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शास्त्रों में सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी विशेष देवता के लिए समर्पित किया गया है। ऐसी मान्यता है कि देवताओं को उनके निर्धारित दिन पर पूजा करने से अत्यंत शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। ठीक इसी प्रकार रविवार का दिन भी विशेष तौर पर भगवान भैरव की पूजा के लिए समर्पित है। माना जाता है कि जो भी भक्त रविवार को भगवान भैरव की पूजा करते हैं, उन भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव के पांचवें अवतार के रूप में पूजित बाबा भैरव के दो प्रमुख स्वरूप भी हैं जोकि काल भैरव और बटुक भैरव के नाम से पूजनीय है। कथा के अनुसार, एक बार जब माँ पार्वती ने दारुक नामक असुर का वध करने के लिए माँ काली का विनाशकारी रूप धारण किया, तो वो नियंत्रण से बाहर हो गई। माता को पुनः चेतना में लाने के लिए भगवान शिव ने एक पांच साल के बालक का रूप धारण किया और देवी को माँ कहकर पुकारा, इस पुकार को सुनने के बाद माँ का ह्रदय पिघल गया और उन्होंने वापस माता पार्वती का रूप धारण कर लिया।
क्यों की जाती है भगवान भैरव के स्वर्णाकर्षण रूप की पूजा ?
माता को शांत करने के लिए भगवान शिव ने जिस बाल रूप को धारण किया था, जिन्हें 'बटुक भैरव' के नाम से जाना जाने लगा। भगवान भैरव के बाल रूप श्री बटुक भैरव को धन और समृद्धि का दाता माना जाता है। वहीं दूसरी ओर, स्वर्णाकर्षण भैरव पूजा धन और समृद्धि को आकर्षित करने के लिए की जाती है, जिससे आठ महान सिद्धियों की प्राप्ति होती है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा करने से ऋण मुक्ति, आर्थिक समृद्धि, जीवन में स्थिरता और प्रतिकूलताओं से सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है। मान्यता है कि यदि भगवान शिव के निवास स्थान काशी में यह विशेष पूजा की जाए तो यह दोगुनी फलदायी हो सकती है क्योंकि भगवान भैरव भगवान शिव के ही रूपों में से एक है। इसलिए रविवार के विशेष दिन को काशी में स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जाप, बटुक भैरव स्तोत्र पाठ एवं हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करें।