शनि उन शक्तिशाली ग्रहों में से एक हैं, जिनकी चाल और स्थितियां मनुष्य को सबसे अधिक प्रभावित कर सकती हैं। शनि को न्याय का देवता कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में शनि की भूमिका बहुत अहम मानी जाती है। शनि एक क्रूर या पापी ग्रह अवश्य है लेकिन यह हमारे कर्मों के अनुसार ही वो हमें फल देते हैं। लेकिन शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए या उसे कम करने के लिए कुछ विधि विधान भी बताए गए हैं जिसे करने से व्यक्ति के जीवन में शनि के अशुभ प्रभावों से होने वाली समस्याओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इनमें से एक है शनि षोडशोपचार पूजा, जो कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया के साथ पूरी की जाती है। षोडशोपचार विधि से पूजा करने पर 16 चरणों में पूजा की जाती है। इसमें पाद्य, अर्घ्य, आमचन, स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र (यज्ञोपवीत या जनेऊ) आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, स्तवन पाठ, तर्पण और नमस्कार किया जाता है।
वहीं, शनि वज्रपंजर कवच एक शक्तिशाली महाकवच हैं, जो शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव से रक्षा प्रदान करता हैं। इस कवच के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होती है, उसके जीवन से विघ्न बाधायें दूर होती है। यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि ग्रह से बने दोष, शनि की ढैय्या अथवा शनि की साढ़ेसाती हैं, जिसके कारण उसके जीवन में आए दिन कोई न कोई परेशानी बनी ही रहती हैं, वह कोई भी कार्य करने जाता हैं, तो उसमें उसे सफलता नहीं मिल रही है, धन का बहुत अधिक नुकसान होता जा रहा हैं, स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है तो यह पाठ करने से शनि ग्रह दोष के प्रभाव से मुक्ति का आशीष मिलता है और सभी परेशानिया स्वयं कम होने लगती हैं। इस पाठ का वर्णन शास्त्रों में किया गया है जिसमें बताया गया है कि जो भक्त को शनि के हानिकारक प्रभावों से बचाता है। मान्यता है कि यह पूजा विशेष रूप से साढ़ेसाती, शनि महादशा या कुंडली में शनि की खराब स्थिति के दौरान प्रभावशाली होती है। वहीं अगर ये पूजा शनि के नक्षत्र में की जाए तो इसका प्रभाव अत्यधिक होता है, इसलिए शनि के नक्षत्र उत्तरा भाद्रपद में इस विशेष पूजा का आयोजन किया जा रहा है। इसलिए उज्जैन के श्री नवग्रह शनि मंदिर में होने वाली शनि षोडशोपचार पूजा, तिल तेल अभिषेक और वज्र पंजरिका कवच यज्ञ में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और जीवन की समस्याओं से मुक्ति का आशीष पाएं।