ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और शनि को कट्टर शत्रु माना जाता है। सूर्य को पिता माना जाता है जबकि शनि को पुत्र। इसके पिछे एक पौराणिक कथा छिपी है, दरअसल सूर्य देव का विवाह दक्ष पुत्री संज्ञा से हुआ था। विवाह के बाद उन्हें मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानें हुईं। संज्ञा सूर्यदेव के असहनीय तेज से परेशान थीं और अपने पिता के पास मदद के लिए गईं, लेकिन उन्होनें उसे सूर्य लोक वापस भेज दिया। इस समस्या से बचने के लिए संज्ञा ने अपनी छाया रूप स्वर्णा का निर्माण किया। जिसके बारे में सूर्यदेव को नहीं पता था, स्वर्णा से सूर्यदेव को तपती, भद्रा और शनि नामक तीन और संतानें हुईं। शनिदेव में अपनी माता के छाया गुण आए थे। सूर्य देव को शनि के जन्म के बाद लगा कि वह उनके पुत्र नहीं हैं। शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही सूर्य देव का स्वर्ण रंग काला पड़ गया। इस श्राप के निवारण के लिए सूर्य देव महादेव के पास गए, जिन्होंने उन्हें संपूर्ण घटना बताई। अपनी गलती का एहसास होने पर सूर्य देव ने संज्ञा से माफी मांगी, लेकिन तब तक शनि और सूर्य के बीच संबंध खराब हो चुके थे, यही कारण है कि इसका असर आज भी कुंडली में दिखता है।
माना जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में ये युति बनती है उनके स्थानों के आधार पर उन्हें शुभ एवं अशुभ फल की प्राप्ति होती है। अशुभ स्थिति में होने से जातक को कई कष्टों का सामना करना पड़ता है जैसे: जातक के प्रोफेशनल लाइफ पर काफी प्रभाव पड़ता है जिससे वो अपने करियर से जुड़े फैसले लेने में भी कनफ्यूजन महसूस करता है। इसके अलावा पिता-बेटे मे तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न एवं आत्मविश्वास में कमी आने लगती है। ज्योतिष शास्त्रों में इन कष्टों से निवारण पाने के लिए सूर्य-शनि विष योग निवारण पूजा को अत्यंत फलदायी माना गया है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि हैं और रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित होता है। ऐसे में पुष्य नक्षत्र एवं रविवार के शुभ संयोग पर इस पूजा को करने से इसका महत्व कई गुना बढ जाता है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और सूर्य एवं शनिदेव का आशीष पाएं।