मान्यता है कि सनातन पंरपरा में 33 कोटि देवी-देवता की पूजा की जाती है, लेकिन इनमें से पांच ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा के बगैर कोई भी शुभ कार्य या साधना अधूरी मानी जाती है। किसी भी मांगलिक कार्य को संपन्न करने के लिए पंचदेव की पूजा करना अनिवार्य माना गया है। मान्यता है कि यही पंचदेव पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि पंच देव की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और साथ ही घर में शुभता आती है। इन पंचदेवों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और सूर्य शामिल होते हैं। कुछ स्थानों पर ब्रह्मा की जगह मां दुर्गा (शक्ति) को भी जोड़ा जाता है। जैसे विष्णुपुराण में विष्णु को, शिवपुराण में शिव को, गणेशपुराण में गणेश को, सूर्यपुराण में सूर्य को और शक्तिपुराण में शक्ति को ब्रह्म माना गया है।
इन पंचदेवों में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान गणेश, फिर मां दुर्गा, भगवान शिव, जगत पालनकर्ता श्री हरि विष्णु और प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण भगवान का पूजन किया जाता है। जहां भगवान गणेश को जल तत्व, शिव जी को पृथ्वी तत्व, विष्णु जी को वायु तत्व, सूर्य देव को आकाश तत्व व देवी दुर्गा को अग्नि तत्व माना गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इन पंचदेव के पूजन और मंत्र जाप करने से इन सभी देवताओं की कृपा मिलती है और घर में खुशहाली आती है। पंचदेव की पूजा से सभी कार्य बिना किसी विघ्न के पूर्ण होते हैं, सभी मनोकामनाओं की पूर्ति व नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा का आशीष भी मिलता है। मान्यता है कि प्रत्येक देवता का अपना मंत्र होता है जिसके द्वारा उनका आह्वान किया जाता है। इसलिए श्रीहरि के प्रिय दिन देवशयनी एकादशी पर पंचदेव मंत्र जाप और महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। श्रीमंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और सभी इच्छाओं की पूर्ति एवं नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा का आशीष पाएं।