जल्दी प्रसन्न होती है। वहीं यदि इस पूजा के साथ चंडी हवन किया जाए तो यह अनुष्ठान कई गुना अधिक फलदायी हो सकता है, क्योंकि चंडी हवन मां दुर्गा को समर्पित एक अग्नि अनुष्ठान है। माना जाता है कि इस अग्नि अनुष्ठान से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है और जीवन का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलती है। इसलिए विजयादशमी के शुभ अवसर पर काशी के श्री दुर्गा कुंड मंदिर में दुर्गा के स्वरूप अपराजिता स्तोत्र पाठ एवं चंडी हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और मां अपराजिता द्वारा शत्रुओं और कोर्ट-कचहरी के मामलों पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद प्राप्त करें।