भगवान गणेश, जिन्हें नई शुरुआत के देवता माना जाता है, इस माह में विशेष रूप से पूजनीय हैं। चतुर्थी तिथि, जो भगवान गणेश को समर्पित है, शुक्ल पक्ष के दौरान आने वाली चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी या वरद विनायक चतुर्थी कहते हैं। वरद का अर्थ है "भगवान से अपनी कोई भी इच्छा पूरी करने के लिए कहना।" इस दिन भक्त गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं, जिसमें संकट नाशक गणेश स्तोत्र का पाठ, पंचामृत अभिषेक और केतु ग्रह शांति यज्ञ भी शामिल है। सनातन परंपरा में मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश की पूजा सभी विघ्न बाधाओं को दूर करके जीवन को शुभ और मंगलमय बनाने वाली मानी गई है, वहीं इन्हें विघ्नहर्ता और अष्ट विनायक भी कहा जाता है। मान्यता है कि विनायक चतुर्थी पर इस पूजा को करने से जीवन में आने वाली असफलताओं, करियर में ठहराव और अचानक उत्पन्न होने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
वहीं, वैदिक ज्योतिष की मानें तो प्रत्येक ग्रह का एक अधिपति देवता होता है और केतु ग्रह के अधिपति स्वयं भगवान गणेश हैं। केतु को आध्यात्मिक ग्रह माना जाता है, जो रहस्य, पूर्व जन्म के कर्म, अनिश्चितता और अज्ञात शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि कुंडली में केतु अशुभ स्थान पर स्थित हो या उसकी महादशा में परेशानियाँ आ रही हों तो भगवान गणेश की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है। इसके अलावा यदि किसी जातक की कुंडली में केतु ग्रह अशुभ फल दे रहा हो तो, जीवन में भ्रम, असमंजस, अचानक हानि, करियर में ठहराव या मानसिक तनाव बना रहता है। ऐसे में इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की अराधना करना अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसके अलावा भगवान गणेश की पूजा करने से बाधाओं और विलंब से मुक्ति गुप्त शत्रुओं एवं नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा, व्यवसाय में सफलता एवं आर्थिक स्थिरता, एकाग्रता, बुद्धि एवं निर्णय क्षमता में सुधार का आशीष भी प्राप्त होता है। इसलिए विनायक चतुर्थी के शुभ अवसर पर संकट नाशक गणेश स्तोत्र, पंचामृत अभिषेक एवं केतु ग्रह शांति यज्ञ में भाग लेकर भगवान गणेश का आशीष प्राप्त करें और केतु के अशुभ प्रभावों को शांत करें। यह पूजा उज्जैन के श्री बड़ा गणेश मंदिर में हो रही है श्री मंदिर के माध्यम से इसमें भाग लें।