मनोकामना पूर्ति एवं सर्व बाधा निवारण के लिए शक्तिपीठ दर्श अमावस्या विशेष श्री श्री दक्षिणा काली माता अमावस्या महानिशा पूजन, स्तोत्र पाठ एवं हवन
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शक्तिपीठ दर्श अमावस्या विशेष

श्री श्री दक्षिणा काली माता अमावस्या महानिशा पूजन, स्तोत्र पाठ एवं हवन

मनोकामना पूर्ति एवं सर्व बाधा निवारण के लिए
temple venue
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , पश्चिम बंगाल, कोलकत्ता
pooja date
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मनोकामना पूर्ति एवं सर्व बाधा निवारण के लिए शक्तिपीठ दर्श अमावस्या विशेष श्री श्री दक्षिणा काली माता अमावस्या महानिशा पूजन, स्तोत्र पाठ एवं हवन

हिंदू धर्म में दर्श अमावस्या एक महत्वपूर्ण तिथि है। दर्श अमावस्या की रात महाकाली की तंत्र पूजा का बहुत अधिक महत्त्व होता है। ये विशेष दिन देवी काली के उग्र रूप, को समर्पित है। देवी महाकाली अपने भक्तों के जीवन में प्रकाश और आशा की किरण लाती हैं साथ ही नकारात्मकता और अंधकार को दूर करती हैं। ऐसी मान्यता है कि महाकाल की प्रियतमा देवी काली ही अपने दक्षिण और वाम रूप में प्रकट हुई और दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुई। हिन्दू पुराणों देवी दक्षिणा काली को एक रूद्र अवतार माना गया है। उनके स्वरुप की बात करें तो उनका रूप भी विकराल माना जाता है। देवी काली के दक्षिणा काली नाम पड़ने के विभिन्न कारण है, जिनमें कहा गया है कि दक्षिण दिशा की ओर रहने वाले यमराज, देवी का नाम सुनते ही भाग जाते है, इसलिए देवी दक्षिणा काली के नाम से जानी जाती हैं। तात्पर्य यह है कि, मृत्यु के देवता यम, जिनका राज्य यानि यमलोक दक्षिण दिशा में विद्यमान है वो भी देवी काली के भक्तों से दूर रहते हैं और मृत्यु पश्चात् यम दूत उन्हें यम लोक नहीं ले जाते हैं। इसलिए मान्यता है कि देवी काली के इस स्वरूप की विशेष पूजा से उन्हें प्रसन्न करके किसी भी कार्य में आने वाली बाधाओं से मुक्ति एवं मनोकामना पूर्ति का वरदान प्राप्त कर सकते हैं।

वहीं शनिवार का दिन देवी काली को समर्पित है, इसलिए इस शुभ दिन पर पश्चिम बंगाल में स्थित शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में श्री श्री दक्षिणा काली माता अमावस्या महानिशा पूजन, स्तोत्र पाठ एवं हवन आयोजित किया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। इस मंदिर को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि अमावस्या पर यहां माता की महानिशा पूजा करने से देवी अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करती है साथ ही उसके जीवन से बाधाओं को दूर करने का आशीष भी देती हैं। इसलिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और मां काली का आशीष पाएं।

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , पश्चिम बंगाल, कोलकत्ता

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , पश्चिम बंगाल, कोलकत्ता
कालीघाट मंदिर, जो कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जो शक्ति, ऊर्जा और विनाश की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है, उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं। उनकी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रह हैं। गौरतलब है कि प्रतिमा में मां काली की जीभ स्वर्ण से बनी हुई है।

वर्तमान में मौजूद मंदिर का निर्माण सबॉर्नो रॉय चौधरी परिवार और बाबू कालीप्रसाद दत्तो के संरक्षण में किया गया था, जिसका निर्माण सन् 1798 में शुरू हुआ और 1809 में पूर्ण हुआ। कालीघाट मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह मंदिर कई सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है, जो यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कालीघाट में देवी काली की पूजा से भक्तों को डर, बुराई, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह मंदिर बंगाल के सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है और यहां के धार्मिक त्योहार, विशेषकर दुर्गा पूजा और काली पूजा, बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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