सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। धार्मिक दृष्टिकोण से नवरात्रि का नौवें दिन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे महानवमी भी कहा जाता है। महानवमी पर देवी लक्ष्मी की उपासना को शुभ और फलदायी माना जाता है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के दिव्य अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से एक है षोडश लक्ष्मी कन्या पूजन। इस अनुष्ठान में माँ लक्ष्मी के 16 रूपों की पूजा की जाती है। 'षोडश' का संस्कृत में अर्थ है 16, और इस विशेष पूजा के द्वारा 16 शक्तिशाली देवी-रूपों से 16 प्रकार के आशीर्वाद प्राप्त किए जा सकते हैं। इन 16 देवियों के साथ भगवान गणेश, भगवान कुबेर, माँ वाराही, माँ दुर्गा और माँ श्यामला देवी की भी त्रिकोणीय रूप में पूजा होती है। इस तरह, कुल 21 देवताओं की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस पूजा के माध्यम से 21 देवी-देवताओं का दिव्य आशीष प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त, कन्या पूजन नवरात्रि के दौरान किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें छोटी बालिकाओं की पूजा की जाती है, जो माँ दुर्गा के अवतारों का प्रतीक होती हैं। परंपरा के अनुसार, माँ दुर्गा ने कालासुर राक्षस का वध करने के लिए एक छोटी कन्या का रूप धारण किया था, जो उनकी सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है। कन्या पूजन, जिसे कंजक पूजन भी कहा जाता है, आमतौर पर नवरात्रि के आठवें और नौवें दिन किया जाता है। इस पूजा में 21 कन्याएं दीप जलाकर 21 देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस वर्ष महा नवमी शुक्रवार के दिन पड़ रही है, जिससे इस पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। मान्यता है कि महानवमी और शुक्रवार पर षोडश कन्या पूजन करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस पूजा के साथ चंडी हवन करने से यह पूजा कई गुना अधिक फलदायी हो सकती है। कहा जाता है कि चंडी हवन करने से सभी नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए, नवरात्रि महानवमी पर तिरुनेलवेली के एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में षोडश लक्ष्मी कन्या पूजन और चंडी हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में भाग लें और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करें।