हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार राहु और केतु स्वर्भानु नामक राक्षस के शरीर से उत्पन्न दो दिव्य प्राणी हैं। स्वर्भानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु की दशा चल रही हो, तो इससे प्रयासों में असफलता, पारिवारिक कलह, बुरी आदतों की लत, आर्थिक समस्या, मानसिक अस्पष्टता एवं बेहतर निर्णय लेने में समस्या की संभावना बढ़ जाती है। भगवान शिव को राहु और केतु का देवता माना जाता है और माना जाता है कि उनकी पूजा करने से इन ग्रहों के अशुभ प्रभावों में कमी आती है। इसलिए, राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा के साथ शिव रुद्राभिषेक करना बहुत लाभकारी माना जाता है। यह पूजा विशेष तौर पर राहु द्वारा शासित नक्षत्र में किया जाए तो यह अत्यंत प्रभावशाली हो सकता है।
मान्यता है कि ग्रह दोषों को कम करने के लिए भगवान शिव की पूजा की जाती है। इसलिए उत्तराखंड के राहु पैठाणी मंदिर में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह देश के उन राहु मंदिरों में से एक है जहां भगवान शिव के साथ राहु की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा करने से राहु के साथ भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है। इसलिए राहु द्वारा शासित स्वाति नक्षत्र के दौरान उतराखंड के इस पवित्र धाम में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाएगा। भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने और अपनी कुंडली में राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें।