हिंदु वैदिक पंचाग के अनुसार, हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा की शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। पौराणिक कथानुसार, मां दुर्गा ने इन नौ दिनों तक दुष्ट राक्षस महिसासुर से युद्ध किया था और दसवें दिन उसे पराजित किया था। यही कारण है कि इस अवधि के दौरान भक्त मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा करते हैं। देवी के कई स्वरूपों में से एक माता काली भी हैं, जिन्हें मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी कहा गया है। ये देवी आदिशक्ति मां दुर्गा के विकराल और भयप्रद रूप हैं, जिनकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिये हुई थी। नवरात्र के दौरान भक्त इनका आवाह्न कर अपने जीवन में शत्रुओं पर विजय की कामना व नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरी शक्तियों से सुरक्षा का आशीष मांगते हैं। इनके आवाह्न के लिए कई विधि विधान हैं जिनमें काली चंडी हवन अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। मान्यता है कि इस हवन को करने से जीवन की समस्याओं से छुटकारा मिलता है। इस हवन को करने से देवी भक्तों को शक्ति, साहस और कुशलता का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
वहीं देवी दुर्गा की अराधना के लिए श्री अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्र का पाठ करते हैं जो कि श्री दुर्गा सप्तशति के मंगलाचरण मंत्रों में से एक है। जिसकी व्याख्या स्वंय भगवान शिव ने की है, भगवान शिव कहते हैं कि जो इन नामों का पाठ करता है या जो इनका मात्र सुन लेता है, भगवती दुर्गा उस व्यक्ति से प्रसन्न हो जाती हैं और उसका कल्याण करती हैं। ऐसे व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में काली चंडी हवन और दुर्गा अष्टोत्तर शतनामावली पाठ का आयोजन किया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। माना जाता है कि इस तंत्र पीठ में पूजा करने से सभी महाविद्याओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और देवी से शत्रुओं पर विजय, बुरे प्रभावों एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीष प्राप्त करें।