दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए भद्रकाली जयंती विशेष कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ, नव चंडी यज्ञ और कुमारी पूजन
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भद्रकाली जयंती विशेष

कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ, नव चंडी यज्ञ और कुमारी पूजन

दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए
temple venue
श्री दुर्गा कुंड मंदिर, काशी
pooja date
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दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए भद्रकाली जयंती विशेष कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ, नव चंडी यज्ञ और कुमारी पूजन

ज्येष्ठ कृष्ण की एकादशी तिथि को भद्रकाली जयंती मनाई जाती है। भक्त देवी मां का आशीर्वाद पाने के लिए इस शुभ दिन पर इनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। वहीं इस दिन सिर्फ भद्रकाली ही नहीं, बल्कि मां दुर्गा की पूजा भी की जाती है, क्योंकि मां भद्रकाली देवी दुर्गा के रूपों में से एक हैं। देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के सबसे चमत्कारिक मंत्र और श्लोक यदि किसी पुस्तक में हैं तो वह श्री दुर्गा सप्तशती ही है। माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ के समान ही कवच, अर्गला एवं कीलक स्तोत्र पाठ शुभ फल देता है।

इसलिए, कई लोग देवी दुर्गा से क्षमा मांगने और दुर्घटनाओं, बीमारियों और खतरों से सुरक्षा पाने के लिए भद्रकाली जयंती के शुभ दिन पर कवच, अर्गला एवं कीलक का पाठ करते हैं। कई लोग इस दिन कुमारी पूजन भी करते हैं, क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि लड़कियां मां दुर्गा का रूप होती हैं। दिनांक 02 जून 2024 को काशी के श्री दुर्गा कुंड मंदिर, में आयोजित होने वाले भद्रकाली जयंती विशेष कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ, नव चंडी यज्ञ एवं कुमारी पूजन में सम्मिलित हों।

श्री दुर्गा कुंड मंदिर,काशी

श्री दुर्गा कुंड मंदिर,काशी
भगवान शिव की नगरी काशी में स्थापित श्री दुर्गा कुंड मंदिर, जहाँ माँ आदिशक्ति दुर्गा अदृश्य रूप में विराजमान है। मान्यता है की माता रानी का यह मंदिर आदिकालीन है तथा यह सिद्ध मंदिर काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के काशी खंड में भी पाया जाता है। इस मंदिर में माँ दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में रानी भवानी ने करवाया था। इस मंदिर के एक तरफ कुंड है, जिसे दुर्गा कुंड कहा जाता है।

मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मातारानी ने यहाँ विश्राम किया था। भक्तों में यह आस्था है की माँ दुर्गा यहाँ अपने चौथे स्वरुप कुष्मांडा के रूप में स्थित है। इसलिए नवरात्रि में इस मंदिर में देश के हर एक कोने से असंख्य श्रद्धालु दर्शन एवं पूजा-अर्चना करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आशीष प्राप्त करते हैं।

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