कालाष्टमी, जिसे काला अष्टमी भी कहा जाता है। ये विशेष दिन भगवान शिव के उग्र रूप, भैरव को समर्पित होता है। कालाष्टमी के दिन काल भैरव के साथ-साथ देवी काली की पूजा-अर्चना का भी विधान है, क्योंकि माँ काली भी शक्ति का उग्र रूप हैं जो नकारात्मकता का नाश करने के लिए प्रकट हुई थीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले देवी महाकाली अंधकार के रूप में सब तरफ विद्यमान थीं। सृष्टि को प्रारंभ करने के लिए देवी ने एक ज्योति प्रकट की थी जिसके बाद सब कुछ प्रकाशमय हो गया। जिसके बाद देवी ने सृष्टि और प्रकृति की रचना शुरू की।
जिस तरह नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव रात्रि में सबसे अधिक होता है, ठीक उसी प्रकार देवी काली की शक्तियां भी रात्रि में अपने चरम पर होती हैं। इस दौरान देवी माँ की विशेष पूजा से उन्हें प्रसन्न करके नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा का आशीष प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि कालाष्टमी की रात को देवी काली की उपासना करने का महत्व अधिक है। इसलिए श्री मंदिर पूजा सेवा कालाष्टमी की रात्रि पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ माँ तारापीठ मंदिर में महाकाली तंत्र युक्त यज्ञ आयोजित कर रहा है। ये शक्तिपीठ देवी महाकाली के 3 प्रमुख स्थलों में से एक है जहाँ देवी, तारा माँ के रूप में विराजमान हैं। इस पूजा में भाग लेकर मां काली की से नकारात्मक ऊर्जा, बुरी शक्तियों और भय से सुरक्षा पा सकते हैं।