🚩पापमोचनी एकादशी पर क्यों इतनी प्रभावशाली है नारायण व बगलामुखी की संयुक्त पूजा ?
😲क्या है इनकी संयुक्त पूजा के पीछे का रहस्य❓
चैत्र माह में कृष्ण पक्ष के दौरान मनाई जाने वाली पापमोचनी एकादशी आध्यात्मिक शुद्धि और पिछले पापों से मुक्ति के लिए एक पवित्र अवसर मानी जाती है। वर्ष की पहली एकादशी के रूप में, ऐसा माना जाता है कि यह नकारात्मक कर्मों को समाप्त कर, बाधाओं को दूर कर और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक होती है। हिंदू धर्म में, एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है, जिन्हें नारायण के नाम से भी जाना जाता है। देवी बगलामुखी का स्वरूप भगवान नारायण के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध को दर्शाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में मदन नामक एक असुर ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि वह अपराजेय रहेगा। इस वरदान के कारण उसने तीनों लोकों में भारी उत्पात मचाया, जिससे देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य सभी भयभीत हो गए। समस्त देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगी। तब भगवान विष्णु ने बताया कि मदन असुर का संहार केवल देवी बगलामुखी की कृपा से ही संभव है। इसके लिए स्वयं विष्णु जी ने हरिद्रा सरोवर (पीले जल के सरोवर) के किनारे देवी बगलामुखी की घोर तपस्या प्रारंभ की। भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी बगलामुखी प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से मदन असुर का वध कर दिया। उसके अंत के साथ ही तीनों लोकों में शांति स्थापित हुई। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं और ऋषि-मुनियों ने देवी बगलामुखी की स्तुति की और विजयश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया।
यही कारण है कि पापमोचनी एकादशी पर नारायण और बगलामुखी की पूजा अत्यधिक शुभ और प्रभावी मानी जाती है। न्याय, विजय और शत्रुओं के विनाश की देवी के रूप में पूजित देवी बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। हरिद्रा सरोवर से उत्पन्न होने के कारण इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है। इनके स्वरूप से पीली आभा निकलती है और इनकी पूजा में पीला रंग विशेष महत्व रखता है। देवी बगलामुखी को शत्रुओं पर लगाम लगाने और उनकी शक्ति को बेअसर करने वाली देवी माना जाता है। इनकी पूजा से भक्तों को शक्ति, साहस और आत्मविश्वास मिलता है। कानूनी विवादों को सुलझाने, शत्रुओं पर विजय पाने और विजय प्राप्त करने के लिए यह पूजा विशेष रूप से लाभकारी है। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से जुड़ा सुदर्शन कवचम यज्ञ इस अनुष्ठान के महत्व को और बढ़ाता है। कहते हैं कि भगवान विष्णु का यह दिव्य अस्त्र अपने लक्ष्य को परास्त करने के बाद ही वापस लौटता है। इसलिए, मथुरा में श्री दीर्घ विष्णु मंदिर और हरिद्वार में सिद्धपीठ माँ बगलामुखी मंदिर जैसे पवित्र स्थलों पर 36,000 माँ बगलामुखी मंत्र जाप और नारायण सुदर्शन कवचम यज्ञ जैसे अनुष्ठानों का आयोजन किया जा रहा हैं। आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और देवी बगलामुखी और भगवान नारायण का आशीर्वाद प्राप्त करें।