हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी आती है, जिसका महत्व सभी एकादशी में श्रेष्ठ मानी गई है, इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना से उन्हें जल्द प्रसन्न किया जा सकता है। मान्यता कि इस दिन निर्जल रहकर व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है एवं मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के समय में पांडु के पुत्र भीमसेन ने महर्षि वेद व्यास से पूछा- हे महर्षि! ‘मेरे कुटुंब के सभी सदस्य एकादशी का व्रत करते हैं। मैं भी इस व्रत का पालन करना चाहता हूं, किंतु मुझसे भूख सहन नहीं होती, कृपया मुझे कोई उपाय सुझाए’। इस पर महर्षि वेद व्यास ने कहा ‘हे भीम! तुम्हें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए, इस व्रत में अन्न और जल का त्याग करना होता है।
इस एक व्रत को करने से ही तुम्हें वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होगा और सभी पापों से मुक्ति मिलेगी। इस प्रकार भीम ने इस व्रत का पालन कर सभी पापों से मुक्ति पाई और अपने पितृ शांति का आशीष पाया। तभी से सभी पापों से मुक्ति एवं पूर्वजों की शांति के लिए ये दिन अत्यंत शुभ माना जाने लगा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए निर्जला एकादशी का दिन अत्यंत प्रभावकारी है। इस दिन पितृ दोष शांति महापूजा के साथ गंगा अभिषेक से पितृ शांति एवं पारिवारिक क्लेश से मुक्ति का आशीष मिलता है।