साल भर की 24 एकादशियों का फल सिर्फ एक दिन में, जानें निर्जला एकादशी कथा की महिमा का सार🙏✨
निर्जला एकादशी, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और वर्ष की सबसे कठोर व्रतों में से एक मानी जाती है। “निर्जला” का अर्थ है बिना जल के, और इस दिन का उपवास पूरी तरह निर्जल रहता है। इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि महाभारत काल में पांडव भीम को सभी एकादशी व्रत रखना कठिन लगता था, इसलिए उन्होंने ऋषि व्यास के निर्देश पर यह एक व्रत रखा और सभी एकादशियों का फल प्राप्त किया। ऐसा माना जाता है कि इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति को यमराज के लोक से मुक्ति मिलती है और वह सीधे भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ पहुंचता है।
✨ इस शुभ दिन करें भगवान नारायण और माँ बगलामुखी का सामूहिक पूजन और पाएं हर बाधा का सरल समाधान 🙏
यह दिन न केवल भगवान विष्णु की आराधना के लिए पावन है, बल्कि देवी बगलामुखी की पूजा के लिए भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। दरअसल पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि देवी बगलामुखी के प्रादुर्भाव का कारण नारायण ही हैं। कथानुसार सतयुग में मदन नामक एक असुर ने अपराजेय होने का वर प्राप्त कर तीनों लोकों में आतंक फैला दिया था। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता माँगी। विष्णु जी ने हरिद्रा सरोवर के तट पर कठोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर माँ बगलामुखी प्रकट हुईं और उन्होंने मदन असुर का वध किया। इसलिए इन्हें विजयश्री की देवी और पीताम्बरा भी कहा जाता है।
माँ बगलामुखी को स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री माना जाता है। उनकी पूजा कानूनी संकट, शत्रु बाधा और भय से रक्षा करती है। साथ ही भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के प्रतीक ‘सुदर्शन कवचम् यज्ञ’ से शत्रु नाश और विजय की ऊर्जा प्राप्त होती है। इस निर्जला एकादशी पर हरिद्वार स्थित माँ बगलामुखी सिद्धपीठ में 36,000 मंत्रों का जाप और मथुरा के श्री दीर्घ विष्णु मंदिर में सुदर्शन कवच यज्ञ श्री मंदिर द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस विशेष अवसर पर भाग लें और माँ बगलामुखी तथा नारायण की संयुक्त कृपा प्राप्त करें।