हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी मनाई जाती है। इसी दिन प्रभु श्री राम ने स्वयंवर जीतकर जनक नंदिनी मां सीता से विवाह रचाया था। इसलिए इस शुभ अवसर पर भगवान राम एवं माता सीता की विशेष पूजा की जाती है। अयोध्या में विवाह पंचमी का पर्व एक विशेष महत्व रखता है। यह दिन पूरे अयोध्या वासियों को श्रीराम और माता सीता के पावन विवाह का स्मरण कराता है, जो वैदिक परंपराओं और आदर्श वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। इस शुभ अवसर पर भक्त माता सीता एवं श्री राम को प्रसन्न करने के लिए कई अनुष्ठान करते हैं। जिसमें सीता-राम अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ भी शामिल है, यह भगवान श्रीराम और माता सीता के दिव्य नामों का स्मरण है। यह पूजा दांपत्य जीवन आनंद, सद्भाव एवं सफल पूर्वक बितेगा। श्री सूक्त, माता लक्ष्मी के गुणों और उनकी कृपा का वर्णन करता है। इसके अलावा श्री सूक्त हवन में वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ पवित्र पदार्थों की आहुति दी जाती है। यह हवन आर्थिक समृद्धि, घर में सुख-शांति और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए किया जाता है। इस हवन के माध्यम से देवी लक्ष्मी के स्वरूप माता सीता से प्रार्थना की जाती है कि वे दांपत्य जीवन में संतुलन और समृद्धि प्रदान करें।
वहीं भगवान राम नारायण के स्वरूप हैं इसलिए इस शुभ दिन पर सीता-राम अष्टोत्तर शतनामावली, श्री सूक्त हवन के अलावा विष्णु सहस्रनाम भी करते हैं, जिसमें भगवान विष्णु के 1000 नामों का संग्रह है, जिनका पाठ सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करता है। यह पाठ वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी नकारात्मकता और कलह को समाप्त करता है। भगवान विष्णु की कृपा से दांपत्य जीवन में स्थिरता और सुखद अनुभव प्राप्त होते हैं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ यह सुनिश्चित करता है कि पति-पत्नी के बीच स्नेह और समझ बनी रहे। इसलिए विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर श्री राम की पावन नगरी अयोध्या में विराजित श्री प्राचीन राज द्वार मंदिर में इस विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। कहते हैं कि श्री राम, सीताजी एवं लक्ष्मणजी वनवास जाने के समय इसी मंदिर से होकर गए थे। मान्यता है की इस मंदिर में भगवान श्री राम अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ विराजमान है। श्री मंदिर द्वारा इस पूजा में भाग लेने से श्री राम एवं माता सीता से वैवाहिक आनंद, सद्भाव और सफल विवाह का आशीष प्राप्त है।