निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी विशेष महाकाल भैरव पूजन एवं हवन एवं कालिका पूजन
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मासिक दुर्गा अष्टमी विशेष

महाकाल भैरव पूजन एवं हवन एवं कालिका पूजन

निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए
temple venue
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
pooja date
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निर्भयता प्राप्ति एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी विशेष महाकाल भैरव पूजन एवं हवन एवं कालिका पूजन

हिंदु धर्म में प्रत्येक माह की शुक्ल अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन देवी दुर्गा को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा की अराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। दुर्गा अष्टमी पर मां दुर्गा की पूजा करने के पीछे एक लोकप्रिय कथा है। एक बार पृथ्वी पर असुरों का आतंक फैल गया था और वो स्वर्ग पर विजय प्राप्त करने लगे थें। इस दौरान असुरों ने कई देवी-देवताओं को भी मार डाला, सभी असुरों में सबसे शक्तिशाली राक्षस महिषासुर था। महिषासुर को हराने के लिए भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शक्ति के रूप में देवी दुर्गा की रचना की और सभी देवताओं ने देवी दुर्गा को हथियार और कवच प्रदान किए, तब मां दुर्गा पृथ्वी पर प्रकट हुईं और राक्षसों का विनाश किया, जिसके बाद से ही दुर्गा अष्टमी का त्योहार मनाया जाने लगा।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जिस प्रकार मां काली देवी दुर्गा का रौद्र रूप हैं, उसी प्रकार भगवान काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप हैं। इसलिए दुर्गा अष्टमी के दिन मां काली के साथ भगवान काल भैरव की पूजा करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है। मान्यता है कि इस पावन दिन पर भगवान भैरव और मां काली की पूजा करने से भक्त के जीवन से सभी भय दूर हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने सभी शक्तिपीठों की रक्षा की जिम्मेदारी भगवान भैरव को दी थी। इसलिए सभी शक्तिपीठ मंदिरों में काल भैरव का भी विशेष पूजन किया जाता है। काल भैरव के दर्शन के बिना देवी मंदिरों के दर्शन का पुण्य अधूरा माना जाता है। माना जाता है कि महाकाल भैरव और मां काली सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट कर भक्तों को निर्भयता का आशीष देते हैं। इसलिए दुर्गा अष्टमी के शुभ दिन पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में महा काल भैरव पूजन और हवन एवं कालिका पूजन का आयोजन किया जा रहा है। यह मंदिर मां काली की पूजा के लिए सबसे शुभ शक्तिपीठ माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और काल भैरव संग देवी काली का दिव्य आशीष प्राप्त करें।

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
कालीघाट मंदिर, जो कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जो शक्ति, ऊर्जा और विनाश की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है, उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं। उनकी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रह हैं। गौरतलब है कि प्रतिमा में मां काली की जीभ स्वर्ण से बनी हुई है।

वर्तमान में मौजूद मंदिर का निर्माण सबॉर्नो रॉय चौधरी परिवार और बाबू कालीप्रसाद दत्तो के संरक्षण में किया गया था, जिसका निर्माण सन् 1798 में शुरू हुआ और 1809 में पूर्ण हुआ। कालीघाट मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह मंदिर कई सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है, जो यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कालीघाट में देवी काली की पूजा से भक्तों को डर, बुराई, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह मंदिर बंगाल के सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है और यहां के धार्मिक त्योहार, विशेषकर दुर्गा पूजा और काली पूजा, बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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