साहस एवं भय पर विजय प्राप्ति के लिए कालाष्टमी तंत्रपीठ विशेष 1008 गुड़हल पुष्प यंत्र अभिषेक एवं माँ काली तंत्र युक्त यज्ञ
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साहस एवं भय पर विजय प्राप्ति के लिए कालाष्टमी तंत्रपीठ विशेष 1008 गुड़हल पुष्प यंत्र अभिषेक एवं माँ काली तंत्र युक्त यज्ञ
कालाष्टमी तंत्रपीठ विशेष

साहस एवं भय पर विजय प्राप्ति के लिए

1008 गुड़हल पुष्प यंत्र अभिषेक एवं माँ काली तंत्र युक्त यज्ञ
temple venue
कालीमठ मंदिर , रूद्रप्रयाग
pooja date
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साहस एवं भय पर विजय प्राप्ति के लिए कालाष्टमी तंत्रपीठ विशेष 1008 गुड़हल पुष्प यंत्र अभिषेक एवं माँ काली तंत्र युक्त यज्ञ

हिंदू धर्म में मां काली को मृत्यु एवं काल की देवी कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार, मां भगवती ने राक्षसों पर विजय पाने के लिए उग्र रूप धारण किया था, जिसे मां काली के नाम से जाना गया। मां काली की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के भय एवं बाधाओं से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि काली यंत्र अभिषेक करने से मां काली शीघ्र प्रसन्न होती है। इस यंत्र का अभिषेक करने से बाधाओं का नाश होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुड़हल पुष्प मां काली को बहुत प्रिय है। इस फूल के बिना मां काली की पूजा अधूरी मानी जाती है। जो भक्त लाल गुड़हल के फूलों से मां काली की पूजा करते हैं, उनसे देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

माना जाता है कि गुड़हल के फूलों से काली यंत्र का अभिषेक करने से मां काली अपने भक्तों को भय पर विजय पाने के लिए साहस और शक्ति का आशीर्वाद देती हैं। गुड़हल के पुष्प से यंत्र अभिषेक के साथ मां काली तंत्र युक्त यज्ञ करना बहुत ही शुभ माना जाता है। वहीं कालाष्टमी का दिन भगवान शिव के उग्र रूप भैरव जी को समर्पित है। इस दिन माँ काली की पूजा का भी विशेष महत्व है क्योंकि माँ काली भी शक्ति का एक उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। इसलिए कालाष्टमी के शुभ दिन पर 1008 गुड़हल पुष्प यंत्र अभिषेक और माँ काली तंत्र युक्त यज्ञ का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और माँ काली से दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें।

कालीमठ मंदिर , रूद्रप्रयाग

कालीमठ मंदिर , रूद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है कालीमठ मंदिर। ये पवित्र मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो उग्र देवी के रूप में विराजमान हैं। यहां विराजित मां काली अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन से बुरी शक्तियों का विनाश करती हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मां काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ विराजित हैं। इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य चट्टान है। इस शीला को कालीशिला के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी।

तब यहां माँ भगवती 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुईं, कालीशिला में देवताओं के 64 यंत्र हैं। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर माता का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने क्रोध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में माता ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। इन 64 यंत्रों से मां को मिली थी शक्ति कालीमठ मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो चांदी के बोर्ड/श्रीयंत्र से ढका हुआ है। भक्त मंदिर के अंदर स्थित कुंड की पूजा करते हैं, यह पूरे वर्ष में केवल शारदीय नवरात्र में अष्टमी को खोला जाता है। दिव्य देवी को बाहर निकाला जाता है और पूजा भी आधी रात को ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही उपस्थित होते हैं।

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