🚩नर्मदा जयंती पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर कैसे पाएं महादेव एवं माता नर्मदा दोनों की कृपा ?
🛕ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग में इस पूजा का क्या है महत्व ?
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस दिन माता नर्मदा के जन्मदिन या प्राकट्य हुआ था। यही कारण है कि इस दिन भक्त नर्मदा नदी की पूजा करते हैं जो उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव के पसीने से मां नर्मदा का जन्म हुआ था। भगवान शिव मैखल पर्वत पर तपस्या में लीन थे तब उनके पसीने की जो बूंदे गिरी थी उससे ही मां नर्मदा का जन्म हुआ था, इसलिए प्रचलित मान्यता के हिसाब से मां नर्मदा को भगवान शंकर की पुत्री भी कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव के आदेश से ही मां नर्मदा धरती पर आई थी, जिन्हें अविनाशी होने का वरदान भी शंकर जी ने ही दिया था। यही कारण है कि सनातन धर्म में नर्मदा नदी का विशेष स्थान है।
मान्यता है कि जो लाभ लोगों को गंगा स्नान से मिलता है उतना पुण्य लाभ मां नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है, इसलिए नर्मदा नदी आज भी लोगों की आस्था का केंद्र मानी जाती है। नर्मदा तीन राज्यों से होकर बहती हैं, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं। मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग से समीप ॐ के आकार में बहती हैं। यह 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। इसकी विशेषता यह है कि यहां की पूजा से एक साथ शिव और नर्मदा दोनों की कृपा प्राप्त होती है। नर्मदा जयंती पर इस पूजन से न केवल जीवन में शांति और समृद्धि आती है, बल्कि यह मानसिक और शारीरिक रोगों से मुक्ति का भी आशीष मिलता है। इसलिए इस शुभ अवसर पर नर्मदा दुग्ध अभिषेक, नर्मदा आरती एवं शिव रूद्राभिषेक पूजन में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और भगवान शिव के साथ माता नर्मदा को प्रसन्न कर जीवन अस्वस्थता से राहत, मन और शरीर की शांति का आशीष पाएं।