महाराष्ट्र का शनि शिंगणापुर मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा शनि मंदिर है। शनि देव के इस मंदिर को 'जागृत देवस्थान' माना जाता है क्यूंकि शनि देव यहाँ स्वयं शिला के रूप में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनि शिंगणापुर मंदिर में पूजा करवाने से शनि साढ़ेसाती का बुरा प्रभाव दूर होता है। शनि की साढ़ेसाती को आमतौर पर शुभ नहीं माना जाता एवं इसके प्रभाव को ढाई-ढाई साल के तीन चरणों में बांटा गया है। शनि की साढ़ेसाती के पहले ढाई वर्ष के दौरान शनि मस्तक पर सवार रहते हैं। इस दौरान व्यक्ति आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान रहता है। माना जाता है कि साढ़ेसाती का दूसरा चरण सबसे ज्यादा कष्टकारी माना जाता है जिसमें व्यक्ति को शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। दुसरे चरण का असर व्यक्ति के कार्यक्षेत्र और परिवार पर भी पड़ सकता है।
साढ़ेसाती के तीसरे एवं आखिरी चरण में कई तरह के संघर्षों से सामना होता है। इस दौरान व्यक्ति शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक सभी तरह से परेशान रहता है। शनिदेव के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के पूजन किए जाते हैं, जिसमें शनि साढे साती एवं तिल तेल अभिषेक अत्यंत प्रभावशाली है। जिस तरह हर देवी देवता का एक विशेष दिन होता है उसी तरह शनिदेव को शनिवार का दिन समर्पित है, इस दिन शनि साढ़े साती पीड़ा शांति महापूजा और तिल तेल अभिषेक करना कई गुना अधिक फलदायी माना जाता है। इसलिए शनिदेव की विशेष कृपा पाने के लिए श्रीमंदिर के माध्यम से इस पूजा में अवश्य भाग लें।