हिंदू धर्म में श्रावण को ब्रह्माण्ड के संचालक महादेव की कृपा पाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माह माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव के इस प्रिय महीने में पूजा करने से ग्रह दोष दूर होते हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार शनि देव भी भगवान शिव के प्रिय भक्तों में से हैं। भगवान शिव से ही शनिदेव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ, न्यायाधीश और दंडक होने का वरदान प्राप्त हुआ था, इसलिए जो लोग श्रावण के पावन माह में शनिदेव की पूजा करते हैं, उन्हें शुभ फल की प्राप्ति होती है। जैसे प्रत्येक देवता का एक विशेष दिन होता है वैसे शनिवार का दिन भगवान शनि को समर्पित है, वहीं श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को शनि त्रयोदशी के रूप में मनाया जाता है, जिसे शनि प्रदोष भी कहते हैं। शनि पूजन के लिए इस दिन को अत्यंत शुभ माना गया है, सावन और प्रदोष व्रत दोनों ही शिव जी को अति प्रिय है। इसलिए इस तिथि पर पूजा करने से शनिदेव के साथ शिव की की कृपा भी प्राप्त होती है।
इसलिए, महाराष्ट्र में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में जो कि दुनिया का सबसे बड़ा शनि मंदिर माना जाता है, इस दिन पूजा करना अत्यंत प्रभावशाली हो सकता है। शनिदेव के इस मंदिर को जागृत देवस्थान के नाम से जाना जाता है यानी यहां स्वयं शनिदेव पत्थर की मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस प्राचीन मंदिर में शनि पूजा करने और तिल तेल चढ़ाने से शनि साढ़े साती के प्रभावों से राहत मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि साढ़े साती को अक्सर प्रतिकूल माना जाता है, जिसका प्रभाव ढाई-ढाई साल के तीन चरणों में विभाजित होता है। वहीं शनि महादशा 19 वर्षों तक चलती है। इस चरण के दौरान शनि व्यक्ति के कर्म और कुंडली में ग्रह की स्थिति के आधार पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव लाता है। इन सभी अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए कई तरह की पूजा की जाती है, जिनमें शनि साढ़े साती पीड़ा शांति महापूजा, शनि तिल तेल अभिषेक और महादशा शांति महापूजा बेहद प्रभावी मानी जाती है, श्री मंदिर के माध्यम से इस शुभ अवसर पर होने वाली विशेष पूजा में भाग लें और शनिदेव से आशीष पाएं।