हिंदू धर्म में श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है। मान्यता है कि इस पावन माह में भगवान शिव की पूजा करने से ग्रह दोष दूर होते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राहु और केतु एक ही राक्षस स्वरभानु के शरीर से उत्पन्न दो दिव्य प्राणी हैं। स्वरभानु के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु-केतु की दशा चल रही हो तो उसे असफलता, पारिवारिक कलह, बुरी आदतें, आर्थिक परेशानियां एवं निर्णय लेने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। भगवान शिव को राहु और केतु का स्वामी माना जाता है। राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए भगवान शिव के प्रिय माह श्रावण में राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
इसके अलावा शनिदेव के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए तिल तेल अभिषेक सहित कई तरह की पूजा की जाती है। मान्यता है कि शनिदेव को तेल चढ़ाने से उनके भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शनि के बाद लोगों को सबसे ज्यादा डर राहु और केतु से लगता है। सुखी जीवन के लिए शनि के साथ-साथ राहु और केतु के नकारात्मक प्रभावों को शांत करना भी जरूरी माना जाता है। इसलिए शनि के नक्षत्र यानि अनुराधा नक्षत्र और बुधवार के शुभ संयोग पर राहु-केतु पीड़ा शांति पूजा और शनि तिल तेल अभिषेक का आयोजन किया जाएगा। अनुराधा नक्षत्र शनि द्वारा शासित है और बुधवार केतु को समर्पित है। इसलिए इस शुभ संयोग के दौरान यह पूजा करना बेहद लाभकारी माना जाता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और अपनी कुंडली में राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को कम करने का आशीर्वाद प्राप्त करें।