सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए की सबसे शुभ माना गया है। इस अवधि में पड़ने वाली सभी तिथियों का अपना अलग महत्व होता है, जिसमें से एक है सप्तमी तिथि। इसे श्राद्ध सप्तमी भी कहते हैं। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु किसी भी माह की सप्तमी तिथि को हुई हो या फिर जिनकी मृत्यु दुर्घटना के कारण हुई हो। शास्त्रों की मानें तो पितृ पक्ष की अवधि के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष का समय पितृ दोष के निवारण के लिए भी शुभ माना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जिन लोगों का अंतिम संस्कार नहीं हो पाता, उनकी शांति के लिए नारायण बलि, नाग बलि पूजा का विधान बताया गया है, और इस अनुष्ठान को पितृ पक्ष में करने से इसका लाभ कई गुना बढ़ सकता है। पितृ दोष के कारण जीवन में आर्थिक हानि, गृह क्लेश आदि समस्याओं का सिलसिला लगा ही रहता है। नारायण बलि पूजा पितृदोष निवारण के लिए की जाती है, वहीं नागबलि पूजा का मुख्य उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। शास्त्रों के अनुसार, यह दोनों पूजाएं एक साथ करने से ही सफल होती है। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु आगे बताते हैं कि यह विशेष पूजा को अगर गंगा जैसी पवित्र नदी के तट पर अनुभवी पंडितों द्वारा किया जाना चाहिए।
हिंदू धर्म में काशी के अस्सी घाट पर नारायण बलि, नाग बलि पूजा या पितृ शांति महापूजा जैसे अनुष्ठानों का गहन आध्यात्मिक महत्व माना गया है। कहते हैं कि ये अनुष्ठान दिवंगत आत्माओं की शांति, पैतृक दोष से मुक्ति और जीवन में आ रही विभिन्न कठिनाइयों का निवारण करने में सहायक होते हैं। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु बताते हैं कि इस विशेष पूजा अगर पवित्र नदियों के तट पर किया जाए तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि गंगा के पवित्र जल से कर्म ऋण समाप्त हो जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष की श्राद्ध सप्तमी तिथि के शुभ अवसर पर काशी के अस्सी घाट पर नारायण बलि, नाग बलि एवं पितृ शांति महापूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और दिवंगत आत्माओं की शांति और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।