🙏 इस शुक्रवार शतभिषा नक्षत्र काल में 18 हजार राहु मूल मंत्र जाप और दशांश हवन से पाएं बेहतर स्वास्थ्य और स्पष्टता का दिव्य आशीर्वाद 🙏
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राहु नक्षत्र महादशा शांति विशेष

18,000 राहु मूल मंत्र जाप, काल सर्प दोष शांति एवं दशांश हवन

मानसिक स्पष्टता और बेहतर निर्णय लेने के आशीर्वाद के लिए
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एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु
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🙏 इस शुक्रवार शतभिषा नक्षत्र काल में 18 हजार राहु मूल मंत्र जाप और दशांश हवन से पाएं बेहतर स्वास्थ्य और स्पष्टता का दिव्य आशीर्वाद 🙏

🙏 ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों का काफी महत्व होता है, क्योंकि इन्हीं ग्रहों के कारण व्यक्ति के जीवन में खुशियां और परेशानियां आती हैं। ज्योतिषियों की मानें तो सभी ग्रहों में राहु को सबसे खतरनाक ग्रह माना जाता है, क्योंकि यह जीवन में बहुत सारी परेशानियां लेकर आता है, और जिस भी कुंडली में राहु युति करता है, उस कुंडली में राहु अशुभ प्रभाव देना शुरू कर देता है। इस से पीड़ित इंसान को कई तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। राहु के नकारात्मक प्रभावों से व्यक्ति के जीवन में मानसिक अस्थिरता, भय और चिंता जैसी कई तरह की रुकावटों का सिलसिला लगा रहता है। इसलिए, राहु शासित नक्षत्र शतभिषा में 18 हजार मूल मंत्र जाप और दशांश हवन का आयोजन होने जा रहा है, जो महादशा से राहत दिलाते हुए जीवन की दिशा पलट सकता है।

🙏 ज्योतिष शास्त्र में राहु के अशुभ असर से बचने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जिसमें राहु मूल मंत्र जाप भी है। यह भी कहा गया है कि राहु की अशुभता से राहत पाने के लिए भगवान शिव का भी ध्यान करना चाहिए, क्योंकि राहु भगवान शिव के भक्त हैं। इसके अलावा राहु द्वारा शासित शतभिषा नक्षत्र में अगर इस ग्रह की पूजा की जाए है तो इसके नकारात्मक प्रभाव में कमी आ सकती है। कुंडली में राहु के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए राहु मंत्र का जाप भी बेहद असरदार माना जाता है। इसलिए, शतभिषा नक्षत्र में 18,000 राहु मूल मंत्र जाप के साथ दशांश हवन का आयोजन किया जा रहा है। भारतीय परम्पराओ में इस हवन का बड़ा महत्व है।

🙏 यह भी कहते हैं कि यदि किसी जातक के जीवन में राहु शुभ स्थान पर हो तो उसे जीवन में सफलता, लग्जरी और कई सुख-सुविधाएं पलक झपकते ही मिल सकते हैं। ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह कहा गया है, जिसका अर्थ है कि अन्य ग्रहों की तरह इसका कोई भौतिक रूप नहीं है। इस रूप में होने के बावजूद इसके दुष्प्रभाव सबसे भयावह हैं। इस अनुष्ठान में शामिल दशांश हवन प्रत्येक मंत्रो को सिद्ध करने के बाद किया जाता है। दशांश हवन का अर्थ होता है कि जितना जप किया है, उसका दस प्रतिशत हवन कर देना। इसलिए, राहु द्वारा शासित शतभिषा नक्षत्र में उत्तराखंड के श्री राहु पैठाणी मंदिर में होने जा रहे इस विशेष अनुष्ठान में भाग लें और सावन में भगवान शिव से राहु के अशुभ प्रभाव से राहत का आशीर्वाद पाएं।

एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु

एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु
उत्तराखंड में स्थित इस राहु मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ राहु की भी पूजा की जाती है। यह देश के उन मंदिरों में से है, जहां राहु की पूजा भगवान श‍िव के साथ होती है। माना जाता है कि राहु और केतु स्वरभानु नामक असुर के शरीर के भाग हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब स्वरभानु ने देवताओं की पंगत में बैठकर छल से अमृत पी लिया तभी भगवान विष्णु को उसके छल का पता चल गया और उन्होनें अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था, जिससे कि वह अमर न हो जाए, लेक‍िन अमृत पीने के कारण स्वरभानु तो अमर हो गया था। स्वरभानु का न‍ि‍चला ह‍िस्‍सा केतु बना तो धड़ से ऊपर स‍िर वाला भाग राहु कहलाया। यही स‍िर वाला हिस्सा सुदर्शन से कटने के बाद पौड़ी में स्‍थ‍ित इसी स्थान पर गिरा जो राहु मंदि‍र के नाम से जाना गया।

मान्यता है कि राहु के कारण उत्पन्न होने वाले विभिन्न दोषों को दूर करने के लिए लोग राहु के मंदिर में जाते हैं। वहीं यहां विशेष रूप से कालसर्प दोष, राहु-केतु दोष, और राहु महादशा से राहत पाने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है। कई जगहों पर वर्णित है कि इस मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य जी ने करवाया था। लेकिन इस मंदिर को लेकर एक और कथा है जिसमें बताया गया है कि इसका निर्माण पांडवों ने उस समय करवाया जब वो स्वर्गारोहिणी यात्रा पर थे, तब राहु दोष से बचने के लिए पांडवों ने इसी मंदिर में भगवान शिव और राहु की पूजा की थी।

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